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Saturday, December 24, 2011

एक अदद नौकरी की तलाश में भटकते युवा

युवा आबादी के लिहाज से भारत सबसे बड़ा देश है। इस बदलते देश के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण बात है। इतनी बड़ी युवा आबादी हमारे लिए बहुत उपयोगी है। देश का निर्णाण युवा हाथों से ही होता है। पर क्या हम अपनी इस सम्पदा का इस्तेमाल कर पा रहे हैं? युवा वर्ग चुस्त-दुरुस्त और ठीक से प्रशिक्षित है तो देश की शक्ल बदलने में देर नहीं लगेगी। पर यदि वह कुंठित, हताश और निराश है तो यह खौफनाक है। युवा पत्रकार गिरिजेश कुमार बेरोजगारी को लेकर कुछ सवाल उठा रहे हैं। 

पटना की अमृता बदहवासी में अपना मानसिक संतुलन खोकर बक्सर पहुँच गई। उसकी शिक्षक पात्रता परीक्षा नामक महापरीक्षा खराब चली गई थी। बाद में जी आर पी बक्सर की मदद से उसे उसके परिवार वालों को सौंपा गया। यह खबर अखबार के चौदहवें पन्ने पर बॉटम में एक कॉलम में आई। कुछ अख़बारों ने इसे ज़रुरी भी नहीं समझा। हालाँकि, सवाल यह नहीं है कि इस खबर को किस
पन्ने पर छपना चाहिए, या छपना चाहिए भी या नहीं? सवाल यह है कि रोजगार की एक संभावना युवाओं की मनोदशा को जिस तरह से प्रभावित कर रहा है, वह समाज के लिए कितना हितकर है? शिक्षा जैसी चीज़ अगर पेट पालने का ज़रिया बन जाए तो समाज को शिक्षित करने का मूल उद्देश्य का खोना लाज़िमी है। लेकिन बेरोज़गारी के आलम में वे लोग क्या करें जिनपर पेट और परिवार की जिम्मेदारी है, यह भी बड़ा सवाल है?

विदित हो कि बिहार सरकार ने सरकारी प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में शिक्षक नियुक्ति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित की थी। जो क्रमशः 20 और 21 दिसंबर को समाप्त हो गयी। राज्य भर में 1380 परीक्षा केन्द्रों पर आयोजित इस परीक्षा में तक़रीबन 30 लाख परीक्षार्थी शामिल हुए थे।