Sunday, April 9, 2017

क्या ‘आप’ के अच्छे दिन गए?

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जिस पार्टी के प्रदर्शन का इंतजार था वह है आम आदमी पार्टी। इंतजार इस बात का था कि पंजाब और गोवा में उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा। सन 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में उसकी अभूतपूर्व जीत के बाद सम्भावना इस बात की थी कि यह देश के दूसरे इलाकों में भी प्रवेश करेगी। हालांकि बिहार विधानसभा के चुनाव में उसने सीधे हिस्सा नहीं लिया, पर प्रकारांतर से महागठबंधन का साथ दिया। उत्तर प्रदेश में जाने की शुरूआती सम्भावनाएं बनी थीं, पर अंततः उसका इरादा त्याग दिया। इसकी एक वजह यह थी कि वह पंजाब और गोवा से अपनी नजरें हटाना नहीं चाहती थी।

सन 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे पंजाब में अपेक्षाकृत सफलता मिली थी। यदि उस परिणाम को आधार बनाया जाए तो उसे 33 विधानसभा क्षेत्रों में पहला स्थान मिला था। इस दौरान उसने अपना आधार और बेहतर बनाया था। बहरहाल पिछले महीने आए परिणाम उसके लिए अच्छे साबित नहीं हुए। और अब इस महीने होने वाले दिल्ली नगर निगम चुनावों में इस बात की परीक्षा भी होगी कि सन 2015 की जीत का कितना असर अभी बाकी है। पंजाब में उसकी जीत हुई होती तो दिल्ली में उससे  उत्साह बढ़ता। ऐसा नहीं हुआ।

एमसीडी चुनावों के ठीक पहले शुंगलू समिति की सिफारिशों का पुलिंदा खुलने से आम आदमी पार्टी के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। क्या यह ‘आप’ के अंत का प्रारम्भ है? पार्टी पर दोतरफा मार है। एक तरफ भाजपा और दूसरी तरफ कांग्रेस। शुंगलू रपट पिछले साल के अंत में दाखिल कर दी गई थी, पर वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थी। दिल्ली कांग्रेस ने आरटीआई के मार्फत इसे हासिल करके सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करा दिया है।

शुंगलू रिपोर्ट के दो पहलू हैं। एक तो यह कि दिल्ली सरकार ने फैसले करते समय सांविधानिक व्यवस्थाओं का पालन नहीं किया। और दूसरे, फैसले करते वक्त भाई-भतीजाबाद का सहारा लिया। विवाद के पीछे बुनियादी तौर पर दिल्ली सरकार के अधिकार और पूर्ण राज्य के दर्जे से जुड़ी बातें हैं, जो अब सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के सामने हैं। शुंगलू समिति ने कुछ ऐसी बातों की तरफ इशारा किया है, जिनसे ‘आप सरकार’ की नैतिकता मिट्टी में मिलती नजर आती है। पंजाब और गोवा में अपमानजनक पराजय के बाद उसके सिर पर दिल्ली में धूल चाटने का खतरा डोलने लगा है।

पिछले साल 4 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि दिल्ली सरकार मूलतः केंद्र और उसके प्रतिनिधि उप-राज्यपाल के अधीन काम करेगी। इसके बाद सितम्बर में तत्कालीन उप-राज्यपाल नजीब जंग ने पूर्व सीएजी वीके शुंगलू के नेतृत्व में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसे यह जाँचने की जिम्मेदारी दी गई कि अरविंद केजरीवाल सरकार ने फैसले करते वक्त कहीं अनियमितता तो नहीं बरती? समिति ने 404 फैसलों से जुड़ी फाइलों का अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट दी है।

फरवरी 2015 में सत्ता में आई केजरीवाल सरकार ने जो रुख अपनाया है उसका जब तक समाधान नहीं होगा, तब तक विवाद उठेंगे। सबसे पहले 25 फरवरी 2015 को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने निर्देश जारी किए, ‘आरक्षित विषयों, जैसे कि सार्वजनिक विधि-व्यवस्था, पुलिस और भूमि से जुड़े मामलों की फाइलें सम्बद्ध विभाग मुख्यमंत्री के मार्फत उप-राज्यपाल के पास भेजेंगे।’ इसके कुछ दिन बाद उप-राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को लिखा कि यह नियम-विरुद्ध है।

शुंगलू रिपोर्ट में अरविंद केजरीवाल के 25 फरवरी 2015 के उस बयान का भी हवाला दिया गया है जिसके अनुसार कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन से जुड़े मामलों की फाइलें ही उपराज्यपाल की अनुमति के लिए वाया मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब डेढ़ सौ ऐसे फैसले हैं, जिनमें एलजी को कोई पूर्व जानकारी नहीं दी गई।

बहरहाल अब एलजी ने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। आम आदमी पार्टी के 206, राउस रेवेन्यू स्थित दफ्तर का आवंटन रद्द कर दिया गया है। शुंगलू रिपोर्ट में इस आवंटन पर आपत्ति जाहिर की गई थी। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष तथा एक विधायक को बंगले के आवंटन पर भी सवाल उठाए गए हैं। केजरीवाल सरकार द्वारा शासकीय अधिकारों के दुरुपयोग के मामलों में अधिकारियों के तबादले, तैनाती और अपने करीबियों की नियुक्तियों का जिक्र भी रिपोर्ट में है। आम आदमी पार्टी की छवि चमकाने में किए गए खर्च की वसूली भी की जा रही है।

नेताओं के रिश्तेदारों को लाभ पहुँचाना राजनीति की आम शिकायत है। पर, आम आदमी पार्टी जिस ऊँचे नैतिक रथ पर सवार होकर सत्ता में आई है, उसे देखते हुए यह अटपटा है। इस बात ने जनता का मोहभंग किया है। वह भी वैसा ही राजनीतिक दल है, जैसे सब हैं। केंद्र और दिल्ली सरकार के अधिकारों का फैसला सुप्रीम कोर्ट से होगा। उस संविधान संशोधन की मंशा क्या थी, जिसके तहत दिल्ली को विधानसभा मिली। फिलहाल इतना तय है कि फिलहाल दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। नहीं है तभी तो उसे पूर्ण राज्य बनाने की माँग है।

जब दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है तब वह क्या है? विशेष अधिकार प्राप्त केन्द्र शासित प्रदेश। ‘आप’ दो बातें कहती है। एक, दिल्ली की जनता के प्रति जवाबदेही किसकी है? जनता के द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री की या उप-राज्यपाल की? दूसरे यह कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने जा रहे थे, जिसमें केन्द्र सरकार ने रोक लगा दी।

दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने के लॉलीपॉप में भी दोष हैं। पार्टियाँ जब सत्ता में नहीं होती हैं तो पूर्ण राज्य बनाने का वादा करती हैं और जब सत्ता में आती हैं तो मुकर जाती हैं? भाजपा ने भी ऐसा ही किया। अदालत को इन प्रश्नों के राजनीतिक पहलू से वास्ता नहीं है। वह इसके सांविधानिक पहलू पर ही विचार करेगी। दिल्ली को पूर्ण राज्य नहीं बनाया जा सकता तो यह बात साफ कर देनी चाहिए।

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए दिल्ली एनसीटी अधिनियम 1991 में संशोधन करना होगा। यह कानून 69 वें संविधान संशोधन के कारण वज़ूद में आया था। उसके पहले केन्द्र सरकार ने पहले आरएस सरकारिया की अध्यक्षता में और फिर एस बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी, जिसकी सिफारिशें इस संशोधन का आधार बनीं। बालाकृष्णन समिति ने दुनिया की खासतौर से संघीय व्यवस्था वाली राजधानियों का अध्ययन करने के बाद संतुलनकारी व्यवस्था का सुझाव दिया था। इसके तहत दिल्ली सरकार के पास पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और समाज कल्याण जैसे काम है। सुरक्षा (पुलिस), कानून-व्यवस्था, प्रशासन (नौकरशाही) और भूमि पर नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है।

संविधान के अनुच्छेद 239क, 239कक तथा 239कख ऐसे प्रावधान हैं जो दिल्ली और पुदुच्चेरी को राज्य का स्वरूप प्रदान करते हैं। इन प्रदेशों के लिए मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल तथा विधान सभा की व्यवस्था की है, लेकिन राज्यों के विपरीत इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं जिसके लिए वे उप-राज्यपाल को सहायता और सलाह देते हैं। ये कानूनन केंद्र शासित प्रदेश हैं। दिल्ली सामान्य राज्य नहीं है। वह देश की राजधानी है। केंद्रीय प्रशासन राज्य व्यवस्था के अधीन रखना सम्भव नहीं। यदि पूर्ण राज्य का दर्जा देने का विचार हुआ भी तो दिल्ली की व्यवस्था का विभाजन करना होगा।

शुंगलू रिपोर्ट का मामला कांग्रेस ने उठाया है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी को जो सफलता मिली है, वह कांग्रेस के हिस्से की है। कांग्रेस उसे वापस लेना चाहती है। दिल्ली नगर निगम के चुनावों में उसे इसका मौका मिला है। अपने कर्मों से ‘आप’ इसका मौका दे भी रही है। गोवा और पंजाब में वह मुँह की खा चुकी है। क्या दिल्ली में ‘आप’ की उलटी गिनती शुरू होगी?

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - राहुल सांकृत्यायन जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. अब जबकि राजनीति में हैं आप वाले तो चलेंगे लम्बे समय तक जैसे दूसरे चल रहे हैं ...

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