Sunday, May 20, 2012

जेंटलमैंस गेम से कल्चरल क्राइम तक क्रिकेट

हिन्दू में केशव का कार्टून

एक ज़माने तक देश के सबसे लोकप्रिय खेल हॉकी और फुटब़ॉल होते थे। आज क्रिकेट है। ठीक है। देश के लोगों को पसंद है तो अच्छी बात है। अब यह सारे मीडिया पर हावी है। क्रिकेट की खबरें, क्रिकेट के विज्ञापन। बॉलीवुड के अभिनेता, अभिनेत्री क्रिकेट में और सारे देश के नेता क्रिकेट में। पिछले हफ्ते की कुछ खबरों को आधार बनाया जाए तो सारे अपराधी क्रिकेट में और सारे अपराध क्रिकेट में। पिछले हफ्ते बुधवार की रात मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम में कोलकाता नाइट रायडर्स टीम के मालिक शाहरुख खान और स्टेडियम के सिक्योरिटी स्टाफ के बीच ऐसी ठनी कि शाहरुख के वानखेड़े स्टेडियम में प्रवेश पर पाँच साल के लिए पाबंदी लगा दी गई। शाहरुख का रुख और बदले में की गई कार्रवाई दोनों के पीछे गुरूर नज़र आता है। लगता है मुफ्त की कमाई ने सबके दिमागों में अहंकार की आग भर दी है।

इस खबर के निहितार्थ पर आगे चर्चा करेंगे, पर उससे पहले एक और खबर का जिक्र करना ज़रूरी है। आईपीएल मैच खत्म होने के बाद रात में पार्टियाँ होती है। यह भी खिलाड़ियों के कॉण्ट्रैक्ट का एक हिस्सा है। गुरुवार की रात इसी किस्म की एक पार्टी के बाद छेड़छाड़ की एक घटना हुई। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के ऑस्ट्रेलियाई मूल के क्रिकेटर ल्यूक पोमर्सबॉश पर एक अमेरिकी महिला ने आरोप लगाया है कि क्रिकेटर ने उसका चुंबन लेने की कोशिश की और जब उन्होंने उसके साथ ड्रिंक लेने से इनकार किया तो उसने उसके मंगेतर को कई घूंसे जड़े। मामला पुलिस के पास है। इस किस्म की पार्टियों में अक्सर मुक्केबाजी होती है। यह सिर्फ आईपीएल की बात नहीं है। भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम की बात भी है।

पिछले हफ्ते आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के बाबत इंडिया टीवी ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया, जिसके बाद पाँच खिलाड़ियों को सस्पेंड कर दिया गया है। बीसीसीआई ने इस मामले की जाँच शुरू कर दी है। लगता यह है कि ये छोटे खिलाड़ी किसी बड़े मामले को छिपाने के लिए बलि के बकरे बनेंगे। जिस खेल में अब हजारों करोड़ रुपयों के वारे-न्यारे हो रहे हैं, उसमें अपराध इतने छोटे स्तर पर ही नहीं हो रहा होगा। ज़रूर कहीं कोई बड़ी बात छिपी है। एक और खबर का जायज़ा लीजिए। मुंबई में गिरफ्तार एक सट्टेबाज ने आईपीएल में मैच फिक्सिंग का बड़ा खुलासा किया है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक सट्टेबाज ने बताया कि उसने मैच फिक्स करने के लिए श्रीलंका के खिलाड़ी को 10 करोड़ रुपए दिए थे। मुंबई क्राइम ब्रांच ने दो सट्टेबाजों को गिरफ्तार किया था। अखबार में उस श्रीलंकाई खिलाड़ी का नाम नहीं छपा है। अलबत्ता सट्टेबाज ने दावा किया है कि फिक्सिंग के खेल में कुछ भारतीय खिलाड़ी भी शामिल हैं। इस बात का शक है कि सट्टेबाजी के इस गिरोह के लोग दाऊद के दाहिना हाथ छोटा शकील के लिए काम करते हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक इन सट्टेबाजों का मासिक टर्नओवर करीब 500 करोड़ रुपए का है। इस गिरोह के तार देश मे दिल्ली, मुंबई के अलावा राजस्थान, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और गुजरात में तो हैं ही, दक्षिण अफ्रीका, सउदी अरब, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी इस गिरोह के सदस्य हैं।

शायद अभी कुछ और खबरों का हमें इंतज़ार है। अलबत्ता भारतीय क्रिकेट टीम के पुराने खिलाड़ी और वर्तमान सांसद कीर्ति आजाद ने कहा है कि आईपीएल क्रिकट का हिस्सा नहीं है ये सिर्फ आज मनी लाउंडरिंग का जरिया बन गया है। अब आईपीएल से बलात्कार की खबर आना ही बाकी रह गया है। कीर्ति ने इसे बंद करने की मांग की है और कहा कि इसके लिए मैं भूख हड़ताल करूँगा।

आईपीएल और बीसीसीआई को पारदर्शी बनाने की ज़रूरत है। यह खेल है तो इसे खेल की तरह लेना चाहिए। चूंकि बीसीसीआई भारतीय क्रिकेट टीम को तैयार करती है। इसके साथ रा।ट्रीय प्रतिष्ठा जुड़ी है। उसके खाते आरटीआई के लिए खुलने चाहिए और आईपीएल के तमाशे को कड़े नियमन के अधीन लाया जाना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो यह मामला सरकार के गले की हड्डी बन जाएगा। आईपीएल जैसी खेल संस्कृति को जन्म दे रहा है वह खतरनाक है। उससे ज्यादा खतरनाक है इसकी आड़ में चल रही आपराधिक गतिविधियाँ जिनका अभी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। हाँ यह समझ में आ रहा है कि दाऊद इब्राहीम जैसे माफिया भी इसके कारोबार की ओर मुखातिब हुए हैं। खेल मंत्री अजय माकन ने ठीक माँग की है कि बीसीसीआई खुद को आईपीएल से अलग करे। अभी जिन पाँच खिलाड़ियों पर कार्रवाई की गई है वह अपर्याप्त है, क्योंकि सम्भव है कि इसमें अनेक मोटी मछलियाँ सामने आएं।

आईपीएल इंग्लिश प्रीमियर लीग की तर्ज पर काम करती है। पर इंग्लिश प्रीमियर लीग अपने मूल खेल संघ का हिस्सा नहीं होती। वह सख्त नियमों के तहत काम करती है। बीसीसीआई ने पहले तो देश में प्रीमियर लीग बनने नहीं दी, उसके बाद खुद अपनी प्रतियोगिता शुरू करने की ठान ली। क्या वजह है कि खेल संगठनों में इतने राजनेता क्यों घुस गए हैं? क्यों नहीं खेल संगठन खिलाड़ियों और खेल में दखल रखने वालों के हाथों में हैं? आईपीएल के चक्कर में शशि थरूर को पद छोड़ना पड़ा था।

जब से आईपीएल शुरू हुई है तबसे कुछ न कुछ विवाद हर साल सामने आया है। इसे परचूनी की दुकान की तरह चलाना इसका सबसे बड़ा दोष है। रहे इस खेल का पूर्ण सत्य पता नहीं कब सामने आएगा, पर स्टिंग ऑपरेशन के बाद पांच छोटे खिलाड़ियों का सस्पेंशन बात को टालने की कोशिश मात्र है। खेल में किस तरह का पैसा है और कौन सारे खेल चला रहा है इसे लेकर तमाम सवाल हैं और बीसीसीआई खामोश है। क्रिकेट जेंटलमैंस गेम माना जाता था, पर आज इसमें कई तरह के आपराधिक तत्व शामिल हो गए हैं। जैसे-जैसे यह हमारे ड्राइंग रूम में आया है वैसे-वैसे मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग बढ़ती चली गई। खिलाड़ियों के मन में पैसा कमाने की चाहत और एक-दूसरे से ईर्ष्या का भाव भी है।

पिछले साल अगस्त के महीने में खेल और युवा मामलों के मंत्री अजय माकन ने कैबिनेट के सामने एक कानून का मसौदा रखा। राष्ट्रीय खेल विकास अधिनियम 2011 का उद्देश्य खेल संघों के काम काज को पारदर्शी बनाने का था। इस कानून के तहत खेल संघों को जानकारी पाने के अधिकार आरटीआई के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव था। साथ ही इन संगठनों के पदाधिकारियों को ज्यादा से ज्यादा 12 साल तक संगठन की सेवा करने या 70 साल का उम्र होने पर अलग हो जाने की व्यवस्था की गई थी। जिस कैबिनेट बैठक में इस कानून पर विचार किया जाना था उसमें शरद पवार भी थे, जिन्होंने इस कानून की बुनियादी बातों पर आपत्ति व्यक्त की। कॉमनवैल्थ गेम्स के बाद से देश में तमाम तरह के घोटालों की शुरुआत हुई है। उसके पहले खेलमंत्री एमएस गिल यह कोशिश कर रहे थे कि खेलसंघों का नियमन किया जाए। जिन खेलों में पैसा है वे किसी प्रकार के नियमन नहीं चाहते। पिछले साल फॉर्मूला वन के उद्घाटन समारोह में देश के खेल मंत्री को बुलाया नहीं गया। यह खेल सरकार की मदद से नहीं चलता। इसलिए खेलमंत्री की वहाँ ज़रूरत नहीं थी। पर पीछे की बात यह पता लगी कि आयोजकों को सरकार से टैक्स छूट की उम्मीद थी जो नहीं मिली। खेलमंत्री अजय माकन ने ऐसा तो नहीं कहा, पर उनकी खिन्नता भी छिपी नहीं रही। कालीकट में पीटी उषा अकादमी के सिंथैटिक ट्रैक के शिलान्यास समारोह में गए अजय माकन ने कहा कि इस समारोह में मुझे इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि मैं चियर गर्ल नहीं हूँ

वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख खान वाला मामला भी विचित्र है। कोई भी व्यक्ति शाहरुख के दुर्व्यवहार के समर्थन नहीं करेगा। पर मुम्बई क्रिकेट एसोसिएशन ने जितनी तेजी से फैसला किया वह भी आश्चर्यजनक है। लगता है हर स्तर पर गुरूर और अहंकार का बोलबाला है। मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने अपने अधिकारियों और सिक्योरिटी गार्ड के खिलाफ शाहरुख की कथित हाथापाई और गाली-गलौच के सबूत मुम्बई पुलिस को नहीं दिए, पर प्रवेश कौन करेगा या नहीं करेगा इसका फैसला कर लिया। इतने छोटे मामले को तूल देने की ज़रूरत नहीं थी, पर यह इतना बढ़ गया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपील करनी पड़ी कि फैसले पर फिर से विचार करें। दोष खेल में नहीं है, उस संस्कृति में है जो इस खेल के बहाने प्रवेश कर रही है।
हाईटेक न्यूज़ में प्रकाशित

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