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Friday, February 3, 2012

बढ़ता मतदान माने क्या?

पाँच राज्यों के चुनाव की प्रक्रिया में तीन राज्यों में मतदान का काम पूरा हो चुका है। अच्छी खबर यह है कि तीनों जगह मतदान का प्रतिशत बढ़ा है। यह सच है कि मणिपुर में परम्परा से अच्छा मतदान होता रहा है, पर इन दिनों यह प्रदेश जातीय हिंसा और लम्बे ब्लॉकेड के बाद मतदान कर रहा था। इसी तरह उत्तराखंड में मौसम का खतरा था। उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश और गोवा में भी बेहतर मतदान होगा। इस बेहतर मतदान का मतलब क्या निकाला जाए? सामान्यतः हम मानते हैं कि ज्यादा वोट या तो समर्थन में पड़ता है या विरोध में। यानी जनता निश्चय की भूमिका में आती है। हमारी चुनाव प्रक्रिया में पाँच साल बाद एक मौका मिलता है जब जनता अपनी राय रखती है। वह राय भी समर्थन या विरोध के रूप में कभी-कभार व्यक्त होती है। वर्ना आमतौर पर बिचौलियों की मदद से पार्टियाँ वोट बटोरती हैं। पूरे परिवार और अक्सर पूरे मोहल्ले का वोट एक प्रत्याशी को जाता रहा है। जाति और धर्म भी चुनाव जीतने के बेहतर रास्ते हो सकते हैं, यह पिछले तीन दशक में देखने को मिला। और यह प्रवृत्ति खत्म नहीं हो रही, बल्कि बढ़ रही है।

Monday, January 16, 2012

सिर्फ दो महीने का सदाचार क्यों?

पत्रकार अम्बरीष कुमार ने फेसबुक पर लिखा है,’ इस बार कहीं भी सार्वजनिक रूप से न तो खिचड़ी का भंडारा हुआ और न लखनऊ में जगह जगह होने वाला तहरी भोज का आयोजन हुआ। न ही नव वर्ष और मकर संक्रांति के मौके पर किसी की शुभकामनाओं के बोर्ड और होर्डिंग। वजह सिर्फ चुनाव आयोग की सख्ती। भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा-जब एक एक प्याली चाय का खर्चा उम्मीदवारों के खर्च में जोड़ दिया जा रहा है तो तहरी भोज जिसमे हजारों की संख्या में लोग आते है उसका खर्च चुनाव खर्च में जुड़वाने का जोखम कौन मोल लेगा।’ इस बार के चुनाव में प्रतिमाएं ढकने का प्रकरण सबसे ज्यादा चर्चा में है। मुसलमानों को आरक्षण देने की योजना और कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और चुनाव आयोग के बीच अधिकार को लेकर छोटी सी चर्चा ने भी मामले को रोचक बना दिया।

Friday, October 21, 2011

चुनाव सुधरेंगे तो सब सुधरेगा

 पेड न्यूज़ के कारण उत्तर प्रदेश की बिसौली सीट से जीती प्रत्याशी की सदस्यता समाप्त होने के बाद सम्भावना बनी है कि यह मामला कुछ और खुलेगा। यह सिर्फ मीडिया का मामला नहीं है हमारी पूरी चुनाव व्यवस्था की कमज़ोर कड़ी है। आने वाले समय में व्यवस्थागत बदलाव के लिए चुनाव प्रणाली में सुधार की ज़रूरत होगी। यह बदलाव का समय है।चुनाव के गोमुख से निकलेगी सुधारों की गंगा।

अन्ना-आंदोलन शुरू होने पर सबसे पहले कहा गया कि चुनाव का रास्ता खुला है। आप उधर से आइए। चुनाव के रास्ते पर व्यवस्थित रूप से बैरियर लगे हैं जो सीधे-सरल और ईमानदार लोगों को रोक लेते हैं। चुनाव पावर गेम है। इसमें मसल और मनी मिलकर माइंड पर हावी रहते हैं। जनता का बड़ा तबका भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का समर्थन सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि उसे लगता है कि व्यवस्था पूरी तरह ठीक न भी हो, पर एक हद तक ढर्रे पर लाई जा सकती है।