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Monday, August 5, 2013

NBT@ लखनऊ


सन 1983 में लखनऊ से नवभारत टाइम्स का औपचारिक रूप से पहला अंक अक्टूबर में निकल गया था, टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ। पर वास्तव में पहला अंक नवम्बर में निकला था। उस वक्त तक नवभारत भारत टाइम्स को लेकर टाइम्स ग्रुप में कोई बड़ा उत्साह नहीं था। हिन्दी की व्यावसायिक ताकत तब तक स्थापित नहीं थी। हालांकि सम्भावनाएं उस समय भी नजर आती थीं। बहरहाल इसी ब्रैंड नाम का अखबार फिर से लखनऊ से निकला है तो जिज्ञासा बढ़ी है। अखबार का अपने समाज से रिश्ता और उसका कारोबार दोनों मेरी दिलचस्पी के विषय हैं। मैं चाहता हूँ कि लखनऊ के मेरे मित्र नवभारत टाइम्स और हिन्दी पत्रकारिता पर मेरी जानकारी बढ़ाएं। आभारी रहूँगा।

पिछले साल अक्टूबर में टाइम्स हाउस ने कोलकाता से एई समय नाम से बांग्ला अखबार शुरू किया था। हिन्दी और बांग्ला के वैचारिक परिवेश को परखने में टाइम्स हाउस की व्यावसायिक समझ एकदम ठीक ही होगी। मेरा अनुमान है कि लखनऊ में टाइम्स हाउस ने पत्रकारिता को लेकर उन जुम्लों का इस्तेमाल नहीं किया होगा, जो कोलकाता में किया गया। हिन्दी इलाके के लोगों के मन में अपनी भाषा, संस्कृति, साहित्य और पत्रकारिता के प्रति चेतना दूसरे प्रकार की है। वे भविष्य-मुखी, करियर-मुखी और चमकदार जीवन-पद्धति के कायल हैं। कोलकाता में एई समय से पहले आनन्द बाजार पत्रिका ने एबेला नाम से एक टेब्लॉयड शुरू किया था। इसकी वजह वही थी जो लखनऊ में है। कोलकाता में भी टेब्लॉयड संस्कृति जन्म ले रही है। टाइम्स ऑफ इंडिया बांग्ला टेब्लॉयड मनोवृत्ति का पूरी तरह दोहन करे उससे पहले आनन्द बाजार ने चटख अखबार निकाल दिया।

Tuesday, October 2, 2012

न्यूयॉर्कर में समीर जैन और टाइम्स ऑफ इंडिया



बुनियादी तौर पर अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के जीवन और संस्कृति पर केन्द्रित पत्रिका न्यूयॉर्कर निबंध लेखन, फिक्शन, व्यंग्य लेखन, कविता और खासतौर से कार्टूनों के लिए विशिष्ट है। किसी ज़माने में हिन्दी में भी ऐसी पत्रिकाएं थीं, पर आधुनिकता की दौड़ में हमने सबको खत्म होने दिया। इधर पिछले कुछ वर्षों में भारत केन्द्रित लेख भी प्रकाशित हुए हैं। पत्रिका के ताज़ा अंक (8अक्टूबर,2012) में भारत के समीर जैन, विनीत जैन और टाइम्स ऑफ इंडिया के बारे में इसके प्रसिद्ध मीडिया क्रिटिक केन ऑलेटा का नौ पेज का आलेख छपा है। ऑलेटा 1992 से एनल्स ऑव कम्युनिकेशंस कॉलम लिख रहे हैं। सिटिज़ंस जैन शीर्षक आलेख में उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया के विस्तार का विवरण दिया है। आलेख के पहले सफे के सबसे नीचे इसका सार इन शब्दों में दिया गया है, "Their success is a product of an unorthodox philosophy." 

Thursday, February 24, 2011

भारत के टाइम्स की खबर छापी मर्डोक के संडे टाइम्स ने

भारत की पेड न्यूज़ धोखाधड़ी (India's dodgy 'paid news' phenomenon) शीर्षक से लंदन के प्रतिष्ठित अखबार गार्डियन के लेखक रॉय ग्रीनस्लेड ने अपने व्लॉग में टाइम्स ऑफ इंडिया के पेड न्यूज़ प्रकरण को उठाया है। उन्होंने संडे टाइम्स में प्रकाशित एक रपट के आधार पर यह लिखा है, यह याद दिलाते हुए कि भारत सरकार ने पेड न्यूज़ की भर्त्सना की है। पिछले साल प्रेस काउंसिल ने इस मामले की जाँच भी की थी, जिसकी रपट काफी काट-छाँट कर जारी की गई थी। 


बावजूद इसके टाइम्स ऑफ इंडिया में रकम लेकर मन पसंद सम्पादकीय सामग्री का प्रकाशन सम्भव है। पेड न्यूज़ की परिभाषा बड़ी व्यापक है। इसमें गिफ्ट लेने से लेकर मीडिया हाउस और कम्पनियों के बीच प्रचार समझौते भी शामिल हैं। यह समझौते शेयर ट्रांसफर के रूप में होते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की मन पसंद पब्लिसिटी के बदले अखबारों ने पैसा लिया, ऐसी शिकायतें थीं।