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Friday, March 1, 2024

केरल में ‘इंडिया’ बनाम ‘इंडिया’, वायनाड में असमंजस

 


2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र के अलावा केरल के वायनाड क्षेत्र से भी चुनाव लड़ा था। अमेठी में वे स्मृति ईरानी से मुकाबले में हार गए थे, पर वायनाड में वे जीत गए। इसबार वायनाड की सीट पर राहुल गांधी के सामने कम्युनिस्ट पार्टी ने एनी राजा को प्रत्याशी बनाया है, जो सीपीआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य हैं। एनी पार्टी के महासचिव डी राजा की पत्नी हैं। उनकी इस इलाके में अच्छी खासी प्रतिष्ठा है। राहुल गांधी के लिए इस मुकाबले को जीतना आसान नहीं होगा। सवाल है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसा क्यों किया, जबकि वह इंडिया गठबंधन में शामिल है?

इसके पहले कांग्रेस की ओर से कहा जा चुका है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ राज्य की 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगा, जिनमें से 16 पर कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे। वामपंथी दल इंडिया गठबंधन में शामिल जरूर हैं, पर उनके सामने सबसे बड़ा अस्तित्व का संकट है। वे बंगाल से बाहर हो चुके हैं और 2019 के चुनाव में लोकसभा से भी तकरीबन बाहर हो गए। वाममोर्चा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने 2019 में राज्य की सभी 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें  माकपा के 14 और भाकपा के 4 प्रत्याशी थे। दो सीटों पर लेफ़्ट समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार खड़े किए गए थे।

Sunday, August 13, 2023

संसदीय बहस ने मंदी कर दी मणिपुर की तपिश


संसद के मॉनसून-सत्र का समापन लगभग उसी अंदाज़ में हुआ, जिसकी आशा थी। सत्र के पहले सबसे बड़ा मुद्दा मणिपुर का समझा जा रहा था, पर दोनों सदनों में इस विषय पर चर्चा नहीं हो पाई। विपक्ष प्रधानमंत्री के वक्तव्य पर अड़ गया, जो अविश्वास-प्रस्ताव में ही संभव था। पर अविश्वास-प्रस्ताव ने मणिपुर की तुर्शी को ठंडा कर दिया। बहस के दौरान राजनीति के तमाम गड़े मुर्दे उखाड़े गए, पर मणिपुर की परिस्थिति पर रोशनी नहीं पड़ी। इसे लेकर दोनों सदनों में शोर हुआ, चर्चा नहीं हुई। अविश्वास प्रस्ताव के करीब दो घंटे लंबे जवाब में जब प्रधानमंत्री मणिपुर-प्रसंग पर आए, तब तक विरोधी दल सदन से बहिर्गमन कर चुके थे। प्रस्ताव पर मतदान की जरूरत भी नहीं पड़ी। विरोधी दलों की गैर-मौजूदगी में वह ध्वनिमत से नामंजूर हो गया। यह सत्र, संसदीय बहस के क्रमशः बढ़ते पराभव का अच्छा उदाहरण है।

कुछ बेहद महत्वपूर्ण विधेयक इस सत्र में बगैर किसी बहस के पास हो गए। इससे पता लगता है कि राजनीति गंभीर मसलों में कितनी दिलचस्पी है। सत्र की समापन बैठकों का भी विरोधी गठबंधन ने बहिष्कार किया। यह बहिष्कार अधीर रंजन चौधरी के निलंबन और मणिपुर पर चर्चा नहीं हो पाने के विरोध में किया गया। सत्र के दौरान राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा, संजय सिंह और रिंकू सिंह और लोकसभा में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी का निलंबन हुआ। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह का निलंबन केवल सत्र के समापन तक का था, पर उसे बढ़ा दिया गया है। और कुछ हुआ हो या ना हुआ हो, इस सत्र ने 2024 के लिए प्रचार के कुछ मुद्दे, मसले, नारे और जुमले दे दिए हैं। यह भी स्पष्ट हुआ की विरोधी एकता में बीजद, वाईएसआर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के शामिल होने की संभावनाएं नहीं हैं।

22 विधेयक पास

सत्र की अंतिम बैठक में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि इस दौरान सदन की 17 बैठकें हुईं, जो कुल 44 घंटे और 13 मिनट तक चलीं। सदन की सकल उत्पादकता 45 फीसदी रही। इस दौरान सरकार ने 20 विधेयक पेश किए और 22 विधेयकों को पास किया गया। इनमें से 10 विधेयक एक घंटे से भी कम की चर्चा के बाद पास हो गए। राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने समापन भाषण में कहा कि मेरी अपीलों का असर काफी सदस्यों पर नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इस कारण सदन के 50 घंटे 21 मिनट बेकार हो गए। सदन की उत्पादकता 55 प्रतिशत रही। सदन में नियमों के उल्लंघन और अपमानजनक आचरण का हवाला देकर आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित कर दिया गया। सदन ने इसी पार्टी के संजय सिंह का निलंबन भी विशेषाधिकार समिति की सिफारिशें आने तक बढ़ा दिया है।

Sunday, August 6, 2023

मॉनसून-सत्र और नई रणनीतियाँ


दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश के स्थान पर लाए गए विधेयक को लोकसभा ने पास कर दिया है। संभवतः सरकार अब इसे सोमवार 7 अगस्त को राज्यसभा में पेश करेगी। लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के बहुमत को देखते हुए इसके पास होने में संदेह नहीं था। राज्यसभा में भी उसके पास होने के आसार हैं, पर देखना होगा कि वहाँ मतदान के समय गैर-भाजपा पार्टियों का रुख क्या रहेगा। यह रुख भविष्य की राजनीति की ओर इशारा करेगा। इस हफ्ते अविश्वास प्रस्ताव पर भी चर्चा होगी। 10 अगस्त को प्रधानमंत्री जब इसपर हुई बहस का उत्तर देंगे, तब देश की निगाहें बहुत सी बातों पर होंगी। पिछले साढ़े चार या साढ़े नौ साल के प्रसंग उठेंगे। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। अब उनकी संसद सदस्यता बहाल हो जानी चाहिए। कब होगी और कैसे होगी, देखना अब यह है। क्या इसी सत्र में उनकी वापसी संभव है? क्या वे अविश्वास प्रस्ताव पर बोलेंगे? ऐसे कुछ सवाल हैं। सत्र में अब यही हफ्ता शेष है, पर जो भी होगा रोचक और सनसनीखेज होगा। बीजेपी ने लोकसभा सदस्यों को ह्विप जारी कर दिया है, जिसमें उनसे 7 से 11 अगस्‍त के बीच सदन में उपस्थित रहने और सरकार का समर्थन करने के लिए कहा गया है।

राज्यसभा में विधेयक

करीब चार घंटे की बहस के बाद दिल्ली सेवा विधेयक लोकसभा से पास हो गया, पर संशय अब सिर्फ राज्यसभा की परिस्थितियों को लेकर है। सदन में एनडीए और विरोधी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के पास लगभग बराबर सीटें हैं। ऐसे में गुट-निरपेक्ष पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस ने अपना रुख साफ कर दिया है। दोनों ने गुरुवार को लोकसभा में सरकार का साथ दिया। दोनों के राज्यसभा में नौ-नौ सदस्य हैं। दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी, जेडीएस और टीडीपी ने अपना रुख साफ नहीं किया है। इन तीनों के राज्यसभा में एक-एक सांसद हैं। ये किस तरफ वोटिंग करेंगे इसपर सबकी नजरें हैं। तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस ने स्पष्ट किया है कि वह बिल के विरोध में है। उसके राज्यसभा में सात सांसद हैं। एनडीए के राज्यसभा में 100 सदस्य हैं। बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन से उसे 118 सदस्यों का साथ मिल गया है। माना जा रहा है कि नामित 5 सदस्य भी सरकार का साथ देंगे और तीन निर्दलीय सांसद भी हैं। गठबंधन 'इंडिया' के साथ राज्यसभा में 101 सदस्य हैं। बीआरएस के सात सांसदों के समर्थन से उसके पास 108 सदस्यों का बल होगा। तराजू का पलड़ा एनडीए की तरफ कुछ झुका हुआ लगता है, पर राजनीति का क्या भरोसा?

गतिरोध जारी

दोनों सदनों में मणिपुर हिंसा मामले पर गतिरोध इस हफ्ते भी जारी रहा। 12 दिन हो चुके हैं और सत्र के पाँच दिन बचे हैं। विपक्ष लगातार मणिपुर हिंसा मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग कर रहा है। विरोधी दलों की रणनीति है कि बात चाहे दिल्ली के विधेयक पर हो या अविश्वास प्रस्ताव पर, वे मणिपुर के मसले पर सरकार को घेरेंगे। वे इस बात को लेकर नाराज़ है कि सरकार ने राज्यसभा में मणिपुर पर 11 अगस्त यानी सत्र के आखिरी दिन चर्चा कराने की योजना बनाई है। विरोधी दल चाहते हैं कि सोमवार को ही चर्चा हो। शुक्रवार को उन्होंने राज्यसभा के नेता सदन पीयूष गोयल और संसदीय-कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात की, ताकि गतिरोध खत्म हो। सरकार भी ऐसा संदेश देना नहीं चाहती कि मणिपुर पर वह कुछ छिपाने की मंशा रखती है या बहस से भाग रही है। विरोधी खेमे में भी लोग मानते हैं कि ऐसा संदेश न जाए कि नियमों की आड़ में विपक्ष बहस से भाग रहा है। राज्यसभा में आप के संजय सिंह और लोकसभा में रिंकू सिंह के निलंबन से विरोधी सदस्यों के व्यवहार में बदलाव आया है। सोमवार को पता लगेगा कि वे आसन के पास आकर विरोध प्रदर्शन करेंगे या नहीं। काफी सदस्य वैल में जाने से हिचक रहे हैं और अपनी-अपनी सीट से ही खड़े होकर विरोध व्यक्त कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राज्यसभा में कुछ और सदस्य निलंबित हो गए तो सरकार को वोटिंग के दौरान आसानी हो जाएगी।

Thursday, June 22, 2023

विरोधी-एकता को लेकर पटना की बैठक के पहले उठते सवाल


अगले आम चुनाव की रणनीति बनाने के लिए 23 जून को पटना में विपक्षी पार्टियों की मीटिंग के लिए जारी तैयारियों के बीच खींचतान के भी संकेत मिल रहे हैं। यह खींचतान कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से जुड़ी है। आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक चिट्ठी लिख कर कहा है कि मीटिंग में सबसे पहले 'दिल्ली अध्यादेश' पर बात होनी चाहिए। वहीं इस बैठक में ममता बनर्जी के भाषण पर सबका ध्यान रहेगा। इस बैठक में देश भर से 20 विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेता शामिल हो रहे हैं, जिसमें बीजेपी के ख़िलाफ़ एक साझा एक्शन प्लान पर बात होनी है। बीजू जनता दल, तेलुगु देसम, वाईएसआर कांग्रेस, अकाली दल जैसी कुछ पार्टियों ने इस एकता में दिलचस्पी नहीं दिखाई है।

यह बैठक भले ही बुलाई नीतीश कुमार ने है, पर उन्हें ममता बनर्जी ने प्रेरित किया है। विरोधी दलों की एकता पर सभी दलों की सिद्धांततः सहमति है, पर नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और के चंद्रशेखर राव के दृष्टिकोण कुछ अलग हैं। चंद्रशेखर राव तो इस बैठक में शामिल ही नहीं हो रहे हैं। सब जानते हैं कि तेलंगाना में उनका मुकाबला कांग्रेस पार्टी से है।

Thursday, June 1, 2023

उम्मीद से बेहतर जीडीपी संवृद्धि


देश की ​आर्थिक-वृद्धि दर विश्लेषकों के अनुमान को पीछे छोड़ते हुए वित्त वर्ष 2023 की चौथी तिमाही में 6.1 फीसदी रही। मैन्युफैक्चरिंग और निर्माण गतिविधियों में तेजी से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि ने चकित किया है। साथ ही यह कमजोर वै​श्विक परिदृश्य के बीच मजबूत घरेलू मांग को दर्शाता है। पिछले हफ्ते रॉयटर्स द्वारा 56 अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण में वित्त वर्ष 2023 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था।

चौथी तिमाही में उम्मीद से ज्यादा वृद्धि से पूरे वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी वृद्धि दर पहले के 7 फीसदी के अनुमान को पार कर 7.2 फीसदी पहुंच गई। राष्ट्रीय सां​ख्यिकी कार्यालय ने पहले अंतरिम अनुमान में जीडीपी वृद्धि दर 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। बुनियादी मूल्य पर सकल मूल्य वर्धन (GVA) वित्त वर्ष 2023 की मार्च तिमाही में 6.5 फीसदी और पूरे वित्त वर्ष में 7 फीसदी बढ़ा है। हालांकि देश की अर्थव्यवस्था का आकार वित्त वर्ष 2023 में 272.4 लाख करोड़ रुपये रहा जो वित्त वर्ष 2024 के बजट से पूर्व जारी किए गए पहले अग्रिम अनुमान से 67,039 करोड़ रुपये कम है।

लगातार दो तिमाही में गिरावट झेलने के बाद जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र ने अच्छी वापसी की और कच्चे माल की लागत कम होने तथा मार्जिन में सुधार के साथ इस क्षेत्र के उत्पादन में 4.5 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई। ब्याज दरों में बढ़ोतरी और ऊंची खुदरा मुद्रास्फीति के बावजूद श्रम प्रधान निर्माण क्षेत्र में भी मार्च तिमाही के दौरान 10.4 फीसदी की तेजी देखी गई।

बेमौसम बारिश के बावजूद जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में कृषि क्षेत्र का उत्पादन 5.5 फीसदी बढ़ा है जबकि व्यापार, होटल और परिवहन के बेहतर प्रदर्शन के दम पर सेवा क्षेत्र में 6.9 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। यहाँ पढ़ें बिजनेस स्टैंडर्ड में असित रंजन मिश्र का विश्लेषण और अखबार का संपादकीय

 आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस से मानव सभ्यता के अंत का ख़तरा

'आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस से इंसानी वजूद को ख़तरा हो सकता है.कई विशेषज्ञों ने इसे लेकर आगाह किया है. ऐसी चेतावनी देने वालों में ओपनएआई और गूगल डीपमाइंड के प्रमुख शामिल हैं.इसे लेकर जारी बयान 'सेंटर फ़ॉर एआई सेफ़्टी' के वेबपेज़ पर छपा है. कई विशेषज्ञों ने इस बयान के साथ अपनी सहमति जाहिर की है. विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा है, "समाज को प्रभावित कर सकने वाले दूसरे ख़तरों, मसलन महामारी और परमाणु युद्ध के साथ-साथ एआई (आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस) की वजह से वजूद पर मौजूद ख़तरे को कम करना वैश्विक प्राथमिकता होनी चाहिए." बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

 राहुल गांधी ने मोदी पर साधा निशाना, खालिस्तानियों को भी जवाब

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस को निशाना बनाया है. अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में लोगों को एक ग्रुप ऐसा है, जिसे लगता है कि वे हर चीज़ जानते हैं. राहुल गांधी 10 दिनों की अमेरिका यात्रा पर हैं. सैन फ्रांसिस्को के बाद वे वॉशिंगटन डीसी और फिर न्यूयॉर्क जाएँगे. संबोधन के दौरान सिख्स फ़ॉर जस्टिस (एसजेएफ़) से जुड़े कुछ लोगों ने खालिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी की और खालिस्तान का झंडा भी दिखाया. इंदिरा गांधी को लेकर भी नारेबाज़ी की गई. एसजेएफ़ का कहना है कि वे राहुल गांधी की हर सभा में जाएँगे और जब पीएम मोदी अमेरिका आएँगे, तब भी ऐसा ही करेंगे. बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

 

Sunday, March 19, 2023

कब तक चलेगा संसदीय गतिरोध?


संसद के दोनों सदनों में पूरे सप्ताह गतिरोध जारी रहा। जिस तरह के हालात हैं, उन्हें देखते हुए लगता नहीं कि सोमवार को भी स्थिति में सुधार होगा। कांग्रेस के नेतृत्व में विरोधी दल अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद में जेपीसी की मांग पर अडिग हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी के बयानों को बीजेपी राष्ट्रीय-अपमान का विषय और विदेशी जमीन से भारतीय संप्रभुता पर हमला बता रही है। वह चाहती है कि लंदन में कही गई अपनी बातों पर राहुल गांधी माफी माँगें। लगता यह भी है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस गतिरोध को जारी रखना चाहते हैं। 

इस गतिरोध के ज्यादातर प्रसंग 2024 के चुनाव में दोनों तरफ के तीरों का काम करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि विपक्ष वार्ता के लिए आगे आए तो गतिरोध को दूर किया जा सकता है। दोनों पक्ष लोकसभा अध्यक्ष के साथ बैठें। उन्हें दो कदम आगे आना चाहिए और हम उससे भी दो कदम आगे बढ़ाएंगे, तब संसद चलेगी। उन्होंने इसके बाद कहा, आप केवल संवाददाता सम्मेलन कीजिए और कुछ न कीजिए, ऐसा नहीं चलता।

दोनों तरफ से हंगामा

हंगामा दोनों तरफ से है। ऐसा कम होता है, जब सत्तापक्ष गतिरोध पैदा करे। खबर यह भी है कि बीजेपी लंदन की टिप्पणी के लिए राहुल गांधी को सदन से निलंबित या निष्कासित करने पर भी विचार कर रही है। यह गंभीर बात है, पर ऐसा क्यों सोचा जा रहा है? इससे तो राहुल गांधी का राजनीतिक कद बढ़ेगा? एक धारणा है कि विरोधी दलों का मुख्य चेहरा राहुल गांधी को बनाने से बीजेपी को लाभ है, क्योंकि इससे विपक्ष में बिखराव होगा। दूसरे बीजेपी खुद को राष्ट्रवाद की ध्वजवाहक और कांग्रेस को राष्ट्रवाद-विरोधी साबित करने में सफल होगी। राष्ट्रवाद के प्रश्न पर बीजेपी खुद को उत्पीड़ित साबित करती है। 2019 में पुलवामा कांड के बाद ऐसा ही हुआ। राहुल पर ध्यान केंद्रित करने से अडाणी प्रसंग से भी ध्यान हटेगा। देखना यह भी होगा कि कांग्रेस पार्टी अडाणी-हिंडनबर्ग मामले को कितनी दूर तक ले जाएगी?  इससे लगता है कि संसदीय गतिरोध दोनों पक्षों के लिए उपयोगी है। दोनों पार्टियों ने शुक्रवार और शनिवार को अगले सप्ताह की गतिविधियों और रणनीतियों पर विचार किया है। इस ब्रेक के बाद यह देखना रोचक होगा कि गतिरोध आगे बढ़ेगा या मामला सुलझेगा।

मोदी बनाम राहुल

कानून मंत्री किरण रिजिजू का यह बयान ध्यान देने योग्य है किदेश से जुड़ा कोई मसला हम सब के लिए चिंता का विषय है…अगर कोई देश का अपमान करेगा तो हम इसे सहन नहीं कर सकते।’ उधर कांग्रेस के राज्यसभा के सांसद के सी वेणुगोपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गरिमा हनन से संबंधित कार्रवाई करने की मांग की है। वेणुगोपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने संसद में राहुल और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ अपमानजनक और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने परिवार औरनेहरू नाम का जो उल्लेख किया था, उसे पार्टी ने उठाया है। बहरहाल कांग्रेस पार्टी के पास संसद में लड़ने की सीमित शक्ति है, वह इस मामले को सड़क पर ले जाएगी। राजनीतिक दृष्टि से बीजेपी भी चाहेगी कि मामला मोदी बनाम राहुल गांधीबनकर उभरे।  

Sunday, March 12, 2023

विदेश में राहुल का भारतीय-लोकतंत्र पर प्रहार


हाल में ब्रिटेन-यात्रा के दौरान राहुल गांधी के बयानों की ओर देश का ध्यान गया है। वे क्या कहना चाहते हैं और क्यों? सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उनकी बातों से कांग्रेस पार्टी की छवि बेहतर बनाने में मदद मिलेगी? इन बातों का ब्रिटिश समाज से क्या लेना-देना है और भारत का मतदाता क्या उनसे सहमत है? उम्मीद थी कि भारत-जोड़ो यात्रा के बाद वे परिपक्व हो चुके होंगे और अब नए सिरे से अपनी बात रखेंगे। पर उनके पास वही पुराना मोदी-मंत्र है और अपनी बात कहने का विदेशी-मंच। क्या उन्हें भारत में कोई ऐसी जगह नजर नहीं आई, जहाँ से वे अपनी बात कह सकें? वे किसे संबोधित कर रहे हैं, भारतीयों को या विदेशियों को? दस दिन के अपने प्रवास में राहुल गांधी ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के एक बिजनेस स्कूल और ब्रिटिश संसद में एक कार्यक्रम को संबोधित किया, भारतवंशियों से भेंट की, ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय पत्रकारों के एक संगठन की संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और चैथम हाउस में हुई एक बातचीत में भाग लिया। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वक्तव्य में उन्होंने लोकतंत्र, फ्री प्रेस और पेगासस आदि पर अपने विचार रखे। उन्होंने भारत की केंद्र-सरकार पर लोकतंत्र के मूल ढांचे पर हमला करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के लिए जो संस्थागत ढांचा चाहिए जैसे संसद, स्वतंत्र प्रेस और न्यायपालिका… इन सभी पर अंकुश लग रहा है। मेरे खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो किसी भी परिस्थिति में आपराधिक मामले नहीं हैं। जब आप मीडिया और लोकतांत्रिक ढांचे पर इस प्रकार का हमला करते हैं तो विरोधियों के लिए लोगों के साथ संवाद करना बहुत मुश्किल हो जाता है।

प्रश्न और प्रति-प्रश्न

राहुल गांधी के इन वक्तव्यों से कुछ सवाल खड़े हुए हैं। उन्होंने विदेश जाकर भारतीय-व्यवस्था की जो आलोचना की है, उसे क्या सामान्य राजनीतिक-आलोचना माना जाए? देश के प्रमुख विरोधी-दल के नेता से उम्मीद यही की जाती है कि वह व्यवस्था-दोषों पर रोशनी डाले। आलोचना व्यवस्था की है, तो वे अमेरिका और ब्रिटेन से किस प्रकार का हस्तक्षेप चाहते हैं? अपने देश में पराजित-पार्टी अपनी विफलता का ठीकरा सत्ताधारी दल पर क्यों फोड़ना चाहती है? क्या यह सच नहीं कि 2014 के चुनाव के पहले से ही ब्रिटिश अखबार गार्डियन में उन्हीं लोगों के पत्र और लेख छपने लगे थे, जो आज राहुल गांधी के कार्यक्रमों के पीछे हैं? ऐसी ही आलोचना क्या ब्रिटेन के राजनेता भारत आकर अपनी व्यवस्था की कर सकते हैं? बेशक उनकी व्यवस्थाएं हमारी व्यवस्था से बेहतर हैं, पर आलोचना तो उनकी भी होती है। वहाँ भी सत्तापक्ष और विपक्ष के रिश्ते  खराब रहते हैं, पर राजनीतिक-संवाद का तरीका हमारे तरीके से फर्क है। ब्रिटिश या अमेरिकी राजनेता भारत में आकर अपनी व्यवस्था की आलोचना कर भी लें, पर क्या चीन, रूस, तुर्की, सऊदी अरब, ईरान के राजनेता अपने शासन की आलोचना करके वापस अपने देश में सुरक्षित जा सकते हैं, जिनके साथ अब भारत की तुलना की जा रही है? क्या ये बातें औपनिवेशिक ब्रिटिश-धारणा को सही साबित कर रही हैं कि भारत अपने लोकतंत्र का निर्वाह नहीं कर पाएगा?  भारत में फासिज्म है, तो राहुल गांधी इतनी आसानी से अपनी बात कैसे कह पा रहे हैं? यदि उनकी घेराबंदी इतनी जबर्दस्त है, तो वे अपनी भारत-जोड़ो यात्रा को सफलता के साथ किस प्रकार पूरा कर पाए? क्या भारतीय मीडिया में राहुल गांधी और कांग्रेस के समर्थन और नरेंद्र मोदी की आलोचना में लेखों का प्रकाशन संभव नहीं है?

परिपक्व राहुल

इन कार्यक्रमों को आयोजित करने वाले मानते हैं कि इन कार्यक्रमों से केवल भारत की राजनीति से जुड़े प्रश्नों पर बहस खड़ी होगी, बल्कि दोनों देशों के सांस्कृतिक, सामाजिक और कारोबारी रिश्तों को भी बढ़ावा मिलेगा, जिसमें वहाँ रहने वाले भारतवंशी सेतु का काम करेंगे। उनके समर्थक मानते हैं कि राहुल गांधी ने अपनी परिपक्वता के झंडे गाड़ दिए हैं और उनके आलोचक मानते हैं कि उनकी सारी बातें गोल-मोल, अटपटी और अबूझ पहेली जैसी रही है। उनसे जो नीतिगत सवाल पूछे गए, उनके जवाबों को लेकर भी काफी चर्चा है। खासतौर से जब उनसे पूछा गया कि यदि उनकी सरकार आई, तो उनकी विदेश-नीति में नया क्या होगा, तो उन्होंने जो जवाब दिया, वह काफी लोगों को समझ में नहीं आया। ब्रिटेन जाकर वे चीन की तारीफ क्यों कर रहे हैं? भारत को राज्यों का संघ बताकर वे क्या साबित करना चाहते हैं? वे पिछले एक साल में कम से कम तीन बार कह चुके हैं कि भारत राष्ट्र नहीं है, केवल राज्यों का संघ है। संविधान के पहले अनुच्छेद में यह लिखा गया है तो इससे क्या भारत का राष्ट्र-राज्य होना खारिज हो गया? ऐसा है, तो प्रस्तावना में 'राष्ट्र की एकता अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता' का क्या मतलब है? हमारे राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य क्या था? भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस क्या है? क्या राज्यों ने भारत का गठन किया है जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका का गठन हुआ था? 

देश के इन राज्यों और नागरिकों के बीच हजारों साल से संवाद चलता रहा है। हमारा समाज गतिशील है। तीर्थयात्राओं और साधुओं की यात्राओं के मार्फत यह संवाद चलता रहा है। विविधता के बीच यही हमारी एकता का प्रमाण है। राहुल के विरोधी मानते हैं कि उनकी इस यात्रा के पीछे, पश्चिमी-देशों के भीतर सक्रिय भारत-विरोधी लॉबी है, जिसका जिक्र हाल में अमेरिकी रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और अमेरिकी पूँजीपति जॉर्ज सोरोस के बयानों के कारण हुआ था। क्या इसे भारतीय राजनीति में पश्चिमी हस्तक्षेप का हिस्सा माना जाए? क्या इन कार्यक्रमों से राहुल गांधी की साख बढ़ी है?

Saturday, February 11, 2023

भारत जोड़ने के बाद, क्या बीजेपी को तोड़ पाएंगे राहुल?

भारत-जोड़ो यात्रा से हासिल अनुभव और आत्मविश्वास राहुल गांधी के राजनीतिक कार्य-व्यवहार में नज़र आने लगा है। पिछले मंगलवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान लोकसभा में उनका भाषण इस यात्रा को रेखांकित कर रहा था। उन्होंने कहा, हमने हजारों लोगों से बात की और जनता की आवाज़ हमें गहराई से सुनाई पड़ने लगी। यात्रा हमसे बात करने लगी। किसानों ने पीएम-बीमा योजना के तहत पैसा नहीं मिलने की बात कही। आदिवासियों से उनकी जमीन छीन ली गई। उन्होंने अडानी का मुद्दा भी उठाया।  

राहुल गांधी की संवाद-शैली में नयापन था। वे कहना चाह रहे थे कि देश ने जो मुझसे कहा, उन्हें मैं संसद में रख रहा हूँ। ये बातें जनता ने उनसे कहीं या नहीं कहीं, यह अलग विषय है, पर एक कुशल राजनेता के रूप में उन्होंने अपनी यात्रा का इस्तेमाल किया। उनके भाषण से वोटर कितना प्रभावित हुआ, पता नहीं। इसका पता फौरन लगाया भी नहीं जा सकता। फौरी तौर पर कहा जा सकता है कि यात्रा के कारण पार्टी की गतिविधियों में तेजी आई है, कार्यकर्ताओं और पार्टी के स्वरों में उत्साह और आत्मविश्वास दिखाई पड़ने लगा है।

यात्रा का लाभ

राहुल गांधी ने भारत-जोड़ो यात्रा को राजनीतिक-यात्रा के रूप में परिभाषित नहीं किया था। यात्रा राष्ट्रीय-ध्वज के पीछे चली, पार्टी के झंडे तले नहीं। देश में यह पहली राजनीतिक-यात्रा भी नहीं थी। महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से लेकर आंध्र प्रदेश के एनटी रामाराव, राजशेखर रेड्डी, चंद्रशेखर और सुनील दत्त, नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता तक अपने-अपने संदेशों के साथ अलग-अलग समय पर यात्राएं कर चुके हैं। बेशक इनका असर होता है।

घोषित मंतव्य चाहे जो रहा है, अंततः यह राजनीतिक-यात्रा थी। सफल थी या नहीं, यह सवाल भी अब पीछे चला गया है। अब असल सवाल यह है कि क्या इसका राजनीतिक लाभ कांग्रेस को मिलेगा? मिलेगा तो कितना, कब और किस शक्ल में? सत्ता की राजनीति चुनावी सफलता के बगैर निरर्थक है। जब यात्रा शुरु हो रही थी तब ज्यादातर पर्यवेक्षकों का सवाल था कि इससे क्या कांग्रेस का पुनर्जन्म हो जाएगा? क्या पार्टी इस साल होने वाले विधानसभा के चुनावों में और 2024 के लोकसभा चुनाव में सफलता पाने में कामयाब होगी?

Sunday, January 8, 2023

एंटनी की 'नरम हिंदुत्व'अपील पर हिलाल अहमद की टिप्पणी


कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है
, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

एके एंटनी की यह टिप्पणी कि कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को लामबंद करना चाहिए और अल्पसंख्यक ‘इस लड़ाई में काफी नहीं हैं‘ विचारों के गंभीर संकट को रेखांकित करता है...एंटनी की स्पष्ट रूप से ‘हिंदू हाव-भाव’ रखने की सलाह गैर-हिंदू समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिमों के साथ जो कि वाजिब राजनीतिक हितधारक हैं को डील करने को लेकर कांग्रेस की बेचैनी को उजागर करती है. साथ ही, ये टिप्पणियां कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा किए गए दावे को डिगाती हैं कि राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा राजनीति क एक वैकल्पिक विजन पेश करेगी. दिप्रिंट में हिलाल अहमद का पूरा लेख पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें

वास्तविक आशावाद का समय

बजट पेश किए जाने में चार सप्ताह से भी कम समय बचा है। ऐसा खासतौर पर इस​लिए कि अतीत में जताए गए पूर्वानुमान, खासतौर पर सरकार के प्रवक्ताओं के अनुमान हकीकत से बहुत दूर रहे हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आरंभ में ही दो अंकों की वृद्धि के दावे के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। यहां तक कि दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष 2019-20 में भी तत्कालीन मुख्य ​आर्थिक सलाहकार ने 7 फीसदी की वृद्धि का अनुमान जताया था जबकि वर्ष का समापन 4 फीसदी के साथ हुआ। बिजनेस स्टैंडर्ड में टीएन नायनन का साप्ताहिक लेख

जोशीमठ का धँसाव

जोशीमठ नगर में धँसाव 1970 के दशक में भी महसूस किया गया था। तब सरकारी स्तर पर गढ़वाल आयुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में धँसाव के कारणों की जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने 1978 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि जोशीमठ नगर के साथ पूरी नीती और माणा घाटियां हिमोढ़ (मोरेन) पर बसी हुई हैं। ग्लेशियर पिघलने के बाद जो मलबा पीछे रह जाता है, उसे हिमोढ़ कहा जाता है। ऐसे में इन घाटियों में बड़े निर्माण कार्य नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया और इन घाटियों में दर्जनों जल विद्युत परियोजनाओं के साथ ही कई दूसरे निर्माण भी लगातार हो रहे हैं। जोशीमठ से करीब 7 किमी दूर स्थित रैणी गाँव 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर टूटने से तबाह हुआ रैणी गाँव जून 2021 में फिर से आई बाढ़ के कारण पूरी तरह असुरक्षित हो गया था। गाँव के ठीक नीचे जमीन अब भी लगातार खिसक रही है। यहाँ पढ़ें डाउन टु अर्थ में राजू सजवान की रिपोर्ट

 

विरोधी दलों को कितना जोड़ पाए राहुल?


राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण शुरू हो गया है। अब यात्रा का काफी छोटा हिस्सा शेष रह गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश की सीमा को तो वे छूकर ही चले गए हैं। यूपी से ज्यादा समय वे हरियाणा और पंजाब को दे रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के नगाड़े बजने लगे हैं। राहुल गांधी की यह यात्रा प्रकारांतर से लोकसभा-अभियान की शुरुआत है। उधर अमित शाह पूर्वोत्तर में चुनाव-अभियान शुरू कर चुके हैं। यह अभियान त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड को लेकर है, जहाँ अगले महीने चुनाव हैं। इसके बाद नवंबर में मिजोरम में चुनाव होंगे। पूर्वोत्तर में एक जमाने में बीजेपी का नामोनिशान नहीं था, पर अब वह उसका गढ़ बन गया है। अभी दोनों, तीनों तरफ के पत्ते फेंटे जा रहे हैं। राजनीति का पर्दा धीरे-धीरे खुलेगा।

तीन सवाल

कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजनीति के तीन सवाल उभर कर आ रहे हैं। भारत-जोड़ो यात्रा से कांग्रेस ने क्या हासिल किया? दूसरा सवाल है कि क्या विरोधी दल इसबार एक मोर्चा बनाकर बीजेपी का मुकाबला करेंगे? तीसरा सवाल है कि बीजेपी की रणनीति उपरोक्त दोनों सवालों के बरक्स क्या है? राहुल गांधी की यात्रा के उद्देश्य और निहितार्थ भी अब उतने महत्वपूर्ण नहीं रहे, जितना महत्वपूर्ण यह सवाल है कि कांग्रेस की रणनीति अब क्या होने वाली है? यात्रा का दूसरा चरण शुरू करने के पहले राहुल गांधी ने शनिवार 31 दिसंबर को दिल्ली में जो प्रेस कांफ्रेंस की, उससे कुछ संकेत मिलते हैं। इससे पता लग सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस किस रणनीति के साथ उतरने वाली है। इस रणनीति में दूसरे विरोधी दलों के साथ कांग्रेस का समन्वय किस प्रकार से होगा और इस एकता का आधार क्या होगा?

विरोधी एकता

राहुल गांधी ने विरोधी दलों की एकता से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा एक, विपक्ष के तमाम नेता कांग्रेस से वैचारिक तौर पर जुड़े हैं। दो, ये अपने प्रभाव वाले राज्यों में क्षेत्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती जरूर दे सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के लिए वैचारिक चुनौती कांग्रेस ही खड़ी कर सकती है। तीन, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी कांग्रेस की ही है कि विरोधी दल न केवल आरामदेह महसूस करें बल्कि उन्हें उचित सम्मान मिले। इसमें तीसरा बिंदु सबसे महत्वपूर्ण है। राहुल गांधी ने खासतौर से समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के एक बयान के संदर्भ में कहा कि उनकी विचारधारा उत्तर प्रदेश तक सीमित है, जबकि हम राष्ट्रीय विचारधारा के साथ हैं। यह बात गले से उतरती नहीं है। यह माना जा सकता है कि समाजवादी पार्टी की रणनीति उत्तर प्रदेश केंद्रित है, पर वैचारिक आधार पर वह भी राष्ट्रीय होने का दावा कर सकती है। केंद्र में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी, वह इसी विचारधारा से जुड़ी थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यात्रा में शामिल न होने के अखिलेश यादव और मायावती के फैसले को तूल न देते हुए बताया कि वे यात्रा में शामिल हों या न हों, विपक्ष की राजनीति में उनका अहम स्थान है। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के नेताओं को पत्र भी लिखा। वे भले ही यात्रा में शामिल नहीं हुए, पर मान लेते हैं कि राहुल गांधी ने अपने व्यवहार से उन्हें खुश किया होगा।

Saturday, December 31, 2022

राहुल गांधी की दृष्टि

कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। वह लगातार जनसभाओं और मीडिया को भी संबोधित कर रहे हैं। शनिवार 31 दिसंबर को उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय पर मीडिया से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कई पत्रकारों के कई सवालों के जवाब दिए। वे बहुत ही सधे हुए नजर आए और उन्होंने हर सवाल का बहुत सावधानी से जवाब दिया। यह कहना मुश्किल है कि उनसे पूछे गए सवाल पूर्व नियोजित थे या नहीं।

'टी-शर्ट में ठंड क्यों नहीं लगती' जैसे सवालों से राहुल गांधी का एक बार फिर सामना हुआ। मीडिया से उन्होंने करीब 46 मिनट बात की और और आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की 'मीडिया के सामने आने से डरते हैं.। 

क सवाल से राहुल गांधी चौंके और उन्होंने बहुत ही शालीनता और समझदारी से उसका जवाब दिया। दरअसल, राहुल गांधी से पूछा गया था कि अगर वह देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो सबसे पहले तीन काम क्या करेंगे? यहाँ पढ़ें कि राहुल गांधी ने क्या दिए जवाब...

भारत की महानता

भारतीय मतदाताओं को यह विश्वास दिलाया गया है कि दुनिया में उनका देश एक अग्रणी भूमिका निभाएगा। पिछली सरकारों की तुलना में वर्तमान सरकार के लिए यह बात काफी हद तक लागू होती है। राजनीतिक महकमे में कोई भी वैश्विक संरचना में भारत की भूमिका को लेकर कम आश्वस्त नहीं दिखना चाहता है। यह धारणा केवल राजनीतिज्ञों एवं अधिकारियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि निजी क्षेत्र भी यह सोचने लगा है कि दुनिया में भारत का रसूख पहले की तुलना में काफी बढ़ गया है।

क्या दुनिया में भारत की अहमियत वाकई बढ़ गई है और इसके बिना कोई काम नहीं हो सकता है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें तीन संदर्भों पर विचार करना चाहिए। पहला है निवेश के लिहाज से माकूल स्थान, दूसरा वैश्विक कंपनियों के लिए बड़े बाजार और तीसरा भू-आर्थिक एवं भू-राजनीतिक साझेदार के रूम में। पहली नजर में निवेश के लिहाज से एक अहम बाजार के रूप में भारत का प्रदर्शन संतोषजनक लग रहा है। वित्त वर्ष 2021-22 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़कर 85 अरब डॉलर के अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। मगर सवाल है कि क्या यह आंकड़ा काफी है? बिजनेस स्टैंडर्ड हिंदी में पढ़ें मिहिर शर्मा का यह लेख

प्रणय रॉय पर शेखर गुप्ता

मीडिया जगत की बीते साल की सबसे बड़ी खबर यह रही कि प्रणय और राधिका रॉय ने एनडीटीवी का स्वामित्व छोड़ दिया और उसे अडाणी समूह ने हासिल कर लिया रॉय दंपति ने जो विदाई संदेश दिया वह साथ स्पष्ट करता है कि उन्होंने पत्रकारिता किस भावना से की। टीवी समाचार की बेहद बेचैन दुनिया में उनके जैसा स्थिरचित्त होना दुर्लभ है, यह लिखा है शेखर गुप्ता ने अपने साप्ताहिक कॉलम में पढ़ें यहाँ

Saturday, August 20, 2022

कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर असमंजस जारी


घोषित कार्यक्रम के अनुसार कांग्रेस के अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच पूरी की जानी है। चुनाव की तारीख कार्यसमिति तय करेगी। अभी तक कार्यसमिति की बैठक का कार्यक्रम तय नहीं है। इस चुनाव में सभी राज्यों के 9,000 से अधिक प्रतिनिधि मतदाता होंगे। मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता में पार्टी की चुनाव-समिति ने कहा है कि हम समय पर चुनाव के लिए तैयार हैं। फिर भी लगता नहीं कि चुनाव हो पाएंगे। राज्यों के अध्यक्षों का चुनाव भी 20 अगस्त तक होना था, लेकिन यह प्रक्रिया किसी भी राज्य में पूरी नहीं हुई है।

चुनाव टलते जाने की सबसे बड़ी वजह यह है कि राहुल गांधी फिर से इस पद पर वापसी के लिए तैयार नहीं हैं और पार्टी किसी दूसरे व्यक्ति के नाम को लेकर मन बना नहीं पाई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी ही इस पद पर आएं या फिर परिवार का कोई दूसरा सदस्य इस पद पर आए। पर राहुल और सोनिया गांधी कई बार कह चुके हैं कि गांधी परिवार से अब कोई अध्यक्ष नहीं बनेगा।

अब सुना जा रहा है कि किसी ऐसे नेता को पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही है, जो परिवार का विश्वस्त हो। शायद कुछ नेता खुद को दावेदार मानते हैं, पर वे खुलकर नहीं कहते। चुनाव की खुली घोषणा हो, तो नाम सामने आ भी सकते हैं। पर परिवार किसी एक नाम का इशारा करेगा, तो उसपर सहमति बन जाएगी। इस बीच जो नाम निकल कर आ रहे हैं, उनमें अशोक गहलोत, मल्लिकार्जुन खड़गे, मुकुल वासनिक, सुशील कुमार शिंदे, मीरा कुमार, कुमारी शैलजा और केसी वेणुगोपाल शामिल हैं। पर ज्यादातर कयास हैं।  

Saturday, October 16, 2021

राहुल गांधी फिर से पार्टी अध्यक्ष बनने पर विचार करने को तैयार


कांग्रेस कार्यसमिति की आज 16 अक्तूबर को हुई बैठक के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी सम्भवतः फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने को राजी हो जाएंगे। संगठन चुनाव को लेकर हुई कार्यसमिति की बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राहुल से पार्टी अध्यक्ष बनने का आग्रह किया जिस पर उन्होंने कहा कि मैं इस पर विचार करूँगा। कार्यसमिति की आज की बैठक में पार्टी ने किसान आंदोलन, अल्पसंख्यकों, दलितों और लोकतांत्रिक गतिविधियों के दमन को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पास किया।

राहुल गांधी का कांग्रेस पार्टी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है, पर इसके लिए अगले साल चुनाव होंगे। कार्यसमिति की बैठक में अशोक गहलोत के इस प्रस्ताव पर तकरीबन सभी नेताओं ने हामी भर दी है। ऐसे में राहुल गांधी को अगले साल राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना तय हो गया है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों की इस मांग पर राहुल गांधी ने विचार करने की बात कही है। इस प्रस्ताव में हामी भरने वाले जी-23 के वे नेता भी हैं, जो कल तक पार्टी के तमाम फैसलों पर न सिर्फ सवालिया निशान लगा रहे थे बल्कि राहुल गांधी पर भी सवाल उठाते थे।

कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस संगठन के चुनाव यानी अध्यक्ष के चुनाव की तारीखों पर मुहर लगी। तय कार्यक्रम के मुताबिक सितम्बर 2022 तक कांग्रेस को अगला अध्यक्ष मिल जाएगा। इसके पहले चर्चा थी कि पार्टी ने पदाधिकारियों के चुनाव के लिए इस समय को उपयुक्त नहीं माना है। बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा, सीडब्ल्यूसी के हर सदस्य ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी में उनका गहरा विश्वास है। सोनिया गांधी बीमार होकर भी किसी स्वस्थ व्यक्ति से ज्यादा 24 घंटे काम करती हैं। सीडब्ल्यूसी के सदस्यों ने अनुरोध किया कि अगले चुनाव तक वह नेतृत्व करें। रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कई नेताओं ने यह बात उठाई कि राहुल गांधी आगे बढ़ कर पार्टी का नेतृत्व संभालें।

Friday, July 16, 2021

जो निडर हैं, वे आएं हमारे साथ: राहुल गांधी का पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद


कांग्रेस पार्टी में बड़े बदलावों को लेकर चल रही अटकलों के बीच राहुल गांधी कहा है कि हमें निडर लोगों की जरूरत है, डरपोकों की नहीं। पार्टी को लेकर कुछ खबरें और हैं। पंजाब के नेता नवजोत सिंह सिद्धू की आज पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात हुई है। इस दौरान राहुल गांधी और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत भी मौजूद थे। इस मुलाकात में क्या बात हुई यह अभी साफ नहीं है।

माना जा रहा है कि उन्हें पंजाब में पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा। उनके साथ एक हिंदू और एक दलित वर्किंग प्रेसीडेंट की भी बात हो रही है। इस खबर के साथ पंजाब की कलह सुलझने के बजाय उलझती नजर आ रही है। पंजाब से मिल रही खबरों के मुताबिक कैप्टेन अमरिंदर सिंह किसी भी कीमत पर सिद्धू को अध्यक्ष के पद पर नहीं देखना चाहते हैं। सूत्र बता रहे हैं कि कैप्टन अड़ गए हैं। कैप्टन ने कहा है कि चुनाव उनकी अगुवाई में लड़ा जाएगा और इसबार भी हम पिछली बार से कम सीटें नहीं जीतेंगे। दूसरी तरफ सिद्धू-खेमा कह रहा है कि वे चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख या कार्यकारी समिति का सदस्य बनने को तैयार नहीं।  

अटकलें ही अटकलें

इसके पहले राहुल, प्रियंका और केसी वेणुगोपाल की उपस्थिति में चुनाव-योजना प्रबंधक प्रशांत की सोनिया गांधी के साथ हुई मुलाकात के बाद से पार्टी के कदमों को लेकर कई तरह की अटकलें हैं। एक दिन पहले एक खबर और हवा में उड़ी है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को पार्टी का कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा रहा है। साथ ही सम्भवतः पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी स्थायी अध्यक्ष बन जाएंगी। इस व्यवस्था के राजनीतिक निहितार्थ क्या होंगे, इसे लेकर अटकलें भी शुरू हो गईं है।

मई 2019 में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से पार्टी के भीतर और बाहर संशय की स्थिति है। पार्टी कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की, पर बाहर इसकी खबर आने नहीं दी गई। फिर यह खबर तब पुष्ट हो गई, जब राहुल गांधी का एक लम्बा पत्र सामने आया। पहली नजर में किसी के समझ में नहीं आया कि राहुल गांधी की योजना क्या है। वे और अधिकार सम्पन्न होना चाहते हैं? या आंतरिक लोकतंत्र की किसी व्यवस्था की स्थापना करना चाहते हैं? सवाल यह भी था क्या पार्टी गांधी-नेहरू परिवार के बगैर काम चला सकती है? बहरहाल राहुल गांधी ने युवा कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों से मुलाकात की और उनसे कहा कि मैं अपने इस्तीफे पर कायम हूँ।

उसके बाद से पार्टी की अंतरिम अध्यक्षता सोनिया गांधी के पास है। पिछले साल अगस्त में पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठी उजागर होने के बाद से संशय और बढ़ा है। असंतुष्टों की माँग पार्टी के भीतर के लोकतंत्र से जुड़ी है। राहुल गांधी के इस्तीफे को दो साल से ज्यादा समय हो गया है, नए अध्यक्ष ने कमान संभाली नहीं है। इस दौरान ज्योतिरादित्य और जितिन प्रसाद ने पार्टी छोड़ी है। सचिन पायलट एक पैर बाहर लटका कर बैठे हैं। यह बात लगातार हवा में है कि कुछ और नेता पार्टी छोड़ेंगे।

डरने वाले जाएं

इस पृष्ठभूमि में राहुल गांधी ने कहा है कि जो डरते हैं, वे पार्टी छोड़ दें। इतना ही नहीं उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जाने वालों को आरएसएस का आदमी भी करार दिया है। शुक्रवार 16 जुलाई को पार्टी की सोशल मीडिया यूनिट की वर्चुअल बैठक में उन्होंने कहा कि कांग्रेस को निडर लोगों की जरूरत है, कमजोर लोगों की नहीं। जो संघ की विचारधारा में विश्वास रखते हैं, ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।

Saturday, December 19, 2020

क्या राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष बनने को तैयार हैं?


कांग्रेस पार्टी में कुछ वरिष्ठ नेताओं के असंतोष को लेकर करीब चार महीने की चुप्पी के बाद अंततः आज 19 दिसंबर को 10, जनपथ पर सोनिया गांधी की अध्यक्षता में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। बैठक पाँच घंटे तक चली। इसमें अशोक गहलोत, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चह्वाण, शशि थरूर, मनीष तिवारी, अम्बिका सोनी, पी चिदंबरम समेत कुछ नेता शामिल हुए। इनके अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी इस मौके पर उपस्थित थे। इस बैठक से पार्टी के भीतर का मौन तो टूटा है, पर किसी न किसी स्तर पर असंतोष बाकी है। 

एनडीटीवी की वैबसाइट के अनुसार बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि मैं उसी तरह काम करने को तैयार हूँ जैसा आप लोग कहेंगे। पवन बंसल के हवाले से यह खबर देते हुए एनडीटीवी ने यह भी लिखा है कि जब पवन बंसल से पूछा गया कि क्या इससे यह माना जाए कि राहुल फिर से अध्यक्ष बनने को तैयार हैं, तब बंसल ने कहा कि राहुल को लेकर कोई मसला नहीं है, पर अपने शब्द मेरे मुँह से मत कहलवाइए। पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। यों भी असंतुष्ट इस बात को कह रहे हैं कि पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर चुनाव होना चाहिए।

अखबार हिंदू की वैबसाइट के अनुसार पार्टी ने आंतरिक विषयों पर चिंतन-शिविर आयोजित करने का निश्चय किया है। यह जानकारी हिंदू ने पवन बंसल के हवाले से दी है। उधर समाचार एजेंसी एएनआई ने पृथ्वीराज चह्वाण के हवाले से खबर दी है कि बैठक सकारात्मक माहौल में हुई, जिसमें वर्तमान स्थितियों में पार्टी के हालचाल और उसे मजबूत बनाने के तरीकों पर विचार किया गया। एनडीटीवी की खबर के अनुसार राहुल गांधी ने इस बैठक में भी कुछ वरिष्ठ नेताओं को संबोधित करते हुए अपनी बात कहने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने कमलनाथ को संबोधित करते हुए कहा कि जब आप मुख्यमंत्री थे, तब राज्य को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चला रहा था।

Sunday, September 1, 2019

राहुल का कश्मीर कनफ्यूज़न


कांग्रेस और बीजेपी के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है। ज्यादातर सरकारी फैसलों के दूसरे पहलू पर रोशनी डालने की जिम्मेदारी कांग्रेस की है, क्योंकि वह सबसे बड़ा विरोधी दल है। पार्टी की जिम्मेदारी है कि वह अपने वृहत्तर दृष्टिकोण या नैरेटिव को राष्ट्रीय हित से जोड़े। उसे यह विवेचन करना होगा कि पिछले छह साल में उससे क्या गलतियाँ हुईं, जिनके कारण वह पिछड़ गई। केवल इतना कहने से काम नहीं चलेगा कि जनता की भावनाओं को भड़काकर बीजेपी उन्मादी माहौल तैयार कर रही है।
कांग्रेसी नैरेटिव के अंतर्विरोध कश्मीर में साफ नजर आते हैं। इस महीने का घटनाक्रम गवाही दे रहा है। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का आदेश पास होने के 23 दिन बाद राहुल गांधी ने कश्मीर के सवाल पर महत्वपूर्ण ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, सरकार के साथ हमारे कई मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन साफ है कि कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है। पाकिस्तान वहां हिंसा फैलाने के लिए आतंकियों का समर्थन कर रहा है। इसमें पाकिस्तान समेत किसी भी देश के दखल की जरूरत नहीं है।
राहुल गांधी का यह बयान स्वतः नहीं है, बल्कि पेशबंदी में है। यही इसका दोष है। इसके पीछे संयुक्त राष्ट्र को लिखे गए पाकिस्तानी ख़त का मजमून है, जिसमें पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि कश्मीर में हालात सामान्य होने के भारत के दावे झूठे हैं। इन दावों के समर्थन में राहुल गांधी के एक बयान का उल्लेख किया गया है, जिसमें राहुल ने माना कि 'कश्मीर में लोग मर रहे हैं' और वहां हालात सामान्य नहीं हैं। राहुल गांधी को अपने बयानों को फिर से पढ़ना चाहिए। क्या वे देश की जनता की मनोभावना का प्रतिनिधित्व करते हैं?