Sunday, May 29, 2016

हमारे आर्थिक विकास पर टिका है दुनिया का विकास

जिस समय मोदी सरकार के पहले दो साल का समारोह मनाया जा रहा है दुनिया आर्थिक मंदी के खतरे का सामना कर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने और खासतौर से चीन में गाड़ी का पहिया उल्टा चलने के आसार हैं और अब दुनिया हमारी तरफ देख रही है। हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लैगार्ड ने इस दौर में भारत को रोशनी की किरण बताया है। उन्होंने कहा कि यह देश चालू वित्त वर्ष में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेगा और 2019 तक इसकी जीडीपी जापान और जर्मनी की संयुक्त अर्थव्यवस्था से ज्यादा हो जाएगी।


हमारी अर्थव्यवस्था तीन सबसे बड़ी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं रूस, ब्राजील और इंडोनेशिया-के सकल आकार से बड़ी होने जा रही है। जहाँ दुनिया के देश स्लो ग्रोथ से जूझ रहे हैं, भारत फास्ट पेस हासिल कर रहा है। यह खुशी की बात है, पर चिन्ता की बात यह है कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने आर्थिक सुधारों की गति को जो ब्रेक लगाया वह लगा हुआ ही है। इस हफ्ते मुम्बई में दक्षेस देशों के केंद्रीय बैंकों की दो दिन की संगोष्ठी इस बात को लेकर हुई कि चीन की आर्थिक गिरावट का सामना कैसे किया जाए। इस मौके पर रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारत के पास बाहरी झटकों से निपटने के लिए चार सूत्री सुरक्षा-अच्छी नीतियां, विवेकपूर्ण पूंजी प्रवाह प्रबंधन और स्वैप अरेंजमेंट्स, विदेशी मुद्रा में अत्यधिक उतार-चढ़ाव रोकना एवं पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार का निर्माण मौजूद हैं। अच्छी नीति हमारी स्थिरता के लिए आवश्यक है।

रघुराम राजन ने भारत के वित्तीय अनुशासन का खासतौर से जिक्र किया। हाल के वर्षों में भारत की उपलब्धि है राजकोषीय घाटे को काबू में करके उसे क्रमशः कम करते जाना। इधर विश्व बैंक ने दक्षिण एशिया पर केंद्रित अपनी छमाही रिपोर्ट 'साउथ एशिया इकोनॉमिक फोकस' के ताजा संस्करण में कहा था कि भारत पूरे क्षेत्र की गति तय करेगा। भारत की आर्थिक वृद्धि वित्तीय वर्ष 2016 में 7.5 प्रतिशत और 2017 में बढ़कर 7.7 प्रतिशत होने की संभावना है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में कुछ महत्वपूर्ण नीतिगत सुधारों की मंजूरी और क्रियान्वयन में देरी हुई तो निवेशकों का मन खट्टा हो जाएगा। लब्बो-लुबाव यह है कि भारत के लिए उस दौर में आर्थिक विकास कर पाना काफी मुश्किल काम है जब दुनिया की अर्थ-व्यवस्था काफी धीमी गति से आगे बढ़ रही है। हम अब दुनिया के सहारे नहीं दुनिया हमारे सहारे है। हम तेजी से बढ़ेंगे तभी दुनिया की गति तेज होगी।

अमेरिका के अखबार द वॉलस्ट्रीट जरनल को दिए इंटरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने दावा किया कि उन्होंने सबसे ज्यादा आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने भारत में विदेशी निवेश के लिए व्यवस्था को और खोला, भ्रष्टाचार रोकने के लिए नियमों में बदलाव किए, गांवों में बुनियादी ढांचे की कमी पूरी करने का प्रयास किया और कारोबार करना आसान बनाया। मोदी राष्ट्रपति बराक ओबामा के निमंत्रण पर अगले महीने वाशिंगटन जा रहे हैं। इसबार वे अमेरिकी संसद को भी संबोधित करेंगे। देखना होगा कि वे भारत को दुनिया के सामने किस तरह पेश करते हैं।
भारत को तेज पूँजी निवेश चाहिए। उसपर ही नए रोजगारों का सृजन निर्भर करता है। संसद ने हाल में बैंकरप्सी कोड पास किया है। पिछले साल बीमा कानून में संशोधन पास हुआ था। इस साल रियल एस्टेट अधिनियम पास किया। पर भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन और जीएसटी को लेकर दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच सहमति नहीं हो पाने के कारण उन्हें लागू नहीं किया जा सका है। अभी डायरेक्ट टैक्स कोड सामने नहीं आया है जबकि उसकी बात यूपीए के शासनकाल से चल रही है। इसी तरह श्रम सुधार का काम भी मुश्किल लगता है। कम्पनी कानून में बदलाव, सरफेसी अधिनियम, डेट रिकवरी अधिनियम जैसे कई कानूनों पर संसद की स्वीकृति की जरूरत होगी।

इस लिहाज से भाजपा के पहले दो साल से ज्यादा महत्वपूर्ण अगले तीन साल होंगे, क्योंकि आर्थिक सुधार और विकास का जो वादा उसने किया है उसे पूरा करने की जिम्मेदारी भी उसकी है। इससे जुड़ी राजनीति को भी उसे ही निभाना है और इस दौरान विधानसभा चुनावों में उसे सफलता भी हासिल करनी है। राज्यसभा में अल्पमत होने का दबाव भी उसपर रहेगा। नरेन्द्र मोदी ने वॉलस्ट्रीट जरनल से कहा, मेरे सामने अभी काफी काम करने के लिए है। भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के प्रयास संघीय स्तर पर अब समाप्त हो चुके हैं। अब यह अलग-अलग राज्यों पर निर्भर करता है कि वे बदलावों के प्रयास करें।

जीएसटी के बारे में मोदी ने कहा कि उम्मीद है कि यह इस साल पारित हो जाएगा। माना जाता है कि जीएसटी लागू होने के बाद अर्थ-व्यवस्था में एक से दो फीसदी का सुधार हो जाएगा। हाल में सरकार ने रक्षा खरीद नीति में काफी बड़े बदलाव किए हैं। इसके कारण देश और विदेश से निवेश बढ़ने की आशा है। अलबत्ता ये उद्योग कुशल और मध्यवर्गीय नौजवानों के लिए रोजगार ही तैयार कर पाएंगे। ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले श्रमिकों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े निर्माण कार्य बेहतर मौके तैयार करेंगे। हाईवे और रेलवे इस क्षेत्र में पहल करेंगे।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के तहत भारतीय रेल के माल ढुलाई परिचालन में बुनियादी बदलाव के लिए 3300 किलोमीटर लम्बे डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं। फिलहाल दो कॉरिडोर पर काम चल रहा है। पश्चिमी कॉरिडोर और पूर्वी कॉरिडोर। पंजाब के लुधियाना बंगाल के धनकुनी तक पूर्वी और मुम्बई से तुगलकाबाद दिल्ली तक पश्चिमी कॉरिडोर पर काम चल रहा है। इन दोनों कॉरिडोर का मिलान उत्तर प्रदेश के खुर्जा में होगा। नौ राज्यों और 61 जिलों से होकर गुजरने वाली यह परियोजना रोजगार के मौके तैयार करेगी।

दोनों कॉरिडोर राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज को राहत पहुंचाएंगे। ये कॉरिडोर प्रदूषण को नियंत्रित करने में मददगार भी होंगे। अब चार और कॉरिडोर बनाने की योजना ये हैं 2,330 किलोमीटर का पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर (कोलकाता-मुम्‍बई), 2,343 किलोमीटर का उत्‍तर-दक्षिण कॉरिडोर (दिल्‍ली-चेन्‍नर्इ), 1100 किलोमीटर का पूर्व तटीय कॉरिडोर (खड़गपुर-विजयवाड़ा) और लगभग 899 किलोमीटर का दक्षिणी कॉरिडोर (चेन्‍नई-गोवा) हैं। वस्तुतः अगले तीन साल नहीं तकरीबन दस से पन्द्रह साल भारत में जबर्दस्त निर्माण कार्य होने चाहिए। यह काम हमें नौ से दस फीसदी की संवृद्धि दिलाएगा। हमें अब उसके बारे में सोचना चाहिए।

हरिभूमि में प्रकाशित

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