Monday, April 16, 2012

उत्तर कोरिया के नए शासन को झटका


उत्तर कोरिया के चीन से सटे पश्चिमोत्तर इलाके में पिछले शुक्रवार को विफल हुए रॉकेट टेस्ट के बाद दुनिया की निगाहें सुदूर पूर्व के इस देश की ओर घूम गई हैं। किम वंश के तीसरे शासक की यह पहली परीक्षा थी। इस परीक्षण को उनकी उपलब्धि के रूप में पेश किया जा रहा था। सन 2009 में भी इसी किस्म का एक परीक्षण विफल हो चुका है। 17 दिसम्बर 2011 को किम जोंग इल के निधन के बाद उनके सबसे छोटे बेटे किम जोंग-उन को गद्दी मिली है। वे किम वंश के उत्तराधिकारी हैं। क्वांगम्योंगसांग यानी चमकता सितारा नाम के जिस उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जा रहा था, उसे तकरीबन 45 करोड़ डॉलर यानी करीब करीब सवा दो हजार करोड़ के खर्च से तैयार किया गया था। खर्चे का विवरण इसलिए ज़रूरी है कि यह देश भयानक गरीबी का सामना कर रहा है। फरवरी में इसे अमेरिका ने 2,40,000 टन की खाद्य सामग्री देने का वादा किया था। इसे बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि यह रॉकेट परीक्षण संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए किया जा रहा था।



परीक्षण सफल होता तो देश में जबर्दस्त जश्न की तैयारी थी। यह देश के अनंतकाल-राष्ट्रपति (इटरनल प्रेसीडेंट) किम इल सुंग का सौवा जन्मदिन था। इस कार्यक्रम का जबर्दस्त प्रचार किया गया था और इसके लिए विदेशी पत्रकारों को भी आमंत्रित किया गया था। हालांकि उत्तर कोरिया इस परीक्षण को अंतरिक्ष कार्यक्रम का हिस्सा बता रहा है, पर पश्चिमी देश इसे मिसाइल परीक्षण मान रहे थे। पिछले एक दशक से इस देश को वैश्विक मुख्यधारा में शामिल करने की तमाम कोशिशें विफल साबित हुई हैं। और अब डर यह है कि अपनी विफलता की खीझ मिटाने के लिए वह एटमी धमाके कर सकता है। हालांकि वह 2006 में एटमी विस्फोट कर चुका है, जिसके बाद छह देशों के हस्तक्षेप से उसने अपने एटमी कार्यक्रम को छोड़ने का वादा किया था। यह वादा पूरा करने के उसने अपने योंगब्योन प्लांट के रिएक्टर को खत्म करने का काम शुरू भी किया। पर यह काम पूरा नहीं हुआ। इसके पहले सन 2002 में भी वह ऐसा ही अंतरराष्ट्रीय समझौता तोड़ चुका है।

अमेरिका की निगाहें तीन देशों पर हैं। एक है ईरान, दूसरा सीरिया और तीसरा उत्तरी कोरिया। तीनों का एक जगह पर सम्बन्ध है। वह है मिसाइल और एटमी तकनीक। ईरान के मिसाइल कार्यक्रम को भी उत्तरी कोरिया के साथ जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि अक्टूबर 2007 में इस्रायली वायु सेना ने सीरिया के एक एटमी रिएक्टर पर हमला करके उसे ध्वस्त कर दिया था। हालांकि इस हवाई हमले के ज्यादा विवरण नहीं मिलते पर माना जाता है कि यह हमला किसी एटमी रिएक्टर पर था। और यह भी माना जाता है कि यह रिएक्टर उत्तर कोरिया की मदद से बना था। उत्तरी कोरिया कोई बड़ा मिसाइल परीक्षण करने जा रहा है इसकी सूचना पश्चिमी संचार माध्यमों ने कुछ दिन पहले से देनी शुरू कर दी थी। पर पिछले साल अमेरिका के पूर्व रक्षामंत्री रॉबर्ट गेट्स ने चेतावनी दी थी कि अगले पाँच साल में उत्तरी कोरिया अमेरिका के लिए सीधा खतरा बन जाएगा। वह जो अंतर महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र बना रहा है उनकी मार में अमेरिका का अलास्का क्षेत्र आ जाएगा।

उत्तर कोरिया को लेकर कई सवाल हैं। अमेरिका को सीधे निशाने पर रखने में उसका क्या हित है? और अमेरिका जैसी बड़ी ताकत इसे रास्ते पर क्यों नहीं ला पा रही है? दूसरी ओर दक्षिण कोरिया का धैर्य खत्म हो रहा है। वह इस इलाके की बड़ी अर्थ व्यवस्था को तैयार कर रहा है। उसके पड़ोस में पड़ा बारूद का ढेर उसके लिए खतरा है। 23 नवम्बर 2010 को उत्तर कोरिया की ओर से की गई अंधा-धुंध गोलाबारी से दक्षिण कोरिया के कुछ नौसैनिक मारे गए थे। तब एक बड़े युद्ध का खतरा पैदा हो गया था। साल में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब इस इलाके में लड़ाई के बादल मंडराने लगते हैं। हालांकि इस संदर्भ में भारतीय नीति उत्तर कोरिया को मुख्यधारा में बनाए रखने की है, पर इसे सब जानते हैं कि पाकिस्तान का मिसाइल कार्यक्रम उत्तर कोरिया के तेपोदोंग मिसाइल पर आधारित है।

इस लिहाज से उत्तर कोरिया दुनिया से कटा हुआ सबसे जटिल देश है। उसे कम्युनिस्ट देश माना जाता है, पर यह वंश-आधारित साम्यवाद है। किम खानदान कोरियन वर्कर्स पार्टी के भी ऊपर है। और किम इल सुंग यहाँ के भगवान। 1945 से 1995 तक किम इल सुंग का राज रहा और उसके बाद पिछले साल दिसम्बर तक उनके बेटे किम इल जोंग का। 1972 में एक संविधान भी बनाया गया, पर वास्तविक शासन परिवार का है। क्यूबा के फिदेल कास्त्रो और वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज़ की तरह किम खानदान की रंज़िश अमेरिका से है। पर क्या केवल खानदान की ताकत इतनी बड़ी तानाशाही को ढो सकती है? इस देश की कई बातें अचरज भरी हैं। तानाशाही में शिखर पुरुष के ढहने पर सत्ता संघर्ष होता है। पर यहाँ दो बार सत्ता परिवर्तन हो चुका है। वर्तमान शासक अपने पिता के सबसे छोटे पुत्र हैं। तीन बेटों में इन्हें ही क्यों चुना गया, किसने चुना और कैसे चुना इसे बताने वाला कोई नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि तमाम अंदेशों के बावजूद देश की राजनीतिक व्यवस्था में एक प्रकार की स्थिरता है। इसकी वजह शायद सामूहिक नेतृत्व है। देश के संचालन की कोई मशीनरी ज़रूर काम करती है।

एक अरसे के उत्तरी कोरिया अमेरिकी आर्थिक बंदिशों का सामना कर रहा है। देश में अक्सर दुर्भिक्ष की खबर आती है। एक साल अकाल में नौ से बीस लाख के बीच लोग मारे गए, पर किसी बड़ी बगावत की खबर नहीं है। देश में सबसे बड़ा संगठन सेना का है। तकरीबन 94 लाख व्यक्ति परोक्ष अपरोक्ष रूप में फौज से जुड़े हैं। विज्ञान और तकनीक के केन्द्र हथियारों के विकास में लगे हैं। क्या यह राष्ट्रवाद है? हो सकता है, पर इसके निवासियों के मन पर विकसित देशों के प्रति हिकारत का भाव है, जो इसे आतंकवादियों से जोड़ता है। इसके पास एटम बम है जो किसी नादान के हाथ पड़ जाए तो उसका परिणाम भयावह होगा। इसलिए ज़रूरी है कि इसे मुख्यधारा में लाया जाए।
कोरिया की विडंबना है कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इसे दो हिस्सों में बाँट दिया गया। यह काम संयुक्त राष्ट्र के निर्देशन में हुआ था। विभाजन का आधार केवल राजनीतिक था। तमाम भाई-बहन इस विभाजन के कारण एक-दूसरे से दूर हो गए। हालांकि जून 2000 में दोनों देशों ने आपसी विलय के एक समझौते पर दस्तखत किए थे, पर लगता नहीं कि इस दिशा में वे आगे बढ़ पाए हैं। संयुक्त राष्ट्र में दोनों अलग-अलग देशों के रूप में सदस्य हैं। देखना यह है कि रॉकेट परीक्षण में मिली यह विफलता उत्तर कोरिया को किस दिशा में ले जाती है।

सी एक्सप्रेस में प्रकाशित

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