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Thursday, January 19, 2023

विरोधी-एकता का एक और मोर्चा


तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) है। गत बुधवार को तेलंगाना के खम्मम में हुई बीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव की रैली कई वजह से चर्चा में है। केसीआर ने राष्ट्रीय शक्ति के रूप में उभरने के अपने लक्ष्य के तहत पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में महत्वपूर्ण चुनावी उपस्थिति बनाने के लिए इसके सीमावर्ती शहर खम्मम को चुना। बीआरएस, तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) 2018 में संयुक्त खम्मम जिले की 10 में से केवल एक विधानसभा सीट ही जीत सकी। बाद में कांग्रेस के छह और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के दो विधायक बीआरएस में शामिल हो गए थे। चंद्रशेखर राव यहां अपना आधार बनाना चाहते हैं, ताकि पड़ोसी आंध्र प्रदेश में उनके कदम मजबूत करने में मदद देगा। साथ ही उनकी महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय नेता बनने की भी है। दिल्ली के चैनलों पर आप आजकल तेलंगाना से जुड़े पेड कार्यक्रम देख रहे होंगे।

बुधवार को खम्मम में हुई रैली में के चंद्रशेखर राव के अलावा पिनाराई विजयन, अरविंद केजरीवाल, भगवंत, अखिलेश यादव और कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा शामिल हुए। एक तरह से 2024 के चुनाव के पहले विरोधी एकता का यह एक प्रयास है। रैली में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि मोदी सरकार अब जाने वाली है। अब उसके पास केवल 399 दिन बचे हैं। अखिलेश ने बीजेपी पर विरोधी दलों को परेशान करने और किसानों के साथ छल करने का आरोप लगाया।

उन्होंने यह भी कहा कि बीआरएस अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने खम्मम की इस ऐतिहासिक धरती पर इतनी भारी भीड़ इकट्ठी की है और पूरे देश को एक संदेश दिया है। उत्तर प्रदेश की जनता द्वारा भी अंततः सत्तारूढ़ भाजपा को खारिज किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘आज हम इतनी बड़ी संख्या में एकत्र हुए हैं। इस सभा के सामने, मैं कह सकता हूं कि अगर तेलंगाना में भाजपा को खारिज किया जा रहा है, तो उत्तर प्रदेश भी पीछे नहीं रहेगा।’

के चंद्रशेखर राव ने देश की जनता को आगाह किया कि हमें धार्मिक उन्माद से बचना होगा। देश भर में सभी सेक्युलर ताकतों को मिलकर भाजपा को सत्ता से हटाना होगा। बीआरएस के सत्ता में आने पर देशभर के किसानों को फ्री बिजली दिया जाएगा। प्रत्येक घर में शुद्ध पेय जल सुविधा दी जाएगी। इसके बाद देश में रायतुबंधु योजना लागू किया जाएगा। इस योजना के तहत प्रत्येक किसान को दस हजार रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष फ्री सहायता राशि दी जाएगी। केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने पर अग्निपथ भर्ती योजना को समाप्त कर दिया जाएगा। साथ ही देश में प्रत्येक वर्ष पच्चीस लाख परिवारों को दलित बंधु सुविधा दी जाएगी। इस योजना में दलित युवा को दस लाख रुपए स्वरोजगार के लिए दिया जाएगा। कोई राशि सरकार को लौटानी नहीं होगी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पहली बार कई मुख्यमंत्री इकट्ठा होकर काम कर रहे हैं, हम सब एक साथ बैठकर राजनीति की बातें नहीं करते हैं बल्कि देश में किसानों और मजदूरों के हालत को बेहतर बनाने पर विचार करते हैं। अगले वर्ष सभी को मिलकर भाजपा को उखाड़ फेंकना है। केजरीवाल ने कहा कि तेलंगाना के राज्यपाल यहां के मुख्यमंत्री केसीआर को तंग करते हैं, पंजाब के राज्यपाल भी मुख्यमंत्री भगवंत मान को तंग करते हैं, दिल्ली के एलजी मुझे तंग करते हैं, तमिलनाडु के राज्यपाल मुख्यमंत्री को तंग करते हैं, ये सभी राज्यपाल तंग नहीं कर रहे हैं, मोदी साहब तंग कर रहे हैं।

जिस देश का प्रधानमंत्री दिनभर यह सोचे कि किसे तंग करना है तो देश तरक्की कैसे करेगा। प्रधानमंत्री सोचते हैं कि कहां सीबीआई भेजनी है और कहां ईडी भेजना है, किस पार्टी का विधायक खरीदना है। इससे देश तरक्की नहीं कर सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि भाजपा जुमला पार्टी है। दो करोड़ रोजगार का वादा, महंगाई हटाने का वादा, किसान की आय दोगुना करने का वादा जुमला साबित हुआ है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने कहा कि केन्द्र की भाजपा सरकार राज्य के अंतर्गत आने वाले विषयों पर भी बिना राज्य सरकार से सलाह लिए कानून में परिवर्तन कर रही है। अब केन्द्र सरकार ही कानून व्यवस्था, कृषि और बिजली जैसे राज्य सरकार के विषयों पर बिना राज्य सरकार की सलाह लिए कानून बना रही है। यह संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार है। राज्य सरकार के विधायी शक्ति को छीना जा रहा है। अब समय आ गया है कि हम सभी एकजुट होकर केन्द्र के इस रवैये का विरोध करें।

Monday, November 30, 2020

हैदराबाद के निकाय चुनाव में अमित शाह और योगी को क्यों जाना पड़ा?

 


ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव के प्रचार में अमित शाह और योगी आदित्य नाथ के उतर जाने के बाद देश का ध्यान इस तरफ गया है। आखिर क्या बात है इस चुनाव में? देश के गृहमंत्री को स्थानीय निकाय चुनाव के प्रचार में जाने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके राजनीतिक कारण भी साफ हैं। बीजेपी को तेलंगाना में प्रवेश का रास्ता नजर आ रहा है। मुकाबले में टीआरएस, कांग्रेस और AIMIM के शामिल हो जाने से यह इतना खुला चुनाव हो गया है कि बीजेपी को सफलता के आसार नजर आ रहे हैं।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को तब धक्का लगा, जब AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवेसी ने कहा कि ग्रेटर हैदराबाद के निकाय चुनाव हम अकेले ही लड़ेंगे। उनके अनुसार ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां टीआरएस AIMIM से प्रतिस्पर्धा कर रही है, और ऐसे में दोनों का साथ आना श्रेयस्कर नहीं होगा। यों भी बिहार की सफलता के बाद AIMIM अपनी ताकत के विस्तार को दिखाना चाहती है। उसे पता है कि बहुमत नहीं मिलेगा, पर एक हैसियत बनेगी। यही उसका लक्ष्य है। इस चुनाव में टीआरएस 150 सीटों पर, बीजेपी 149 और कांग्रेस 146 पर चुनाव लड़ रही है। AIMIM ने 51 प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं।

Sunday, February 9, 2014

गले की फाँस बना तेलंगाना

संसद का यह महत्वपूर्ण सत्र तेलंगाना के कारण ठीक से नहीं चल पा रहा है। इसके पहले शीत सत्र और मॉनसून सत्र के साथ भी यही हुआ। तेलंगाना की घोषणा से कोई खुश नहीं है। कांग्रेस ने सन 2004 में तेलंगाना बनाने का आश्वासन देते वक्त नहीं सोचा था कि यह उसके लिए घातक साबित होने वाला है। इस बात पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया है कि सन 2004 में कांग्रेस के प्राण वापस लाने में तेलंगाना की जबर्दस्त भूमिका थी। एक गलतफहमी है कि 2004 में भाजपा की हार इंडिया शाइनिंग के कारण हुई। भाजपा की हार का मूल कारण दो राज्यों का गणित था।

आंध्र और तमिलनाडु में भाजपा  के गठबंधन गलत साबित हुए। दूसरी और कांग्रेस ने तेलंगाना का आश्वासन देकर अपनी सीटें सुरक्षित कर लीं। सन 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुल 182 सीटें मिलीं थीं, जो 2004 में 138 रह गईं। यानी 44 का नुकसान हुआ। इसके विपरीत कांग्रेस की सीटें 114 से बढ़कर 145 हो गईं। यानी 31 का लाभ हुआ। यह सारा लाभ तमिलनाडु और आंध्र से पूरा हो गया। 1999 में इन दोनों राज्यों से कांग्रेस की सात सीटें थीं, जो 2004 में 39 हो गईं। इन 39 में से 29 आंध्र में थीं, जहाँ 1999 में उसके पास केवल पाँच सीटें थीं। कांग्रेस को केवल लोकसभा में ही सफलता नहीं मिली। उसे आंध्र विधानसभा के चुनाव में भी शानदार सफलता मिली, और वाईएसआर रेड्डी एक ताकतवर मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित हुए।

Thursday, October 10, 2013

अपने लिए कुआं और खाई दोनों खोदे हैं कांग्रेस ने तेलंगाना में

कांग्रेस के लिए खौफनाक अंदेशों का संदेश लेकर आ रहा है तेलंगाना. जैसा कि अंदेशा था इसकी घोषणा पार्टी के लिए सेल्फगोल साबित हुई है. इस तीर को वापस लेने और छोड़ने दोनों हालात में उसे ही घायल होना है. सवाल इतना है कि नुकसान कम से कम कितना हो और कैसे हो? इस गफलत की जिम्मेदारी लेने को पार्टी का कोई नेता तैयार नहीं है. प्रदेश की जनता, उसकी राजनीति और प्रशासन दो धड़ों में बँट चुका है. मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी इस फैसले से खुद को काफी पहले अलग कर चुके हैं. शायद 2014 के चुनाव के पहले यह राज्य बन भी नहीं पाएगा. यानी कि इसे लागू कराने की जिम्मेदारी आने वाली सरकार की होगी.

Wednesday, July 31, 2013

राग तेलंगाना, ताल हैदराबादी

जोखिम भरी है तेलंगाना की राह
लोकसभा चुनाव समय पर हुए तब तक भी शायद तेलंगाना बन नहीं पाएगा. पहले हुए तो बात ही कुछ और है. इसलिए कांग्रेस ने इसका फैसला चुनाव के लिए किया है भी तो वह भावनात्मक है, व्यावहारिक नहीं. यानी जिन राजनीतिक शक्तियों को परास्त करने की मनोकामनाएं हैं, उनपर अभी सीधा असर नहीं होगा.
कांग्रेस कार्यसमिति का फैसला हो जाने भर से तेलंगाना नहीं बन जाएगा। कांग्रेस ने तो सन 2004 में ही सीधे-सीधे मान लिया था कि तेलंगाना बनेगा। उसके बाद पाँच साल तक नहीं बना और के चन्द्रशेखर राव ने आमरण अनशन शुरू किया तो पी चिदम्बरम ने उनके अनशन को खत्म कराने के लिए साफ-साफ कहा कि तेलंगाना बनेगा। अभी इस बाबत कैबिनेट को फैसला करना होगा, फिर यह प्रस्ताव आंध्र प्रदेश की विधानसभा के पास जाएगा। वहाँ से यह संसद में आएगा। दोनों जगह से इस प्रस्ताव को पास कराने के रास्ते में कई तरह की चुनौतियाँ हैं। चूंकि भाजपा ने तेलंगाना बनाने का समर्थन किया है इसलिए संसद से यह प्रस्ताव पास होने में अड़चन नहीं है, पर तेलंगाना के भौगोलिक स्वरूप को लेकर दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। 

Tuesday, July 30, 2013

तेलंगाना में कांग्रेस का गणित

 मंगलवार, 30 जुलाई, 2013 को 07:52 IST तक के समाचार
सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी
हालांकि कांग्रेस पार्टी बड़ी सावधानी से आंध्र प्रदेश में अपनी रणनीति तैयार कर रही है पर ऐसा लगता है कि तेलंगाना मामले में उसने अपने ही ख़िलाफ़ गोल कर लिया है. फ़िलहाल उसके सामने चुनौती है कि तेलंगाना बने और इसका नुकसान कम से कम हो.
दो बातों ने कांग्रेस के लिए हालात बिगाड़े हैं. एक तो इस फैसले को लगातार टालने की कोशिश. चुनाव जब सिर पर आ गए हैं तब पार्टी फैसला कर रही है. दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री वाइ एस आर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी के साथ पार्टी ने रिश्ते बुरी तरह खराब कर लिए हैं. यह बात तटीय आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र में कांग्रेस के ख़िलाफ़ जाएगी.
सन 2004 के चुनाव में एनडीए की पराजय के दो बड़े केन्द्र थे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश. इस बार भाजपा कांग्रेस के इस महत्वपूर्ण गढ़ को भेदना चाहती है. भाजपा की कोशिश है कि तेलुगुदेसम या टीडीपी और टीआरएस के साथ मिलकर कांग्रेस को हराया जाए. वह ख़ामोशी के साथ कांग्रेस को इस दलदल में फँसते हुए देख रही है. उसने तेलंगाना का समर्थन किया है और टीडीपी भी इसके साथ नज़र आती है.
तेलंगाना के कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अब पार्टी जो कुछ भी हासिल कर सकती है तेलंगाना में ही संभव है. तटीय आंध्र प्रदेश और रायलसीमा में जगनमोहन रेड्डी ने अपने पैर काफी मजबूत कर लिए हैं. वहाँ कुछ मिलना नहीं है. तेलंगाना क्षेत्र में विधानसभा की 294 में से 119 और लोकसभा की कुल 42 में से 17 सीटें हैं. इतना साफ़ लगता है कि नया राज्य बनेगा तो टीआरएस को फायदा होगा. और नहीं भी बना तो उसे लड़ाई जारी रखने का लाभ मिलेगा.