Friday, November 20, 2015

जेहादियों को फ्रांस का अनोखा जवाब

एक हफ्ते पहले पेरिस में हत्याकांड हुआ, जिसके जवाब में देश के राष्ट्रपति ने आईसिस के खिलाफ युद्ध की घोषणा की. अगले रोज उसकी वायुसेना ने सीरिया के ठिकानों पर हमले तेज कर दिए. हमले में शामिल लोगों को पहचानने की कार्रवाई तेज कर दी गई और बुधवार को इस हमले के मास्टरमाइंड का खात्मा कर दिया गया. हमलों के बाद फ्रांस में तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई. पेरिस की मेयर ऐन हिडाल्गो ने कहा है कि शहर ने चरमपंथ की बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई है. हमलावरों ने उन जगहों को निशाना बनाया जहां सप्ताहांत में युवा जाते हैं. उन्होंने बाद में घोषणा भी की कि हमें इस गलीज संस्कृति से नफरत है.
पुलिस ने मंगलवार तक पेरिस में किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, इसलिए सामूहिक रूप से कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ. अलबत्ता यूरोप और अमेरिका के तमाम शहरों में रैलियाँ निकाली गईं. उधर दुनिया इस बात पर अभी बहस कर ही रही है कि आईसिस के खिलाफ कार्रवाई अफगानिस्तान और इराक जैसी होकर न रह जाए. उसे किस तरीके से संतुलित किया जाए और दुनिया के मुसलमानों को किस तरीके से भरोसे में लेकर साथ चला जाए यह भी ज़ेरे-बहस है. दुनियाभर के मुस्लिम विद्वानों ने आईसिस के हमले को इस्लाम विरोधी बताया है.

बहरहाल उस शुक्रवार से इस शुक्रवार के दौरान पेरिस की साँ नदी में काफी पानी बह चुका है. तीन दिन का शोक पूरा होने के बाद देश ने अनूठे तरीके से अपने गुस्से का इजहार किया है. पेरिसवासी कैफे, रेस्त्रांओं और बारों में जाकर खाने-पीने और गीत-संगीत के शौकीन हैं. पेरिस हत्याकांड में जेहादियों ने खासतौर से ऐसी जगहों को निशाना बनाया था. मरने वालों में ज्यादातर या तो खा-पी रहे थे या संगीत का आनन्द ले रहे थे.

इसके विरोध में मंगलवार को पेरिसवासियों ने ऐसी जगहों पर बड़ी संख्या में एकत्र होकर जेहादियों के खिलाफ अपने प्रतिरोध को व्यक्त किया. यह एक नया आंदोलन था, यह एक नया आंदोलन था, ‘जे सुई एंतेरेसे’ (आय एम ऑन द कैफे टैरेस). उनका कहना है, आज हम टैरेस पर नहीं बैठेंगे तो कभी नहीं बैठ पाएंगे. यह हमारी जीवनशैली पर हमला है. हम जीना बंद नहीं करेंगे. मशहूर पेरिस ऑपेरा इस हमले के बाद बंद कर दिया गया था. वह भी मंगलवार को खोल दिया गया.

सदमे में यूरोप

पेरिस में हुए हमलों ने पूरे पश्चिमी जगत में आतंक की लहर पैदा कर दी है. अकेला फ्रांस ही नहीं यूरोप के सभी देश सदमे में हैं. यह साल शार्ली एब्दो हत्याकांड से शुरू हुआ था और इसका समापन पेरिस हत्याकांड से हुआ है. हत्याकांड के फौरन बाद राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलां ने इस हमले को देश पर हमला मानते हुए आपातकाल की घोषणा कर दी. अगले रोज से ही फ्रांसीसी जेट विमानों ने सीरिया में आईसिस ठिकानों पर हमले बोलने शुरू कर दिए हैं. इस हत्याकांड का यूरोप की राजनीति पर गहरा असर होने वाला है. वहाँ अब दक्षिणपंथी ताकतों को सिर उठाने का मौका मिलेगा. शार्ली एब्दो के बाद फ्रांस के प्रधानमंत्री मैनुअल वाल्स ने संसद के सामने कहा था कि देश 'युद्धरत' है. यह युद्ध अब और तेज हो गया है.

पेरिस हमले के बाद राष्ट्रपति ओलां ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर कहा- 'हमें पता है कि हमलावर कौन हैं'. हालांकि तब तक आईसिस ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली थी. जनवरी में शार्ली एब्दो पर हमले के अगले रविवार को बहुत बड़ी रैली शार्ली एब्दो के साथ सहानुभूति जताते हुए आयोजित की गई थी, जो 1944 में पेरिस की आजादी के बाद के प्रदर्शन के बाद सबसे बड़ी सभा थी.

मुसलमान भयभीत

हमलों के बाद फ्रांस की अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी भयभीत है. उन्हें डर है कि नाराज लोग कहीं उनपर हमले न कर दें. फ्रांस में सदियों से ईसाई, मुसलमान और यहूदी मिलकर रह रहे हैं और इस देश को धर्मनिरपेक्षता की मिसाल कहा जाता है. इसलिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह देश किस तरह से अपनी परम्पराओं को बनाए रखेगा. पेरिस हमले का विरोध सभी समाजों ने किया है. इनमें मुसलमान भी शामिल हैं. फ्रांस में पिछले कुछ साल से कट्टरपंथी पार्टियां मज़बूत हो रही हैं. ख़ासकर ल पेन की दक्षिणपंथी पार्टी खुले तौर पर मुसलमानों और प्रवासियों के ख़िलाफ़ है. ल पेन की पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता को फ्रांस की धर्म निरपेक्षता के लिए एक बड़ा ख़तरा माना जा रहा है.

एनॉनिमस की ऑनलाइन जंग

फ्रेंच कंप्यूटर हैकरों के एक्टिविस्ट समूह एनॉनिमस यानी अनजान ने आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जंग छेड़ने की घोषणा की है. उसने आईसिस के लिए नौजवानों की भरती करने वाले 5500 एकाउंट्स का विवरण जारी किया है. यूट्यूब पर पोस्ट किए अपने वीडियो में एनॉनिमस के एक सदस्य ने कहा है कि पेरिस के हत्यारों ऐसे ही नहीं छोड़ दिया जाएगा. चेहरे पर खास तरह का मुखौटा लगाए यह हैकिंग ग्रुप के सदस्य ने कहा है, "ना माफ करेंगे और ना भूलेंगे." पेरिस हमलों के अगले दिन पोस्ट किया गया ये वीडियो दो दिन में ही लाखों बार देखा जा चुका है. यह समूह इसी तरह से खुद को पेश करता है और इसके पहले कई सरकारों और कॉरपोरेट वैबसाइटों को हैक कर चुका है. पुलिस और जांच एजेंसियां ट्विटर हैंडल और दूसरे सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए कई बातों का पता लगा लेती हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि हो सकता है कि एनॉनिमस के कारण आईएस अपने अकाउंट बंद कर दे. इससे तो पुलिस जांच पर विपरीत असर भी पड़ सकता है.

चैन से जीने नहीं देंगे


शुक्रवार 13 नवम्बर की रात फ्रांस की राजधानी पेरिस में हमला करने के बाद अगले दिन शनिवार को आईएसआईएस का एक वीडियो सामने आया, जिसमें धमकी दी गई कि फ्रांस को चैन से नहीं जीने देंगे. फ्रांसीसी भाषा के इस वीडियो में तीन चरमपंथी दिखाई देते हैं जो इन हमलों को फ्रांस के हाथों मुसलमानों को हो रही तकलीफ़ों का बदला बता रहे हैं. उन्होंने 2012 में मोहम्मद मीराह और जनवरी 2015 के अमेदी कॉलिबाली के हमलों की तारीफ की और धमकी दी है कि ऐसे और हमले होंगे. हम पेरिस के दिल पर हमला करेंगे. इस वीडियो में आईएस का फ़्रांसीसी भाषा का जेहादी गान भी है.

राष्ट्रपति ओलां थे निशाने पर

नेशनल स्टेडियम के बाहर धमाका करने वाले हमलावर फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलां को निशाना बनाने वाले थे. स्टेडियम के बाहर दो धमाके हुए. अंदर राष्ट्रपति 80 हजार लोगों के साथ फ्रांस-जर्मनी का मैच देख रहे थे. आतंकी अंदर नहीं घुस पाए। नहीं तो 80 हजार लोगों की जान खतरे में होती. फ्रांसीसी मीडिया का अनुमान है कि स्टेडियम के बाहर हमले का मतलब है कि राष्ट्रपति उनके निशाने पर थे. सबसे ज्यादा मौतें बाताक्लां थिएटर में हुईं. यहां आतंकियों ने 100 लोगों को बंधक बनाया था.

एफिल टावर पर अंधेरा

हमले में मरने वालों को श्रद्धांजलि देते हुए एफिल टावर की लाइट्स को बंद कर दिया गया. अमेरिका की एम्पायर स्टेट भी अंधेरे में डूब गई. बाद में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और एम्पायर स्टेट बिल्डिंग, सैन फ्रांसिस्को के सिटी हॉल और मैक्सिको में स्वतंत्रता को समर्पित एंजेल डी ला जैसा अनेक बिल्डिंगों को फ्रांस के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के लाल, नीले और सफेद रंग में रोशन किया गया. पेरिस में डिज्नीलैंड बंद कर दिया गया. मंगलवार को वह भी खुल गया. यह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता का प्रतीक है. फेसबुक पर लोगों ने अपने प्रोफाइल पर इन रंगों का इस्तेमाल किया.

पेरिस क्यों बना निशाना?

जनवरी 2015 में व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ़्तर पर हुए हमले के बाद से ही पेरिस कड़ी सुरक्षा की निगरानी में था. शार्ली एब्दो के पक्ष में पेरिस में कलाकारों, लेखकों और राजनेताओं की एकता को आईसिस ने एक तरह से ललकार माना. अमेरिका के साथ मिलकर फ्रांस के लड़ाकू विमानों ने कई बार सीरिया और इराक़ में आईएस चरमपंथियों पर हमले भी किए हैं. आईसिस ने पश्चिमी संस्कृति के प्रति अपनी नफरत को भी इस रूप में व्यक्त किया है. हमलों की ज़िम्मेदारी लेते हुए आईएस ने दूसरी बातों के अलावा यह भी कहा है कि पेरिस नफ़रत और विकार की राजधानी बन गया था. उसने संगीत समारोह में जाने वालों को काफ़िर कहा. हमलावर जिसे अनैतिक बता रहे हैं उन जगहों को जान-बूझकर चुना गया.

पिछले कुछ साल से पेरिस के साथ ही दूर-दराज़ के कई इलाके इस्लामी चरमपंथियों के लिए मददगार रहे हैं. इन इलाकों में बेरोज़गारी और शहरी सुख-सुविधाओं के अभाव के कारण मुस्लिम युवक 'जेहाद' की ओर आकर्षित हुए. ऐसी जानकारी है कि फ्रांस से 500 से ज़्यादा मुस्लिम लोग जेहादियों के पक्ष में लड़ने के लिए सीरिया और इराक़ गए हैं. किसी भी पश्चिमी देश से लड़ने जाने वालों की यह सबसे बड़ी संख्या है.

शरणार्थियों की मुसीबत बढ़ेगी

पेरिस पर हमले के बाद पहला राजनीतिक प्रभाव यूरोप से शरणार्थी संकट पर पड़ने वाला है. ये शरणार्थी सीरिया और इराक में चल रही लड़ाई से बचकर बाहर आए हैं. अब यह कहा जा रहा है कि इनकी आड़ में आतंकवादी भी यूरोप में प्रवेश कर रहे हैं. ग्रीस के अधिकारियों का कहना है कि हमलावरों में से कम से कम एक हमलावार ऐसा हो सकता है जो 69 शरणार्थियों के दल के साथ लेरोस द्वीप को पार कर के आया था. इस आदमी का पंजीकरण ग्रीस में है और उसका फिंगरप्रिंट लिया गया था. उधर पोलैंड के यूरोपीय मामलों के मंत्री कोनराड ज़ीमांस्की ने कहा है, "हम शरणार्थियों को तभी स्वीकार करेंगे जब हमारे पास सुरक्षा की गारंटी होगी." शरणार्थियों के साथ हमले का संबंध निकला तो शरणार्थी संकट नया आयाम ले लेगा. अलबत्ता यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जीन-क्लाउड जंकर ने हमले कहा है कि इस हमले के लिए शरणार्थियों को जिम्मेदार ठहराना गलत होगा. हमले ने यूरोप में असुरक्षा की भावना को गहरा कर दिया है और राजनीतिक रूप से धुर-दक्षिणपंथी इस मौके का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेंगे.

सिर्फ पश्चिमी दर्द पर आँसू क्यों?
पेरिस पर हमले के बाद सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियों की बाढ़ आ गई. पर यह सवाल भी उठाया गया कि सिर्फ़ यूरोप या अमेरिका में हुए हमलों पर ही इतना शोर-शराबा क्यों होता है. इस साल अप्रैल में केन्या के एक विश्वविद्यालय पर हमला करके अल शबाब आतंकवादी समूह ने 147 लोगों की हत्या कर दी. पश्चिमी मीडिया शार्ली एब्दो हमलों को लेकर उलझा रहा, पर उसी दिन नाइजीरिया में बोको हराम के हमलों की खबर को उतनी ज्यादा तवज्जोह नहीं दी. नाइजीरिया के दो शहरों को इस्लामी आतंकी समूह बोको हराम ने पूरी तरह तबाह कर दिया. अंदेशा है कि वहाँ 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए. पेरिस हत्याकांड के ठीक पहले दक्षिण बेरूत में दो आत्मघाती बम विस्फोटों में कम-से-कम 43 लोगों की मौत हो गई, पर इस खबर को किसी ने खबर नहीं माना. पेरिस में मारे गए लोगों के लिए प्रार्थना करना बिलकुल जायज़ है, 'दुख की इस घड़ी में हम सब पेरिस वासियों के साथ हैं,' लेकिन इसके साथ ही बेरूत, बग़दाद और सीरिया को क्यों भूलते हैं. फेसबुक पर किसी ने लिखा है, पेरिस हमले में मारे गए लोगों की याद में लोग अपने प्रोफाइल चित्र पर फ्रांस का झंडा लगा रहे हैं, यह ठीक है. लेकिन जब दुनिया के दूसरे हिस्सों में ऐसा होता है तब आप लोग ऐसा क्यों नहीं करते? सारा अहमद ने इराक से लिखा है, मैं पेरिस वासियों के साथ हूं. यक़ीन जानिए हम इराक़ में भी इसी तरह पल-पल मौत के साए में जीते हैं.
प्रभात खबर में प्रकाशित

1 comment:

  1. पश्चिमी देशों के जब खुद के सर पर आती है तब उन्हें ऐसी याद आती है वरना विश्व के दूसरे देशों पर ऐसे हमलों को वे बहुत हल्केपन से लेते हैं , भारत के सन्धर्भ में यह स्पष्ट नज़र आती है यहाँ वे इनसे समझोते का बातें करते हैं तुष्टिकरण की नीति अपनाते हैं आज अपनी पीड़ा उन्हें ज्यादा दुखदायी प्रतीत हो रही है

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