Friday, June 11, 2010

वर्ल्ड कप का जोश


आज के अखबार देखें तो वर्ल्ड कप की खबर और चित्रों से रंगे मिलेंगे। दुनिया का सबसे बड़ा न सही दूसरे नम्बर का खेल मेला है। इससे बड़ी बात यह है कि अफ्रीका में इस स्तर का कोई आयोजन पहली बार हो रहा है। तीसरी बात चाहे अफ्रीकी टीमों से खेलें या दूसरी टीमों से अफ्रीकी मूल के खिलाड़ी इतनी बड़ी संख्या में दिखाई पड़ेगे। ऐसा भी कहा जा रहा है कि इसके बाद अफ्रीका के विकास की गति तेज होगी।

देश में 10 स्टेडियम तैयार हैं। एयरपोर्ट को अपग्रेड किया गया है। दिल्ली मेट्रो के तर्ज पर उससे भी तेज़ गति वाली गौट्रेन का ट्रायल हो गया और वर्ल्ड कप के साथ यह ट्रेन भी शुरू हो जाएगी। 1964 में बुलेट ट्रेन के साथ इसी तरह जापान ने अपनी विकास यात्रा शुरू की थी। क्या यह कहानी जापान जैसी ही है?

जब इस विश्व कप के आयोजन की जिम्मेदारी दक्षिण अफ्रीका को मिली तब माना जा रहा था कि देश के ढाई करोड़ गरीबों को भी इसका लाभ मिलेगा। उनके जीवन में बहार आएगी। इस दौरान करीब 4 अरब डॉलर के खर्च से देश में स्टेडियम और खेलों का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया। उम्मीद थी कि बड़ी तादाद में पर्यटक आएंगे। लोकल कारोबारियों को काम मिलेगा। इससे गरीबों की रोज़ी भी बढ़ेगी। पर लगता है कि विश्व कप पूरा होने के बाद स्टेडियम सफेद हाथी की तरह खड़े रहेंगे। ग्लोबल मंदी की वजह से पर्यटकों की तादाद में कम से कम 25 फीसदी की गिरावट आई है। 

दक्षिण अफ्रीका के जोहानेसबर्ग और केपटाउन जैसे शहरों से हजारों लोगों को हटाकर दूर बसाया गया है। संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि रैकेल रोल्निक ने इस आशय की रिपोर्ट दी है कि लोगों को उजाड़े जाने से मानवाधिकार का व्यापक उल्लंघन हुआ है। 1988 में जब सोल ओलिम्पिक हुए थे तब उस शहर की तकरीबन 15 फीसदी आबादी को उजाड़ा गया था। 2008 के पेइचिंग ओलिम्पिक के दौरान लाखों लोगों के मकान गिराए गए थे। अगर्चे गरीबों को बदले में बेहतर ज़िन्दगी मिलती तो शायद यह सब ठीक था। पर  ऐसा नहीं हुआ। खेल के दौरान लोकल कारोबारियों और रेहड़ी लगाने वालों को कारोबार मिलने की उम्मीद थी, पर खेल आयोजन समिति ने स्टेडियमों के आसपास के इलाके की व्यवसायिक दीर्घाएं मैक्डॉनल्ड और कोका कोला जैसे ऑफीशियल स्पांसरों को दे दी हैं। शहर से 15-20 किलोमीटर दूर गरीबों को बसाया गया है। राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा चाहते हैं कि इस दौरान ये सवाल न उठाए जाएं, क्योंकि इससे देश की बदनामी होगी।

खेल के सहारे होने वाली आर्थिक गतिविधियाँ क्या गरीबों के विकास में मददगार हो सकतीं हैं। इसपर हमें विचार करने की ज़रूरत है। हम भी 2020 के ओलिम्पिक खेलों का आयोजन करना चाहते हैं। हो सकता है हम ध्यान दें तो खेल भी हों और गरीबों का कुछ फायदा भी हो। खेलों के आयोजन के वास्ते विकासशील देशों में वर्ल्ड क्लास शहर बनाने की होड़ लगेगी। देखना यह कि इन वर्ल्ड क्लास शहरों में गरीबों के लिए किस तरह की जगह होगी। 

दक्षिण अफ्रीका में अब अश्वेत सरकार है, पर वह अपने बंधुओं का कितना ख्याल रखती है इसे भी देखें। सोवेटो शहर के बाहर बने सॉकर सिटी स्टेडियम में 90,000 दर्शकों के बैठने का इंतज़ाम है। पर वीवीआईपी दीर्घा में 120 सीटें हैं, जिनमें मस्ती की भरपूर व्यवस्था है। इनमें बैठने का निमंत्रण दिया गया है अफ्रीका के 52 राष्ट्राध्यक्षों को। निमंत्रित राष्ट्राध्यक्षों में सूडान के उमर-अल-बशीर भी हैं, जो आए तो गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। दारफुर में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत का यह आदेश है। 

बहरहाल इस दीर्घा में कुछ देर के लिए बैठने नेल्सन मंडेला भी आएंगे। इसमें दो पूर्व राष्ट्रपति थाम्बो और एम्बेकी भी होंगे, जिनसे जैकब जूमा की बनती नहीं। इनमें जूमा साहब की पत्नी मा एन्तुली भी होंगी, जिनके बारे में हाल में चर्चा थी कि उनका राष्ट्रपति के किसी बॉडीगार्ड से अफेयर है। इस अफेयर की खबर के फैलते ही बॉडीगार्ड ने आत्महत्या कर ली। कहते हैं एन्तुली गर्भवती हैं। एल्तुली के अलाबा जूमा साहब की दोऔर बेगमें भी आएंगी। उम्मीद है उनके बीच जूमा साहब के पास बैठने को लेकर वैसी भिड़ंत नहीं होगी, जैसी पिछले दिनों किसी कार्यक्रम में हो गई थी। इस दीर्घा का एक आकर्षण लीबिया के मुअम्मार गद्दाफी भी होंगे। इसे और विस्तार से साथ में दिए लिंक के सहारे ब्रटिश अखबार इंडिपेंडेंट में आप पढ़ सकते हैं।



3 comments:

  1. महत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवाद

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