Sunday, September 23, 2012

आनन्द बाज़ार का एबेला


शायद यह टाइम्स ऑफ इंडिया के बांग्ला बाज़ार में प्रवेश की पेशबंदी है या नए पाठकों की तलाश। आनन्द बाज़ार पत्रिका ने एबेला नाम से नया दैनिक पत्र शुरू किया है, जिसका लक्ष्य युवा पाठक हैं। यह पूरी तरह टेब्लॉयड है। रूप और आकार दोनों में। हिन्दी में जागरण के आई नेक्स्ट, अमर उजाला के कॉम्पैक्ट, भास्कर के डीबी भास्कर और हिन्दुस्तान के युवा की तरह। पर इन सबके मुकाबले बेहतर नियोजित।

बेनेट कोलमैन का इरादा इस साल के अंत तक बांग्ला अखबार शुरू करने का है। किसी ज़माने में कोलकाता से नवभारत टाइम्स भी निकलता था। पर टाइम्स ग्रुप हिन्दी के बजाय बांग्ला में जाना चाहता है। टाइम्स हाउस का बांग्ला अखबार कैसा होगा, वह किस वर्ग को टार्गेट करेगा और कब आएगा इस पर कयास हीं हैं। बीसीसीएल के चीफ मार्केटिंग राहुल कंसल को उद्धृत करते हुए जो खबरें आई हैं उनके अनुसार टाइम्स हाउस इस अखबार की सम्भावनाओं को समझ रहा है। पहले अनुमान था कि यह 15 अगस्त तक आ जाएगा और इसका नाम समय होगा। बहरहाल उससे पहले एबेला आ गया है।

एबेला माने इस घड़ी या इस बेला। सुबह या शाम। 32 पेज के इस अखबार में 10 पेज खबरों के बाकी पर खेल, सिनेमा और मनोरंजन। खबरें पेश करने का तरीका भी आनन्द बाज़ार की तरह संज़ीदा न होकर थोड़ा रोचक और हटकर है। मसलन 21 सितम्बर के अंक में 20 के भारत बंद की खबर बंद के अर्थशास्त्र पर ज्यादा है। पहले पेज का शीर्षक है ममता केन खुशि। लेफ्ट का बंद होने के बावज़ूद इस बंद से ममता क्यों खुश हैं।

एबेला पूरी तरह रंगीन है। सामग्री और छपाई दोनों में। कॉमिक्स का पेज है। पहेलियाँ हैं, इंटरव्यू हैं और रोचक बातें है। इसके लिए ब्लर्ब और बॉक्सों का पूरा इस्तेमाल किया गया है। पूरा मसाला है, पर सनसनी उतनी नहीं है जितनी यूरोपियन टेब्लॉयड अखबारों में होती है। कीमत है एक रुपया।





1 comment:

  1. पाठक को ध्यान रख कर समाचार पत्र बनते जा रहे हैं।

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