Monday, September 8, 2014

सिर्फ लिटरेसी नहीं, टेक-लिटरेसी

साक्षरता की अवधारणा ने तभी जन्म लिया जब अक्षर का आविष्कार हुआ. अक्षर के पहले भाषा, बोली और नज़र आने वाले चिह्नों का आविष्कार हुआ था. जो लोग उस नए ज्ञान से लैस नहीं थे, वे निरक्षर थे. यह बात ईसा के आठ से दस हजार साल पहले की है. दुर्भाग्य है कि निरक्षरता आज भी कायम है. खासतौर से हमारे जैसे समाज में. यूनेस्को के अनुसार साक्षरता का मतलब है विभिन्न संदर्भों में मुद्रित और लिखित सामग्री को पहचान पाना, समझ पाना, गिन पाना और दूसरों को बता पाना. यानी यह केवल अक्षर ज्ञान नहीं है. इसका अर्थ निरंतर बदल रहा है. अपने समुदाय से लेकर वैश्विक गतिविधियों तक को समझना और अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करना अब इसमें शामिल है. यह टेक्नोट्रॉनिक लिटरेसी और डिजिटल डिवाइड का ज़माना है. बेशक हम अभी अक्षर ज्ञान के दौर में हैं, पर हमें साक्षरता के नए इलाकों की सैर भी करनी होगी.

साक्षरता का मतलब
अनपढ़ या निरक्षर होना सामाजिक-आर्थिक विषमता का पहला प्रतीक है. इसका मतलब यह भी है कि व्यक्ति दुनिया के तौर-तरीकों से वाकिफ नहीं है. विज़ुअल लिटरेसी का मतलब है फोटो, नक्शे, वीडियो और बॉडी लैंग्वेज का मतलब समझ पाना. आप कल्पना करें दो सौ साल पहले दुनिया से गया कोई व्यक्ति आज वापस आए और उसे सिनेमा दिखाया जाए तो वह क्या समझ पाएगा. एक फ्रेम के लांग शॉट में हाथी और क्लोज़अप में मक्खी को देखने-समझने में हमें जितनी आसानी है, वह दो सौ साल पुराने व्यक्ति के लिए उतनी ही मुश्किल भरी होगी. उसे सिनेमा की भाषा समझ में नहीं आएगी. साउंड ट्रैक का इस्तेमाल उसकी कल्पना के परे होगा.

शहरी और ग्रामीण जीवन में बढ़ रहा है फासला
वैश्विक प्रतीक तेजी से बदल रहे हैं. शहरी जीवन से अपरिचित व्यक्ति के लिए कार के हॉर्न की आवाज का कोई मतलब नहीं. एम्बुलेंस के सायरन का मतलब भी वह नहीं समझता, ट्रैफिक कांस्टेबल के संकेतों का उसके लिए कोई अर्थ नहीं. मेट्रो का दरवाजा खुलने और बंद होने की सूचना देने वाली आवाजें उसके लिए कोई माने नहीं रखतीं. दूर से आती रेलगाड़ी के वेग का उसे अनुमान नहीं होता. शहरी जीवन ने समय के साथ जो बॉडी लैंग्वेज तैयार की है उससे उसका परिचय नहीं है. वह पढ़ना जानता भी हो तो शायद इलेक्ट्रॉनिक टेक्स्ट पढ़ना नहीं जानता. हमारी लिपियों में हाल में स्माइली शामिल हो गई और हमें पता नहीं चला. पर तमाम लोग आज भी उनसे अपरिचित हैं. वे साक्षर हैं, पर मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक टेक्स्ट के बदलावों से परिचित नहीं हैं. यानी साक्षरता अब सिर्फ संख्याओं और अक्षरों के ज्ञान तक सीमित नहीं है. अब केवल लिखने या पढ़ने से काम नहीं होता. आपको सुविधाएं चाहिए तो किसी न किसी तकनीक की मदद लेनी होगी.

सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए तकनीकी ज्ञान जरूरी
रेलवे रिज़र्वेशन, सिनेमा का टिकट, इनकम टैक्स, सम्पत्ति का रजिस्ट्रेशन, नेट बैंकिंग हर चीज़ आपके करीब आ रही है. कम्प्यूटर और मोबाइल ने आपको सारी दुनिया से जोड़ दिया है. देश के किसी भी इलाके में चले जाइए गाँव हो या शहर. गली, नुक्कड़ या चौराहे पर आपको मोबाइल फोन और रिचार्ज की दुकान जरूर मिलेगी. पान मसाला की तरह मोबाइल सिम कार्ड बिकता है. फोन करना, रिसीव करना, टैक्स्ट मैसेज भेजना अब आम है. यह पिछले दस साल से भी कम की उपलब्धि है. और अब स्मार्ट फोन का ज़माना है. ई-मेल तो हर फोन में है. ह्वाट्सएप आम है, तमाम तरह के एप्स आपके फोन में हैं. खाली समय में गेम्स, वीडियो शेयर, अपने शहर की खबरें और घूस माँगने वाले दरोगा जी का स्टिंग सब कुछ मोबाइल फोन से सम्भव है. पर इसके लिए नए किस्म की साक्षरता चाहिए. चार साल का बच्चा अपने पिताजी के मुकाबले ज्यादा तेजी के साथ खट-खट करके फोन लगा लेता है.

बस का टिकट अब हैंड हैल्ड उपकरण काटता है, मेट्रो से चलना है तो उसके कार्ड का इस्तेमाल समझना होगा, एस्कैलेटर पर कदम रखना सीख लीजिए अन्यथा बीसियों सीढ़ियाँ चढ़नी होंगी. सम्पत्ति कर की लाइन लगने के बजाय ऑनलाइन जमा कर दीजिए. परचूनी की दुकान को ऑनलाइन आदेश दीजिए सामान घर पहुँच जाएगा, रहते हैं रांची में और खाना चाहते हैं बंगाली रसगुल्ला तो कोई दिक्कत नहीं ऑनलाइन ऑर्डर करें घर पहुँचा दिया जाएगा. पसंदीदा टीवी कार्यक्रम आने वाला है, पर आपको घर से बाहर रहना है. कोई बात नहीं अब आपके मोबाइल पर डीटीएच है.


डिजिटल इंडिया का लाभ
इस साल लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डिजिटल इंडिया की बात की थी. मोदी के डिजिटल इंडिया में हर गांव ब्रॉडबैंड से जोड़ा जाएगा. ब्रॉडबैंड यानी तेज गति का इंटरनेट कनेक्शन. इस तेज इंटरनेट से स्कूल कॉलेजों में पढ़ाई, टेलिमेडिसन यानी डॉक्टरी मदद, खबरें, बैंक खाते, सरकारी सेवाएं वगैरह सब जुड़ेंगी. तमाम तरह के फॉर्म भरना और सरकारी काम इंटरनेट के जरिए करना भी इसमें शामिल है. यह डिजिटल इंडिया आपके मोबाइल फोन में होगा. और आपकी भाषा में होगा. पर इसका फायदा उठाने के लिए आपको टेक्नोलॉजी लिटरेट होना होगा. आपकी एमए की डिग्री इसकी गारंटी नहीं देती.

मोबाइल फोन से क्रांति
विश्व बैंक ने मोबाइल फोन को इतिहास की सबसे बड़ी मशीन बताया है. सबसे बड़ी आकार में नहीं गुण में. विकसित देशों में मोबाइल फोन शत-प्रतिशत नागरिकों के पास है, पर भारत में जिस तेजी से उसका विस्तार हो रहा है वह असाधारण है. मोबाइल ने हमारे भीतर जबर्दस्त सामाजिक परिवर्तन किया है. खासतौर से कमजोर वर्गों को ताकतवर बनाने में मोबाइल फोन की भूमिका है. टेलीफोन रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार इस साल मई में भारत में मोबाइल कनेक्शनों की संख्या 93 करोड़ 30 लाख के ऊपर थी. इनमें से 30 फीसदी कनेक्शनों को निष्क्रिय या डुप्लीकेट मान लें तब भी 60 करोड़ से ज्यादा कनेक्शन हैं यानी कि हर दूसरे भारतीय के पास फोन है.

देशी भाषाओं में नेट सर्फिंग
गूगल के वैश्विक एरिक श्मिट पिछले साल मार्च के महीने में भारत आए थे. उनका कहना था कि सन 2020 तक भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 60 करोड़ से ऊपर होगी. इनमें से 30 करोड़ लोग हिन्दी तथा दूसरी भाषाओं में नेट सर्फ करेंगे. भारतीय भाषाओं के लिए गूगल खासतौर से अनुसंधान कर रहा है. गूगल ट्रांस्क्रिप्शनट्रांसलेशन तथा इसी प्रकार के काम. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमआई) तथा मार्केटिंग रिसर्च से जुड़ी संस्था आईएमआरबी ने पिछले कुछ साल से भारतीय भाषाओं में नेट सर्फिंग की स्थिति पर डेटा बनाना शुरू किया है. इस साल जनवरी में जारी इनकी रपट के अनुसार भारत में तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोग भारतीय भाषाओं में नेट की सैर करते हैं. शहरों में तकरीबन 25 फीसदी और गाँवों में लगभग 64 फीसदी लोग भारतीय भाषाओं में नेट पर जाते हैं.

ज्ञानी व्यक्ति का एक नया पर्यायवाची शब्द है कनेक्टेड. जो दुनिया के सम्पर्क में है वह ज्ञानी है और समृद्ध भी. विकसित और विकासशील के भेद को बताने वाला नया शब्द है डिजिटल डिवाइड. यह भेद एक ही देश के भीतर भी है. जो इलाके कनेक्टेड नहीं हैं, वे पिछड़े हैं. किसी भी देश की प्रगति का परिचायक है उसकी ब्रॉडबैंड क्षमता. एक नया सूचकांक सामने आया है एक नया सूचकांक सामने आया है डिजिटल अपॉर्च्युनिटी इंडेक्स. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन ने यह सूचकांक तैयार किया है जो सूचना तकनीक से जुड़े तमाम आँकड़ों के आधार पर बताता है कि फलां देश में ब्रॉडबैंड की स्थिति क्या है, लोगों के पास कम्प्यूटरों की उपलब्धि कैसी है, फोन लाइनें कैसी हैं वगैरह. इस सूचकांक के आधार पर दक्षिण कोरिया नम्बर एक देश है, स्वीडन नम्बर दो और डेनमार्क नम्बर तीन. इसमें अमेरिका पन्द्रहवें और भारत 69 वें नम्बर पर था.

इनफॉरमेशन सोसाइटी
सामाजिक परिभाषाएं बदल रहीं हैं. सजग और सफल समाज का नया नाम है सूचना समाज या इनफॉरमेशन सोसाइटी. वह समाज जिसकी तकनीक तक पहुँच है. जिसके पास तकनीक है वह अपनी सुविधाएं बढ़ा सकता है. असमानता का नया नाम है डिजिटल डिवाइड. व्यक्तियों और समुदायों के इस भेद को अब नए किस्म की साक्षरता के सहारे लड़ा जा सकता है. यह साक्षरता डिजिटल है. ऑप्टिकल फाइबर और इनफॉरमेशन हाइवे इसके राजमार्ग हैं और जागरूक नागरिक इसके पहरेदार. पर हमारी कहानी बुनियाद से शुरू होती है. जो लोग इस लेख को पढ़ सकते हैं वे ही अपनी स्थिति को बदलने के बारे में सोचेंगे. इसलिए हमें पहले अपने साक्षरता अभियान को सफल बनाना होगा. हमें याद रखना होगा कि जापान ने उन्नीसवीं सदी के मध्य में शत-प्रतिशत साक्षरता की दर हासिल कर ली थी. बहरहाल इस महीने के अंतिम सप्ताह में हमारा मंगलयान अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव में पहुँचने वाला है. उसकी सफलता हमारी तकनीक के लिए नया संदेश लेकर आएगी. नई तकनीक हमारे लिए सुख और समृद्धि के संदेश लेकर आ रही है। उसका स्वागत करें.  

प्रभात खबर में प्रकाशित

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