Friday, April 15, 2011

कांग्रेस और भगत सिंह


कांग्रेस संदेश के मुखपत्र कांग्रेस संदेश के मार्च अंक में भगत सिंह और राजगुरु की जातीय पृष्ठभूमि का उल्लेख किए जाने पर अनेक लोगों ने विरोध व्यक्त किया है। श्री गिरिजेश कुमार ने जो विचार व्यक्त किए हैं, यहाँ पेश हैं।

ये शहीदों का अपमान है

जिन्होंने अपना जीवन, अंग्रेजी साम्राज्य  से मुक्ति के लिए देश को समर्पित कर दिया उन्हें जाति जैसी संकीर्ण सोच की मानसिकता में बांधना कहाँ तक उचित है? वह भी उस राजनीतिक पार्टी के द्वारा जो राष्ट्रीय पटल पर देश का नेतृत्व कर रही है, या यों कहें कि जिसकी सरकार केन्द्र में है| भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे देश के महानायकों की जाति का उल्लेख कर कांग्रेस ने अपना असली चेहरा उजागर कर दिया है| हालाँकि देश में एक के बाद एक भ्रष्टाचार के तमाम मामले उजागर होने के बाद लोगों का विश्वास केन्द्र सरकार और कांग्रेस से पहले ही उठ चुका था लेकिन इस घृणित  कदम के बाद रही सही कसर भी समाप्त हो गयी|  सवाल है जब देश का नेतृत्व  करने वाली राजनीतिक पार्टी देश के लिए शहीद हुए शहीदों का अपमान करती है तो फिर आम आदमी से क्या अपेक्षा की जाए?

दरअसल कांग्रेस  यह भूल गयी कि जिस आजाद भारत की दुहाई देकर वह आज शासन सत्ता का सुख भोग रही है उसकी बुनियाद, भगत सिंह जैसे कई शहीदों के खून से लिखी गई है| ये लोग किसी जाति, धर्म या संप्रदाय से सम्बन्ध नहीं रखते थे, इनकी जाति मानवता थी और इंसानियत धर्म|  इन्होने कागज के चन्द टुकड़ों के लिए अपने ईमान को नहीं बेचा| लालच के समंदर में फँसकर निजीहित के लिए देशहित की बलि चढ़ाने वाली कांग्रेस पार्टी और उसके करता धर्ता को  भगत सिंह जैसे महानायकों पर जाति का ठप्पा लगाने  का अधिकार किसने दिया?

  
केन्द्र सरकार पिछले कुछ दिनों से  जिस तरह से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरी हुई है उससे बचने के लिए और देश के लोगों का ध्यान ज्वलंत मुद्दों से भटकाने के लिए कांग्रेस पार्टी कुत्सित कोशिश कर रही है| इसी क्रम में उसने अपने मुखपत्र में भगत सिंह और उनके साथियों की जाति का उल्लेख किया है| जबकि सच तो ये है कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के द्वारा किये गए एहसानों का एक चौथाई भी आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी देश और समाज की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और आम लोगों के विकास के लिए लगा देती तो आज हमारे सामने इतनी समस्याएं ना रहती| यहाँ हम यह नहीं भूल सकते कि आज़ादी के इन ६३ सालों में ज्यादातर समय कांग्रेस पार्टी के हाथ में सत्ता की बागडोर रही है| ऐसे में इस आरोप का वह क्या ज़वाब देगी कि देश को तरक्की की राह पर ले जाने के लिए और देशवासियों की तरक्की के लिए उसने कुछ नही किया|

हालाँकि समझने की ज़रूरत यह भी है कि भगत सिंह और उनके साथियों के साथ कांग्रेस का हमेशा से दोहरा व्यवहार कर  रहा है| आजादी आंदोलन के समय भी उन्हें सबसे ज्यादा खतरा भगत सिंह से ही था क्योंकि देश को आजादी दिलाने का क्रेडिट कांग्रेसियों के हाथ से फिसल रहा था और भगत सिंह, गाँधी जी के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय जननायक के तौर पर उभरे थे| इस कुचक्र में गाँधी जी भी फंसे हुए थे और अगर हम भूले ना हों तो भगत सिंह को फाँसी से बचाने के लिए गाँधी जी के प्रयास नाकाफी थे| उलटे उन्होंने यह कहा कि अगर फाँसी देनी ही है तो गाँधी –इरविन समझौतों के पहले क्यों नहीं दे दी जाये? इतिहास के इस सच को हममे से बहुत कम लोग जानते हैं क्योंकि जान बूझकर  ऐसे  तथ्यों को एक साजिश के तहत छुपाया जाता है| इसमें देश की सरकारों का प्रमुख हाथ है| दरअसल, भगत सिंह उस पूँजीवाद के सख्त विरोधी थे जिसकी पैरवी हमारी तथाकथित लोकतान्त्रिक सरकारें करती हैं|

यहाँ  सवाल उस जनमानस का है जो सरकारों को अपना सनातन रखवाला समझते हैं और  सरकारें ऐसी कुम्भकरणी नींद में सोयी रहती हैं  कि उसे आम आदमी की कोई फ़िक्र ही नहीं रहती| सवाल यह उठता है कि अगर सरकारों को इस तरह नंगा नाच ही करना था,जिसमे शहीदों के लिए भी कोई कद्र ना हो तो उस व्यवस्था का नाम लोकतंत्र क्यों रखा गया जिसके बारे में हम कहते हैं कि यह जनता का शासन है और सरकार सेवक है? यह गंभीर आत्म चिंतन का विषय है|


गिरिजेश कुमार

3 comments:

  1. विषय तो चिंतन करने का ही है

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  2. गिरिजेश जी की बातों से शब्दशः सहमत हूँ और जोशी जी का आभारी जो उन्होंने इन ज्वलंत मुद्दों को स्थान दिया.वस्तुतः नर्सिंघाराओ जी कह गए हैं -हम स्वतंत्रता के भ्रम जाल में जी रहे हैं-दी इन्सायीदर में.१९८० के बाद से खुल कर अमेरिकापरस्त नीतियां अपनाने की यही वजह है.

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  3. यह पहली बार नहीं है, कांग्रेस की रीत रही है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी उन्हें आतंकवादी ही संबोधित करते रहे। इसके अलावा एनसीईआरटी की किताबों में भी यही छपता रहा। इसी कांग्रेस ने ही स्वतांत्र्यवीर सावरकर का भी अपमान किया। यह इनकी परिपाटी है।

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