Saturday, July 4, 2015

‘डिजिटल इंडिया’ के लिए क्या हम तैयार हैं?

मोबाइल फोन की वजह से भारत में कितना बड़ा बदलाव आया?  हमने इसे अपनी आँखों से देखा है।  पर इस बदलाव के अंतर्विरोध भी हैं। पिछले दिनों हरियाणा की दो लड़कियों के साथ एक बस में कुछ लड़कों की मारपीट हुई। इसका किसी ने अपने मोबाइल फोन में वीडियो बना लिया। उस वीडियो से लड़कों पर आरोप लग रहे थे तो एक और वीडियो सामने आ गया। जब सारे पहलुओं पर गौर किया जाए तो कुछ निष्कर्ष बदले। ऐसा ही एक वीडियो दिल्ली में एक ट्रैफिक पुलिस कर्मी और एक स्कूटर सवार महिला के बीच झगड़े का नमूदार हुआ। वीडियो के जवाब में एक और वीडियो आया। पूरे देश में सैकड़ों, हजारों ऐसे वीडियो हर समय बनने लगे हैं। सिर्फ झगड़ों के ही नहीं। सैर-सपाटों, जन्मदिन, समारोहों, जयंतियों, मीटिंगों और अपराध के।

सॉफ्टवेयर के मामले में भारत दुनिया का नम्बर एक देश कब और कैसे बन गया, इसके बारे में आपने कभी सोचा? पिछले तीन-साढ़े तीन दशक में भारी बदलाव आया है। सन 1986 में सेंटर फॉर रेलवे सिस्टम (सीआरआईएस-क्रिस) की स्थापना हुई, जिसने यात्रियों के सीट रिज़र्वेशन की प्रणाली का विकास किया। हालांकि इस सिस्टम को लेकर अब भी शिकायतें हैं, पर इसमें दो राय नहीं कि तीन दशक पहले की और आज की रेल यात्रा में बुनियादी बदलाव आ चुका है। पूरे देश में यात्रियों का आवागमन कई गुना बढ़ा है। यह आवागमन बढ़ता ही जा रहा है। ऐसी क्रांति दुनिया में कहीं नहीं हुई। पिछले साल दीवाली के मौके पर अचानक ई-रिटेल के कारोबार ने दस्तक दी। इसके कारण केवल सेवा का विस्तार ही नहीं हुआ है, नए किस्म के रोजगार भी तैयार हुए हैं।


पिछले बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए कहा कि यह तकनीक सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लेकर आएगी। उन्होंने इसके लिए कोल ब्लॉक्स की नीलामी का उदाहरण दिया। नीलामियों और सरकारी सौदों में आज भी गोपनीयता की काली चादर पड़ी है। डिजिटल तकनीक इसे काफी सीमा तक पारदर्शी बनाने में मददगार साबित हो रही है। सम्पत्तियों का पंजीकरण डिजिटाइज होने से कार्य-कुशलता बढ़ी है। पासपोर्ट बनाने में तमाम धांधलियाँ हैं, पर आप कम से कम अपने काम की प्रगति कम्प्यूटर पर देख सकते हैं। कई तरह के बिल आप कम्प्यूटर पर जमा कर सकते हैं। कई तरह के फॉर्म हासिल कर सकते हैं और तमाम तरह की अर्जियाँ जमा कर सकते हैं। पारदर्शिता के साथ-साथ तकनीक ने आपका समय भी बचाया है। 

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत तीन दिशाओं में काम होगा। पहला इसके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना, दूसरे कई तरह की सेवाओं को डिजिटल आधार पर उपलब्ध कराना और तीसरे कम्प्यूटर लिटरेसी बढ़ाना। अभी तक साक्षरता को जरूरी माना जाता था। अब कम्प्यूटर साक्षरता जरूरी साबित होने वाली है। देश के उद्योगपति इस परियोजना के लिए तकरीबन साढ़े चार लाख करोड़ रुपए लगाने जा रहे हैं।

सरकार ने ढाई लाख गाँवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने की योजना बनाई है। सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने का विचार है। इसके लिए शुरू में ढाई लाख स्कूलों में फ्री वाई-फाई होगा। स्कूलों में तकनीक के इस्तेमाल से बस्ते का बोझ कम होगा। स्कॉलरशिप का फॉर्म इंटरनेट पर होगा। अस्पतालों में लाइन नहीं लगानी पड़ेगी। डॉक्टर का समय इंटरनेट पर मिल जाएगा। जांच रिपोर्ट भी इंटरनेट पर मिलेगी। दवाएं भी आप इंटरनेट से मंगवा सकेंगे। सरकार के अनुसार देश के हर शहर और गांव तक ये सुविधा तीन साल में पहुंच जाएगी। किसान को बारिश से लेकर बीज तक की जानकारी इंटरनेट पर मिलेगी। मंडियाँ इंटरनेट से जुड़ी होंगी, अपने माल का बाजार भाव इंटरनेट पर ही मिलेगा। मुआवजा और कर्ज सुविधाएं मोबाइल फोन पर उपलब्ध होंगी। दस्तावेजों को ई-लॉकर में रखने पर वे सुरक्षित रहेंगे और साथ ही उन्हें कहीं भेजना हो तो वे सीधे नेट के मार्फत भेजे जा सकेंगे।

मोबाइल पर पुलिस, मोबाइल पर बैंक, मोबाइल पर टेंडर, मोबाइल पर ही कोर्ट कचहरी जैसी हर सुविधा देने का दावा किया गया है। यह कोई काल्पनिक दावा नहीं है। दुनिया के विकसित देशों में ये सुविधाएं उपलब्ध हैं। हमारे देश की परिस्थितियों को देखते हुए इस सिलसिले में कुछ सवाल उठते हैं। क्या हमारे पास इसके लिए जरूरी आधार ढाँचा मौजूद है? हमारे यहाँ ब्रॉडबैंड की स्थिति अभी बहुत अच्छी नहीं है। दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में स्थिति हमसे बेहतर है। भारतीय भाषाओं में नेट सर्फिंग तेजी से बढ़ी है, पर वह वैश्विक प्रवृत्तियों से काफी पीछे है।

सरकार ने इस अभियान के तहत जिन कुछ लक्ष्यों को हासिल करने का इरादा ज़ाहिर किया है उन्हें देखें। पहला लक्ष्य है ब्रॉडबैंड हाइवे। देश के आख़िरी घर को ब्रॉडबैंड से जोड़ने की कोशिश। इसका पेच यह है कि नेशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क प्रोग्राम लक्ष्य से तीन-चार साल पीछे चल रहा है। दूसरा लक्ष्य है सबके पास फोन की उपलब्धता, जिसके लिए ज़रूरी है कि लोगों के पास फ़ोन खरीदने की क्षमता हो। इसके समांतर सस्ते फोन तैयार करने की जरूरत भी है। महंगे फोन की विदेशी तकनीक के मुकाबले स्वदेशी तकनीक तैयार करने की जरूरत है।

इंटरनेट एक्सेस करने की सार्वजनिक व्यवस्था होनी चाहिए। शहरों में पीसीओ के तर्ज पर साइबर कैफे चलने लगे हैं। उनके नियमन और संचालन की व्यवस्था होनी चाहिए। गाँवों में पंचायत के स्तर पर इन्हें बनाना और चलाना आसान काम नहीं होगा। इससे बड़ी चुनौती है ई-गवर्नेंस। सरकारी दफ्तरों को डिजिटल बनाना और सेवाओं को इंटरनेट से जोड़ने का काम भारी है। अनुभव बताता है कि दफ्तर डिजिटल होने के बाद भी उनमें काम करने वाले लोग उसके अभ्यस्त नहीं होते। अलबत्ता दो दशक पहले देश के बैंकों के सामने यही समस्या आई थी, पर समय के साथ उसपर काबू पा लिया गया।

भारत में भी सभी लोगों की स्थिति एक जैसी नहीं है। साठ करोड़ से ज्यादा लोग नेट कनेक्शन के बारे में जानते भी नहीं। और शायद अगले कई साल तक वे कम्प्यूटर के इस्तेमाल की स्थिति में ही नहीं होंगे। देशभर में आधार कार्ड की कल्पना अभी वास्तविक नहीं लगता। हम जिस समावेशी विकास की कल्पना करते हैं, वह तब तक सम्भव नहीं जबतक सबकी पहुँच में तकनीक न हो। ऐसे में जो लोग तकनीक का फायदा उठाने की स्थिति में नहीं होंगे, वे पीछे रह जाएंगे। यह स्कूली शिक्षा की तरह है। अभी स्कूली शिक्षा के दायरे में ही पूरा देश नहीं है। ऐसे में टेक-लिटरेसी की आशा कैसे की जा सकती है?

देश में ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क स्थापित करने की जिम्मेदारी भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड की है। राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क योजना सन 2011 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में बनी थी, पर उसकी गति सुस्त थी। इस दिशा में तकरीबन 40 फीसदी काम ही हो पाया है। सरकार ने पर्याप्त निवेश नहीं किया। यूपीए सरकार ने सन 2006 में ई-गवर्नेंस कार्यक्रम बनाया था, उसे ही मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया नाम दिया है। अब सरकार इसमें एक लाख करोड़ रुपए लगाने की बात कह रही है। मोदी सरकार के सामने मेक इन इंडियाकी तरह डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को सफल बनाने की चुनौती है। कई मानों में दोनों कार्यक्रम एक-दूसरे के पूरक हैं।

पिछले साल जून के पहले हफ्ते में संसद के दोनों सदनों के सामने नई सरकार की ओर से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा था। नरेंद्र मोदी के आलोचकों ने तब भी कहा था और आज भी कह रहे हैं कि यह एक राजनेता का सपना है। इसमें विशाल परिकल्पना है। उसे पूरा करने की तजवीज नहीं। देश में एक सौ स्मार्ट सिटी का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, गाँव-गाँव तक ब्रॉडबैंड पहुँचाने का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का वादा सरकार ने किया था।

ज्ञानजीवी समाज के बच्चों को तैयार करने हेतु प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल और नागरिक सेवाओं के लिए ई-प्रशासन योजना देश का रूपांतरण कर सकती हैं। इसी तरह इनफॉर्मेशन फॉर ऑल यानी सभी को जानकारियाँ मुहैया कराने का कार्यक्रम हमारे लोकतंत्र की कहानी बदल सकता है। पर ये लक्ष्य तभी पूरे होंगे, जब उसके लिए जरूरी ताना-बाना हमारे पास होगा। पूँजी निवेश एक समस्या है, पर पूँजी हाथ में हो तब भी सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर हमें उसके लिए प्रशिक्षित होना होगा। यह बदलाव की बुनियादी शर्त है। हम इस रूपांतरण की अवधि कम कर सकते हैं, जिसके लिए राष्ट्रीय इच्छा शक्ति चाहिए। क्या हम तैयार हैं?

राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित

1 comment:

  1. अन्य योजनाओं की तरह्यः भी कागजी हो कर धराशाई हो जाएगी इसके कुछ कारण है -१ -लोगों का इतना शिक्षित न होना , २. ब्रॉडबैंड के लिए इतना स्पेक्ट्रम भी नहीं है ३. न ही उसमें इतनी स्पीड है कि इस लोड को संभल सके , अभी भी नेटवर्क धीमा चलता है ४, गांवों में न बिजली की सुविधाएँ ५ लोगों में इतनी जागृति भी नहीं है ६ हमारे नेता , अधिकारी , व कर्मचारी इसे सफल देंगे सभी कामचोर हैं

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