Thursday, January 22, 2015

पत्रकार की नौकरी और स्वतंत्रता

पंकज श्रीवास्तव की बर्खास्तगी के बाद मीडिया की नौकरी और कवरेज को लेकर कुछ सवाल उठेंगे। ये सवाल एकतरफा नहीं हैं। पहला सवाल यह है कि मीडिया हाउसों की कवरेज कितनी स्वतंत्र और निष्पक्ष है? दूसरा यह कि किसी पत्रकार की सेवा किस हद तक सुरक्षित है? तीसरा यह कि सम्पादकीय विभाग के कवरेज से जुड़े निर्णय किस आधार पर होते हैं? यह भी पत्रकार के व्यक्तिगत आग्रहों और चैनल की नीतियों में टकराव होने पर क्या होना चाहिए? संयोग से इसी चैनल के एक पुराने एंकर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए और लोकसभा चुनाव भी लड़ा। पंकज श्रीवास्तव ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वे राजनीति में आना चाहते हैं। वे मानते है कि उनके चैनल की कवरेज असंतुलित है। चैनल क्या इस बात को जानता नहीं? बेशक वह सायास झुकाव के लिए भी स्वतंत्र है। चैनलो से उम्मीद की जाती है कि वे तटस्थ होकर काम करेंगे। पर क्या यह तटस्थता व्यावहारिक रूप से सम्भव है? खासतौर से तब जब पत्रकार की अपनी राजनीतिक धारणाएं हैं और दूसरी ओर चैनल के व्यावसायिक हित हैं।


लोकसभा चुनाव के दौरान कमर वहीद नकवी ने इंडिया टीवी से इस्तीफा दिया था। नकवी जी ने इस्तीफे के कारणों को लेकर सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा था। वह मामला जहाँ का तहाँ रहा। उन्ही दिनों हरतोष बल, सिद्धार्थ बरदराजन, राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोष से जुड़े प्रसंग भी सामने आए। ज्यादातर मामलों में कमोबेश दिल्ली में सत्ता परिवर्तन का आहट थी। क्या यह दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है या हम एक खास तरह के राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान के आदी थे और दूसरे किस्म के प्रतिष्ठान के लिए तैयार नहीं हैं। पंकज श्रीवास्तव ने अपने मामले को फेसबुक के मार्फत सार्वजनिक किया है। उनके अपडेट से साफ है कि उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया गया। बेहद नाजुक मौके पर यह बर्खास्तगी हुई है। इसमें केवल उनके व्यक्तिगत हितों और सेवा शर्तों का मामला होता तो बात अलग थी। पत्रकार के व्यक्तिगत अधिकारों को कमतर नहीं आँका जाना चाहिए। इस मामले में पत्रकारीय स्वतंत्रता और मीडिया प्रबंधन के अधिकारों का मामला भी शामिल है। ऐसे प्रश्नों को ज्यादा बड़े स्तर पर ले जाना चाहिए। बेहतर हो कि हमारी संसद भी ऐसे मसलों पर विचार करे।

और मैं आईबीएन 7 के एसो.एडिटर पद से बर्खास्त हुआ !!! सात साल बाद अचानक सच बोलना गुनाह हो गया !!!!
कल शाम आईबीएन 7 के डिप्टी मैनेजिंग एडिटर सुमित अवस्थी को दो मोबाइल संदेश भेजे। इरादा उन्हें बताना था कि चैनल केजरीवाल के खिलाफ पक्षपाती खबरें दिखा रहा है, जो पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों के खिलाफ है। बतौर एसो.एडिटर संपादकीय बैठकों में भी यह बात उठाता रहता था, लेकिन हर तरफ से 'किरन का करिश्मा' दिखाने का निर्देश था।दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष सतीश उपाध्याय पर बिजली मीटर लगाने को लेकर लगे आरोपों और उनकी कंपनी में उनके भाई उमेश उपाध्याय की भागीदारी के खुलासे के बाद हालात और खराब हो गये।उमेश उपाध्याय आईबीएन 7 के संपादकीय प्रमुख हैं। मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। मैंने सुमित को यह सोचकर एसएमएस किया कि वे पहले इस कंपनी में रिपोर्टर बतौर काम कर चुके हैं, मेरी पीड़ा समझेंगे। लेकिन इसके डेढ़ घंटे मुझे तुरंत प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया। नियमत: ऐसे मामलों में एक महीने का नोटिस और 'शो काॅज़' देना जरूरी है।
पिछले साल मुकेश अंबानी की कंपनी के नेटवर्क 18 के मालिक बनने के बाद 7 जुलाई को 'टाउन हाॅल' आयोजित किया गया था (आईबीएन 7 और सीएनएन आईबीएन के सभी कर्मचरियों की आम सभा ) तो मैंने कामकाज में आजादी का सवाल उठाया था। तब सार्वजनिक आश्वासन दिया गया था कि पत्रकारिता के पेशेगत मूल्यों को बरकरार रखा जाएगा। दुर्भाग्य से मैने इस पर यकीन कर लिया था।
बहरहाल मेरे सामने इस्तीफा देकर चुपचाप निकल जाने का विकल्प भी रखा गया था।यह भी कहा गया कि दूसरी जगह नौकरी दिलाने में मदद की जाएगी। लेकिन मैंने कानूनी लड़ाई का मन बनाया ताकि तय हो जाये कि मीडिया कंपनियाँ मनमाने तरीके से पत्रकारों को नहीं निकाल सकतीं ।
इस लड़ाई में मुझे आप सबका साथ चाहिये। नैतिक भी और भौतिक भी।बहुत दिनों बाद 'मुक्ति' को महसूस कर रहा हूं। लग रहा है कि इलाहाबाद विश्वविदयालय की युनिवर्सिटी रोड पर फिर मुठ्ठी ताने खड़ा हूँ।
पिछले साल मुकेश अंबानी की कंपनी के नेटवर्क 18 के मालिक बनने के बाद 7 जुलाई को 'टाउन हाॅल' आयोजित किया गया था (आईबीएन 7 और सीएनएन आईबीएन के सभी कर्मचरियों की आम सभा ) तो मैंने कामकाज में आजादी का सवाल उठाया था। तब सार्वजनिक आश्वासन दिया गया था कि पत्रकारिता के पेशेगत मूल्यों को बरकरार रखा जाएगा। दुर्भाग्य से मैने इस पर यकीन कर लिया था।बहरहाल मेरे सामने इस्तीफा देकर चुपचाप निकल जाने का विकल्प भी रखा गया था।यह भी कहा गया कि दूसरी जगह नौकरी दिलाने में मदद की जाएगी। लेकिन मैंने कानूनी लड़ाई का मन बनाया ताकि तय हो जाये कि मीडिया कंपनियाँ मनमाने तरीके से पत्रकारों को नहीं निकाल सकतीं ।इस लड़ाई में मुझे आप सबका साथ चाहिये। नैतिक भी और भौतिक भी।बहुत दिनों बाद 'मुक्ति' को महसूस कर रहा हूं। लग रहा है कि इलाहाबाद विश्वविदयालय की युनिवर्सिटी रोड पर फिर मुठ्ठी ताने खड़ा हूँ।मुझसे संपर्क का नंबर रहेगा----09873014510


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