Sunday, August 28, 2016

कश्मीरी अराजकता पर काबू जरूरी

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 22 सांसदों को अपने देश का दूत बनाकर दुनिया के देशों में भेजने का फैसला किया है जो कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का पक्ष रखेंगे। हालांकि चीन को छोड़कर दुनिया में ऐसे देश कम बचे हैं जिन्हें पाकिस्तान पर विश्वास हो, पर मानवाधिकार के सवालों पर दुनिया के अनेक देश ऐसे हैं, जो इस प्रचार से प्रभावित हो सकते हैं। पिछले एक साल से कश्मीर में कुछ न कुछ हो रहा है। हमारी सरकार ने बहुत सी बातों की अनदेखी है। कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी सरकार को इस बीच जो भी मौका मिला उसका फायदा उठाने के बजाए दोनों पार्टियाँ आपसी विवादों में उलझी रहीं। 

जरूरत इस बात की है कश्मीर की अराजकता को जल्द से जल्द काबू में किया जाए। इसके लिए कश्मीरी आंदोलन से जुड़े नेताओं से संवाद की जरूरत भी होगी। यह संवाद अनौपचारिक रूप से ही होगा। सन 2002 में ही स्पष्ट हो गया था कि हुर्रियत के सभी पक्ष एक जैसा नहीं सोचते। जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी ने इस पक्ष की उपेक्षा करके गलती की है, जबकि इन दोनों की पहल से ही अब तक का सबसे गम्भीर संवाद कश्मीर में हुआ था।  


दो दिन के दौरे पर कश्मीर गए गृहमंत्री के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में मुकाबले राजनाथ सिंह के महबूबा मुफ्ती के तेवर अचानक तीखे हो गए। इसकी वजह कश्मीर के आंदोलनकारी नहीं, वहाँ की आंतरिक राजनीति है। सन 2010 में भी इसी किस्म का आंदोलन हुआ था। उस वक्त मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला थे। तब उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि कश्मीर में बच्चों को भड़काकर पत्थरबाजी कराई जा रही है। भाड़े पर पत्थर मारने वाले लाए जा रहे हैं। स्थिति तकरीबन वही है, केवल सत्ताधारी बदले हैं और दोनों का नजरिया बदला है। ऐसे मामले में राजनीति दोनों को खा जाएगी।  

उधर संसद के मॉनसून सत्र में कश्मीर को लेकर सर्वानुमति बनी जरूर, पर गाहे-बगाहे राजनीतिक एंगल निकल कर आ रहा है। नरेन्द्र मोदी ने बलूचिस्तान का मसला उठाकर पाकिस्तानी प्रशासन को उतना आहत नहीं किया, जितना भारत में अपने विरोधियों को किया है। कांग्रेस की गफलत स्वतंत्रता दिवस के भाषण के फौरन बाद सामने आ गई। पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने फौरन बयान दिया। फिर कुछ समय बाद पार्टी की ओर से आनंद शर्मा ने कहा कि बलूचिस्तान का मामला तो हम पहले से उठाते रहे हैं। रणदीप सुरजेवाला ने आधिकारिक रूप से कहा कि बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन का हम विरोध करते हैं।

इधर 24 अगस्त को अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि हम बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करते, पर वहाँ और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर चिंतित हम भी हैं। इस बयान में और मोदी के बयान में क्या फर्क है? कश्मीर को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वानुमति बनाने की जरूरत है। यह राजनीतिक समस्या है और वहाँ की जनता के मन को जीतने की जरूरत है। ठीक बात, पर रास्ता क्या है? वहाँ बात संविधान के दायरे में ही हो सकती है। यही दृष्टिकोण दस साल तक मनमोहन सिंह सरकार का था। वे लोग जो इस वक्त आंदोलन चला रहे हैं क्या संविधान के दायरे में बात करने के इच्छुक हैं? यासीन मलिक ने कहा है कि संविधान के दायरे में तो बात केवल उन लोगों से ही होगी जो विलय के समर्थक हैं।

हुर्रियत के लोग भारतीय संविधान को मानते ही नहीं। तब हम किससे बात करने की सलाह दे रहे हैं? वस्तुतः सारी बातें खुली नहीं होतीं। अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में हुर्रियत के एक वर्ग के साथ भी बात हुई थी। तब वाजपेयी सरकार ने जेठमलानी समिति के मार्फत हुर्रियत से सम्पर्क साधा था। अगस्त 2002 में अनौपचारिक वार्ता एक बार ऐसे स्तर तक पहुँच गई थी कि उसके अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में हुर्रियत के हिस्सा लेने की सम्भावनाएं तक पैदा हो गईं थीं। मीरवाइज़ उमर फारूक और सैयद अली शाह गिलानी के बीच तभी मतभेद उभरे और हुर्रियत दो धड़ों में बँट गई।

कश्मीर कमेटी एक गैर-सरकारी समिति थी, पर माना जाता था कि उसे केंद्र सरकार का समर्थन प्राप्त था। संविधान के दायरे से बाहर जाकर भी बात होती है, पर अनौपचारिक तरीके से। सन 2010 की पत्थरबाजी के बाद संयुक्त संसदीय टीम ने कश्मीर का दौरा किया। इस टीम ने तमाम नेताओं से मुलाकात के अलावा हाशिम कुरैशी से भी मुलाकात की। वही हाशिम कुरैशी जो 30 जनवरी 1971 को इंडियन एयरलाइंस के प्लेन को हाईजैक करके लाहौर ले गया था। वहाँ उसे 14 साल की कैद हुई। सन 2000 में वह कश्मीर वापस आ गया। हालांकि वह कश्मीर में भारतीय हस्तक्षेप के खिलाफ है, पर उसकी राय में भारत और पाकिस्तान में से किसी को चुनना होगा तो मैं भारत के साथ जाऊँगा। उसका कहना है मैंने पाक-गिरफ्त वाले कश्मीर में लोगों की बदहाली देख ली है।

सन 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मीरवाइज़ उमर फारूक ने नरेन्द्र मोदी के नाम एक खुला पत्र लिखा जो अंग्रेजी अख़बार हिन्दू में प्रकाशित हुआ था। उन दिनों खबरें यह भी थीं कि केन्द्र ने सैयद अली शाह गिलानी से सम्पर्क किया है। सन 2015 में तब बीजेपी और पीडीपी की सरकार बनी तब दोनों पक्षों ने बैठकर जो साझा कार्यक्रम तैयार किया था उसके पहले पैराग्राफ में कश्मीर में सद्भावना का माहौल बनाने की बात है। नियंत्रण रेखा के दोनों ओर के निवासियों के सम्पर्क को बढ़ाने का जिक्र भी उस दस्तावेज में हैं। कश्मीर सरकार अपने एजेंडा पर क्यों नहीं चल रही है?

महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि 95 फीसदी लोग शांति पूर्वक समाधान चाहते हैं। उनकी बात में अतिशयोक्ति होगी, पर यकीनन तशद्दुद के पैरोकार बड़ी संख्या में नहीं हैं। कौन अपने बच्चों को अंधा होने के लिए भेजता है? सच यह है कि वहाँ विलय समर्थक दलों का मनोबल गिरा है। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की आपसी प्रतिद्वंद्विता भी इसके पीछे है। हाल में आंदोलन से जुड़े जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार सबसे ज्यादा खराब हालात दक्षिण कश्मीर के हैं, जहाँ से पीडीपी की सबसे ज्यादा सीटें हैं। वहाँ पीडीपी विरोधियों ने भी लोगों को भड़काया। इसके मुकाबले श्रीनगर में हालात बेहतर रहे।  

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने भारत सरकार से कहा है कि कश्मीर में फसादियों को बंद कीजिए। उधर खबरें हैं कि सरकार ने लगभग 400 लोगों की सूची बनाई है जो हालात को बिगाड़ रहे हैं। उन्हें अंदर किया जाएगा। राष्ट्रीय राजनीति को पैर खिंचाई से बचना चाहिए। सरकार को भी जनता की वाजिब दिक्कतों को सुनना चाहिए। घाटी में सेब की फसल तैयार है। गर्मियाँ खत्म हो रहीं हैं। पर्यटकों ने आना बंद कर दिया है। धंधा चौपट है। कहना आसान है, पर उन्माद और आंदोलन लोगों का दूर तक साथ नहीं देता।

भारत सरकार को इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय होना पड़ेगा। पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों और यूरोपीय यूनियन के देशों से सम्पर्क किया है। हाल में वहाँ के प्रधानमंत्री ने अपने महत्वपूर्ण राजदूतों की बैठक इस्लामाबाद में बुलाई थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में पाकिस्तान इस बार जोरदार तरीके से इस मामले को उठाएगा। भारत ने भी पेशबंदी शुरू कर दी है। इस महीने दक्षेस गृहमंत्रियों के सम्मेलन में हुई बदमज़गी के बाद वित्तमंत्रियों के सम्मेलन में हमारे वित्तमंत्री नहीं गए। नवम्बर में दक्षेस शिखर सम्मेलन इसबार पाकिस्तान में होना है। इतने खराब हालात में क्या शिखर सम्मेलन हो पाएगा? पाकिस्तान के सामने भी सवाल हैं। फिलहाल हमें कश्मीर के हालात पर नियंत्रण पाने के बारे में सोचना चाहिए। 
हरिभूमि में प्रकाशित

एएस दुल्लत ने कश्मीर को उस दौर में देखा है जब वहाँ सबसे ज्यादा अराजकता था। वे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पीएमओ से जुड़े भी रहे। उनका यह इंटरव्यू भी पढ़ा जाना चाहिए।

कुछ और उपयोगी लिंक

Interview of AS Dullat

 Ask your Barkhas & Rajdeeps
Data story of Kashmir violenceUS statement on Balochistan
Mirwaiz Umar Farouq's open letter to Modi April 2014
BJP-PDP Common minimum program of 2015
Beyond Harappa Partying with Jihadis
Interlocutors committee report
The other media report on 2010 uprising
Roots of Jehad in South Asia
Sedition charge of Amnesty 
पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक मुनीर अकरम का लेख
Gilgit-Baltistan
Interview of Burhan Wani's father in Dawn
10 अगस्त 2016 को राज्यसभा में कश्मीर पर हुई चर्चा के दौरान सीताराम येचुरी का भाषण
Calming the boiling Kashmir
Is independent Kashmir viable?
Are Shias & Ahmadis happy to be part of India?
Is Kashmir's yearning for Azadi a political aspiration, or a statement of religious identity?
India seeks US help to crack Pakistan Terror fund trail
Shimla solution
Pakistan's enduring challenges 
Articles on Kashmir : Sun Sentinel
Kashmir for Kashmiris By Pranay Gupte
The pursuit of Kashmir : The dawn
बुरहान वानी क्या अलकायदा का एजेंट था? 
राम पुनियानी के अनुसार कश्मीर का सवाल
स्ट्रैटफर का विश्लेषण
पाकिस्तानी नजरिया
Shah Faesal in INdian Express
A season of loss in Kashmir
Pakistan's Point of view
गौहर गिलानी के अनुसार भारतीय बुद्धिजीवियों ने कश्मीर की आजादी को स्वीकार कर लिया है
कश्मीर पर चिदम्बरम-1
कश्मीर पर चिदम्बरम-2
मेघनाद देसाई का लेख
प्रताप भानु मेहता
ले जन एचएस पनाग का लेख-1
ले जन एचएस पनाग का लेख-2
कश्मीरी नौजवान क्या चाहते हैं? हिन्दू में प्रकाशित 2010 की एक रिपोर्ट
नौजवान रोजगार चाहते हैं
कश्मीर संरा की विवाद-सूची में नहीं
निताशा कौल का लेख
शुजात बुखारी का हिन्दुस्तान टाइम्स में लेख
शुजात बुखारी का फ्रंटलाइन में लेख
हूट में शहनाज़ बशीर का लेख
और जनरल महमूद दुर्रानी का इंटरव्यू
संयुक्त राष्ट्र का स्पष्टीकरण
फ्रंटलाइन में एजी नूरानी का आलेख
आकार पटेल का 2010 का लेख
आकार पटेल का 2012 का लेख
Kashmir's second Intefadah by PS Jha

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