Thursday, April 7, 2011

जंतर-मंतर पर पीपली लाइव

मीडिया ब्लॉल सैंस सैरिफ के अनुसार दिल्ली के जंतर मंतर पर पीपली लाइव शो चल रहा है। मौके पर 42 ओबी वैन तैनात हैं। इंडिया टुडे से जुड़े अंग्रेजी चैनल ने वहाँ वॉक इन स्टूडियो बना दिया है। वजह सब जानते हैं कि वहाँ अन्ना हजारे का अनशन चल रहा है।

अन्ना हजारे के अनशन पर आज इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक है Cracks appear in Anna's team, Govt plans to reach out. इस खबर से लगता है जैसे अन्ना की कोई मंडली आपसी विवाद में उलझ गई है। लीड का शीर्षक थोड़ा सनसनीखेज है, जबकि खबर के अनुसार कर्नाटक के लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगडे अपने ही प्रस्तावित बिल के प्रारूप से सहमत नहीं हैं। एक्सप्रेस ने सम्पादकीय लिखा है दे, पीपुल


एक्सप्रेस को भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन पर आपत्ति नहीं है, पर उसे लगता है कि यह एक तरफा और स्वयंभू ईमानदारी अंततः लोकतंत्र के खिलाफ है। लगता है एक्सप्रेस को इस अनशन पर आपत्ति है। एक्सप्रेस के सम्पादकीय पेज का मुख्य आलेख प्रताप भानु मेहता ने लिखा है। इसमें भी तकरीबन यही बात कही गई है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास पैदा नहीं किया जाना चाहिए। दोनों ही बातें ठीक हैं, पर यह देखा जाना चाहिए कि हमारी व्यवस्था अपने आप को ठीक रखने की कितनी कोशिश कर रही है। आप आए दिन किसी अफसर और किसी नेता को तानाशाही बर्ताव करते देख रहे हैं।

 कोलकाता के टेलीग्राफ का कहना है कि केवल लोकपाल बिल से भ्रष्टाचार खत्म नही होगा। उसकी राय में भी लोकतांत्रिक संस्थाओं की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने आंदोलन के प्रति अपेक्षाकृत नरम रुख अपनाया है और लोकपाल बिल के उपबंधों पर विचार करने की सलाह दी है। हिन्दू ने अभी तक इस विषय पर कोई सम्पादकीय नहीं लिखा है।

अंग्रेजी अखबारों के मुकाबले हिन्दी अखबार आंदोलन के प्रति ज्यादा मुखर हैं। जागरण ने अपने 5 अप्रेल के अंक के भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम शीर्षक सम्पादकीय में कहाः-

 यह उत्साहजनक है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन शुरू करने जा रहे प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे को चारों ओर से समर्थन मिल रहा है, लेकिन इससे अधिक निराशाजनक और कुछ नहीं हो सकता कि केंद्र सरकार उनकी मांगें मानने के लिए तैयार नहीं। वह उनसे अनिश्चितकालीन अनशन पर न बैठने के लिए तो अनुरोध कर रही है, लेकिन भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी नियम-कानून बनाने से बच रही है। आखिर अन्ना हजारे यही तो चाह रहे हैं कि आधे-अधूरे और निष्प्रभावी साबित होने वाले लोकपाल विधेयक के स्थान पर ऐसे विधेयक को स्वीकार किया जाए जो इस संस्था को वास्तव में सक्षम बना सके। यह कोई अनुचित मांग नहीं है, लेकिन केंद्र सरकार राष्ट्र को यह समझा पाने में असमर्थ है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़े कुछ विशेषज्ञों की ओर से तैयार किए गए जन लोकपाल विधेयक को क्यों मंजूर नहीं कर सकती? 


दैनिक भास्कर ने अन्ना का अनशन शीर्षक सम्पादकीय में कहा हैः- अन्ना हजारे की इस दलील में दम है कि यह लोकशाही है, जिसमें मालिक जनता है और वह जो चाहती है, जनप्रतिनिधि उसकी अनदेखी नहीं कर सकते। मगर सिविल सोसायटी के एक हिस्से में जनप्रतिनिधियों को लेकर एक गजब का अपमान का भाव देखने को मिलता है। ऐसे भाव के साथ किसी सार्थक एवं लोकतांत्रिक संवाद की शुरुआत नहीं हो सकती। अगर दोनों में से कोई पक्ष अपनी सारी बात थोपने की जिद न करे, तब निश्चय ही संवाद का एक ऐसा पुल बन सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अंतत: एक कारगर लोकपाल की स्थापना संभव हो सकेगी।


राजस्थान पत्रिका ने  परंजॉय गुहा ठाकुरता का लेख छापा है जिसमें कहा गया है कि , अब सरकार नहीं मानेगी, तो अन्ना हजारे का आंदोलन बढ़ेगा। ऎसा नहीं है कि इसमें केवल बुद्धिजीवियों की ही भागीदारी है, इसमें आम लोगों की भागीदारी बढ़ती जाएगी। देरसबेर, केन्द्र सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ की जा रही मांगों पर ध्यान देना होगा। समझ में नहीं आ रहा है कि इस मोर्चे पर सरकार गलती क्यों कर रही है? 





4 comments:

  1. बृजेश सिंह5:03 PM

    आज सुबह इंडियन एक्सप्रेस को देखकर मैं भी चौंका था कि अभी तक अन्ना के मामले को ब्लैक आउट करने वाला एक्सप्रेस आज की लीड में अन्ना के आंदोलन की अंदरूनी फूट पर अचानक लीड क्यों। पर दोपहर तक इसका जवाब मिल गया। इस बार के कथादेश में एक लेख पढ़ रहा था जिसमें लिखा गया है कि राडिया कांड के खुलाफे में जो दो प्रमुख भ्रष्ट पत्रकार टूडे व टाइम्स ग्रुप से हटाए गए उन्हें एक्सप्रेस ने ही गोद लिया है। शेखर गुप्ता का (एक्सप्रेस के संपादक)कांग्रेसी नेताओं लाबीइस्टों से संबंध भी खुल चुका है। अब लोगों को एक्सप्रेस से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

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  2. अच्छी खबर हम सब अन्ना हजारे के साथ हे जय हिंद

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  3. इस आंदोलन और लोकपाल विधेयक का सच अभी सामने नहीं आ रहा है। सच यह है कि कांग्रेस ने आजादी के बाद अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों को यथावत रखा। इस कारण राजनेताओं और नौकरशाहों पर कानून द्वारा सीधी कार्यवाही नहीं हो सकती। अर्थात वे राजा हैं और शेष प्रजा। एक देश में दो कानून। इस कारण लोकपाल विधेयक की मांग बारबार उठी, लेकिन उसे पारित नहीं किया गया। अब जब कांग्रेस सरकार आकंठ भ्रष्‍टाचार में डूबी हुई है और जनता के समक्ष उसका असली चेहरा आ गया है तब उसने कहा कि हम लोकपाल विधेयक पारित करेंगे। तब अन्‍ना हजारे जी ने कहा कि कैसा लोकपाल विधेयक। जिसमें अनेक छेद हो राजनेताओ और नौकरशाहों के बचने के? अत: उन्‍होने एक ड्राफ्‍ट तैयार किया और सरकार को कहा कि ऐसे लोकपाल विधेयक की देश को आवश्‍यकता है। अब सरकार यदि अन्‍ना हजारे वाला विधेयक मान लेती है तब तो अधिकांश नेता और अधिकांश नौकरशाह जेल की सलाखों के पीछे होंगे। कल एक सांसद कह रहे थे कि हमारा संवैधानिक अधिकार है। इसलिए इस देश की जनता को सरकार की मंशा को समझना चाहिए और एक सशक्‍त क्रान्ति के लिए तैयार रहना चाहिए।

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  4. कोई भी आंदोलन और क्रान्ति तभी सफल होगी जब भ्रष्टाचार की जननी ढोंग एवं पाखण्ड पर प्रहार किया जाएगा वर्ना यह आंदोलन संकट से सरकार को उबारने वाला ही सिद्ध होने जा रहा है.

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