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Saturday, August 26, 2023

घातक है संसदीय-विमर्श की गुणवत्ता का ह्रास

संसद के मॉनसून-सत्र के समापन के आखिरी दिन गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023 पेश करके देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में बुनियादी बदलाव लाने का दावा किया है। गृहमंत्री ने इस सिलसिले में तीन बिल पेश किए, जिनसे भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में बड़े बदलाव होंगे। इन कानूनों का श्रेय अंग्रेजी राज को, खासतौर से टॉमस बैबिंगटन मैकॉले को दिया जाता है। मामूली हेरफेर के साथ ये कानून आजतक चले आ रहे हैं। सरकार का दावा है कि ये विधेयक औपनिवेशिक कानूनों की जगह पर राष्ट्रीय-दृष्टिकोण की स्थापना करेंगे। हालांकि इन्हें तैयार करने के पहले विमर्श की लंबी प्रक्रिया चली है, फिर भी इनके न्यायिक, सामाजिक और सामाजिक प्रभावों पर व्यापक विचार-विमर्श की ज़रूरत होगी। इन्हें पेश करने के बाद संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। संसदीय समिति में इसके विभिन्न पहलुओं पर बारीकी से विचार होगा। उसके बाद इन्हें विधि आयोग के पास विचारार्थ भी भेजा जाएगा।

यह विमर्श घूम-फिरकर संसद में आएगा, इसलिए राजनीतिक दलों के बीच सबसे पहले इस विषय पर ईमानदार चर्चा की ज़रूरत है। पंचायत राज, सूचना के अधिकार, शिक्षा के अधिकार, खाद्यान्न सुरक्षा से जुड़े कानूनों पर इस तरह की बहस हुई भी थी। ऐसी बहसों को यथासंभव राजनीति से बचाने की ज़रूरत होती है। किसी खास सामुदायिक वर्ग पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल करते समय उसकी ज़रूरत भी होगी। सरकार को भी आलोचना से भागने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कानूनों में रह गई छोटी सी त्रुटि को दूर करने के लिए फिर से एक लंबी प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है। पर सवाल दूसरे हैं। इन कानूनों पर विचार कब और कैसे होगा?

Sunday, August 6, 2023

मॉनसून-सत्र और नई रणनीतियाँ


दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश के स्थान पर लाए गए विधेयक को लोकसभा ने पास कर दिया है। संभवतः सरकार अब इसे सोमवार 7 अगस्त को राज्यसभा में पेश करेगी। लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के बहुमत को देखते हुए इसके पास होने में संदेह नहीं था। राज्यसभा में भी उसके पास होने के आसार हैं, पर देखना होगा कि वहाँ मतदान के समय गैर-भाजपा पार्टियों का रुख क्या रहेगा। यह रुख भविष्य की राजनीति की ओर इशारा करेगा। इस हफ्ते अविश्वास प्रस्ताव पर भी चर्चा होगी। 10 अगस्त को प्रधानमंत्री जब इसपर हुई बहस का उत्तर देंगे, तब देश की निगाहें बहुत सी बातों पर होंगी। पिछले साढ़े चार या साढ़े नौ साल के प्रसंग उठेंगे। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। अब उनकी संसद सदस्यता बहाल हो जानी चाहिए। कब होगी और कैसे होगी, देखना अब यह है। क्या इसी सत्र में उनकी वापसी संभव है? क्या वे अविश्वास प्रस्ताव पर बोलेंगे? ऐसे कुछ सवाल हैं। सत्र में अब यही हफ्ता शेष है, पर जो भी होगा रोचक और सनसनीखेज होगा। बीजेपी ने लोकसभा सदस्यों को ह्विप जारी कर दिया है, जिसमें उनसे 7 से 11 अगस्‍त के बीच सदन में उपस्थित रहने और सरकार का समर्थन करने के लिए कहा गया है।

राज्यसभा में विधेयक

करीब चार घंटे की बहस के बाद दिल्ली सेवा विधेयक लोकसभा से पास हो गया, पर संशय अब सिर्फ राज्यसभा की परिस्थितियों को लेकर है। सदन में एनडीए और विरोधी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के पास लगभग बराबर सीटें हैं। ऐसे में गुट-निरपेक्ष पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस ने अपना रुख साफ कर दिया है। दोनों ने गुरुवार को लोकसभा में सरकार का साथ दिया। दोनों के राज्यसभा में नौ-नौ सदस्य हैं। दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी, जेडीएस और टीडीपी ने अपना रुख साफ नहीं किया है। इन तीनों के राज्यसभा में एक-एक सांसद हैं। ये किस तरफ वोटिंग करेंगे इसपर सबकी नजरें हैं। तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस ने स्पष्ट किया है कि वह बिल के विरोध में है। उसके राज्यसभा में सात सांसद हैं। एनडीए के राज्यसभा में 100 सदस्य हैं। बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन से उसे 118 सदस्यों का साथ मिल गया है। माना जा रहा है कि नामित 5 सदस्य भी सरकार का साथ देंगे और तीन निर्दलीय सांसद भी हैं। गठबंधन 'इंडिया' के साथ राज्यसभा में 101 सदस्य हैं। बीआरएस के सात सांसदों के समर्थन से उसके पास 108 सदस्यों का बल होगा। तराजू का पलड़ा एनडीए की तरफ कुछ झुका हुआ लगता है, पर राजनीति का क्या भरोसा?

गतिरोध जारी

दोनों सदनों में मणिपुर हिंसा मामले पर गतिरोध इस हफ्ते भी जारी रहा। 12 दिन हो चुके हैं और सत्र के पाँच दिन बचे हैं। विपक्ष लगातार मणिपुर हिंसा मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग कर रहा है। विरोधी दलों की रणनीति है कि बात चाहे दिल्ली के विधेयक पर हो या अविश्वास प्रस्ताव पर, वे मणिपुर के मसले पर सरकार को घेरेंगे। वे इस बात को लेकर नाराज़ है कि सरकार ने राज्यसभा में मणिपुर पर 11 अगस्त यानी सत्र के आखिरी दिन चर्चा कराने की योजना बनाई है। विरोधी दल चाहते हैं कि सोमवार को ही चर्चा हो। शुक्रवार को उन्होंने राज्यसभा के नेता सदन पीयूष गोयल और संसदीय-कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात की, ताकि गतिरोध खत्म हो। सरकार भी ऐसा संदेश देना नहीं चाहती कि मणिपुर पर वह कुछ छिपाने की मंशा रखती है या बहस से भाग रही है। विरोधी खेमे में भी लोग मानते हैं कि ऐसा संदेश न जाए कि नियमों की आड़ में विपक्ष बहस से भाग रहा है। राज्यसभा में आप के संजय सिंह और लोकसभा में रिंकू सिंह के निलंबन से विरोधी सदस्यों के व्यवहार में बदलाव आया है। सोमवार को पता लगेगा कि वे आसन के पास आकर विरोध प्रदर्शन करेंगे या नहीं। काफी सदस्य वैल में जाने से हिचक रहे हैं और अपनी-अपनी सीट से ही खड़े होकर विरोध व्यक्त कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राज्यसभा में कुछ और सदस्य निलंबित हो गए तो सरकार को वोटिंग के दौरान आसानी हो जाएगी।

Monday, July 31, 2023

गतिरोध की असंसदीय-परंपरा

जैसा कि अंदेशा था, संसद के मॉनसून सत्र का पहला हफ्ता शोरगुल और हंगामे की भेंट रहा। इस हंगामे या शोरगुल को क्या मानें, गैर-संसदीय या संसदीय? लंबे अरसे से संसद का हंगामा संसदीय-परंपराओं में शामिल हो गया है और उसे ही संसदीय-कर्म मान लिया गया है। गतिरोध को भी सकारात्मक माना जा सकता है, बशर्ते हालात उसके लिए उपयुक्त हों और जनता उसकी स्वीकृति देती हो। अवरोध लगाना भी राजनीतिक कर्म है, पर उसे सैद्धांतिक-आधार प्रदान करने की जरूरत है। यह कौन सी बात हुई कि सदन एक महत्वपूर्ण विधेयक पर विचार कर रहा है और बहुत से सदस्य हंगामा कर रहे हैं?  किसी मंत्री का महत्वपूर्ण विषय पर वक्तव्य हो रहा है और कुछ सदस्य शोर मचा रहे हैं।

बेशक विरोध व्यक्त करना जरूरी है, पर उसके तौर-तरीकों को परिभाषित करने की जरूरत है। जबसे संसदीय कार्यवाही का टीवी प्रसारण शुरू हुआ है, शोर बढ़ा है। शायद ही कोई इस बात पर ध्यान देता हो कि इस दौरान कौन से विधेयक किस तरह पास हुए, उनपर चर्चा में क्या बातें सामने आईं और सरकार ने उनका क्या जवाब दिया वगैरह। एक ज़माने में अखबारों में संसदीय प्रश्नोत्तर पर लंबे आइटम प्रकाशित हुआ करते थे। अब हंगामे का सबसे पहला शिकार प्रश्नोत्तर होते हैं। आने वाले हफ्तों की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही रहने की संभावना है।

Sunday, July 30, 2023

संसद में शोर, यानी चुनाव के नगाड़े


जैसा कि अंदेशा था, संसद के मॉनसून सत्र का पहला हफ्ता शोरगुल और हंगामे की भेंट रहा। इस हंगामे या शोरगुल को क्या मानें, गैर-संसदीय या संसदीय? लंबे अरसे से संसद का हंगामा संसदीय-परंपराओं में शामिल हो गया है और उसे ही संसदीय-कर्म मान लिया गया है। शायद ही कोई इस बात पर ध्यान देता हो कि इस दौरान कौन से विधेयक किस तरह पास हुए, उनपर चर्चा में क्या बातें सामने आईं और सरकार ने उनका क्या जवाब दिया वगैरह। एक ज़माने में अखबारों में संसदीय प्रश्नोत्तर पर लंबे आइटम प्रकाशित हुआ करते थे। अब हंगामे का सबसे पहला शिकार प्रश्नोत्तर होते हैं। आने वाले हफ्तों की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही रहने की संभावना है। पीआरएस की वैबसाइट के अनुसार इस सत्र में  अभी तक लोकसभा की उत्पादकता 15 प्रतिशत और राज्यसभा की 33 प्रतिशत रही। शुक्रवार को दोनों सदनों में हंगामा रहा और उसी माहौल में लोकसभा से तीन विधेयकों को भी पारित करवा लिया गया। इस हफ्ते कुल आठ विधेयक पास हुए हैं। गुरुवार को जन विश्वास बिल पास हुआ, जिससे कारोबारियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इससे कई कानूनों में बदलाव होगा और छोटी गड़बड़ी के मामले में सजा को कम कर दिया जाएगा। पर अब सारा ध्यान अविश्वास-प्रस्ताव पर केंद्रित होगा, जिसे इस हफ्ते कांग्रेस की ओर से रखा गया है। कहना मुश्किल है कि यह चर्चा विरोधी दलों के पक्ष में जाएगी या उनके पक्ष को कमज़ोर करेगी।

काले-काले कपड़े

गुरुवार और शुक्रवार को विरोधी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस (इंडिया) से जुड़े सांसद मणिपुर मुद्दे पर सरकार के विरोध में काले कपड़े पहनकर संसद पहुंचे थे। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि काले कपड़े पहनने के पीछे विचार ये है कि देश में अंधेरा है तो हमारे कपड़ों में भी अंधेरा होना चाहिए। राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि ये काले कपड़े पहनने वाले लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि देश की बढ़ती हुई ताकत आज क्या है? इनका वर्तमान, भूत और भविष्य काला है, लेकिन हमें उम्मीद है कि उनकी जिंदगी में भी रोशनी आएगी। इस शोरगुल के बीच आम आदमी पार्टी के संजय सिंह की सदस्यता भी इस हफ्ते निलंबित कर दी गई। उन्हें पिछले सोमवार को हंगामा करने और आसन के निर्देशों का उल्लंघन करने के लिए वर्तमान मानसून सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया था। निलंबन के बाद से संजय सिंह संसद परिसर में लगातार धरने पर बैठ गए। नेता विरोधी दल मल्लिकार्जुन खरगे भी कुछ देर धरना स्थल पर बैठे और उनसे रात के समय धरना नहीं देने की अपील की। अब वे केवल दिन में ही धरने पर बैठ रहे हैं।

अविश्वास प्रस्ताव

प्रकटतः हंगामे के पीछे मुद्दा मणिपुर में पिछले तीन महीने से जारी जातीय हिंसा है, लेकिन असली वजह सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच का टकराव है, जिसमें संसद के भीतर संजीदगी के साथ कही गई बातों का अब कोई मतलब रह नहीं गया है। विपक्ष ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाकर इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। ऐसा ही सोलहवीं लोकसभा के मॉनसून-सत्र में हुआ था। उस प्रस्ताव के समर्थन में 126 वोट पड़े थे और उसके खिलाफ 325 सांसदों ने मत दिया था। वर्तमान सदन में सत्ताधारी पक्ष के पास 331 और इंडिया नाम के गठबंधन में शामिल दलों के पास 144 सांसद है। बीआरएस के नौ सांसद भी सरकार के खिलाफ वोट करेंगे, क्योंकि बीआरएस ने अलग से नोटिस दिया है। विपक्ष चाहता है कि इस पर तत्काल चर्चा हो, उसके बाद ही सदन में कोई भी विधायी कार्य हो। जब तक अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक सरकार को नीतिगत मामलों से जुड़ा कोई भी प्रस्ताव या विधेयक सदन में नहीं लाना चाहिए। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने चुनौती दी कि विपक्ष के पास संख्या बल है तो उसे विधेयकों को पारित होने से रोककर दिखाना चाहिए।

Sunday, March 19, 2023

कब तक चलेगा संसदीय गतिरोध?


संसद के दोनों सदनों में पूरे सप्ताह गतिरोध जारी रहा। जिस तरह के हालात हैं, उन्हें देखते हुए लगता नहीं कि सोमवार को भी स्थिति में सुधार होगा। कांग्रेस के नेतृत्व में विरोधी दल अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद में जेपीसी की मांग पर अडिग हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी के बयानों को बीजेपी राष्ट्रीय-अपमान का विषय और विदेशी जमीन से भारतीय संप्रभुता पर हमला बता रही है। वह चाहती है कि लंदन में कही गई अपनी बातों पर राहुल गांधी माफी माँगें। लगता यह भी है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस गतिरोध को जारी रखना चाहते हैं। 

इस गतिरोध के ज्यादातर प्रसंग 2024 के चुनाव में दोनों तरफ के तीरों का काम करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि विपक्ष वार्ता के लिए आगे आए तो गतिरोध को दूर किया जा सकता है। दोनों पक्ष लोकसभा अध्यक्ष के साथ बैठें। उन्हें दो कदम आगे आना चाहिए और हम उससे भी दो कदम आगे बढ़ाएंगे, तब संसद चलेगी। उन्होंने इसके बाद कहा, आप केवल संवाददाता सम्मेलन कीजिए और कुछ न कीजिए, ऐसा नहीं चलता।

दोनों तरफ से हंगामा

हंगामा दोनों तरफ से है। ऐसा कम होता है, जब सत्तापक्ष गतिरोध पैदा करे। खबर यह भी है कि बीजेपी लंदन की टिप्पणी के लिए राहुल गांधी को सदन से निलंबित या निष्कासित करने पर भी विचार कर रही है। यह गंभीर बात है, पर ऐसा क्यों सोचा जा रहा है? इससे तो राहुल गांधी का राजनीतिक कद बढ़ेगा? एक धारणा है कि विरोधी दलों का मुख्य चेहरा राहुल गांधी को बनाने से बीजेपी को लाभ है, क्योंकि इससे विपक्ष में बिखराव होगा। दूसरे बीजेपी खुद को राष्ट्रवाद की ध्वजवाहक और कांग्रेस को राष्ट्रवाद-विरोधी साबित करने में सफल होगी। राष्ट्रवाद के प्रश्न पर बीजेपी खुद को उत्पीड़ित साबित करती है। 2019 में पुलवामा कांड के बाद ऐसा ही हुआ। राहुल पर ध्यान केंद्रित करने से अडाणी प्रसंग से भी ध्यान हटेगा। देखना यह भी होगा कि कांग्रेस पार्टी अडाणी-हिंडनबर्ग मामले को कितनी दूर तक ले जाएगी?  इससे लगता है कि संसदीय गतिरोध दोनों पक्षों के लिए उपयोगी है। दोनों पार्टियों ने शुक्रवार और शनिवार को अगले सप्ताह की गतिविधियों और रणनीतियों पर विचार किया है। इस ब्रेक के बाद यह देखना रोचक होगा कि गतिरोध आगे बढ़ेगा या मामला सुलझेगा।

मोदी बनाम राहुल

कानून मंत्री किरण रिजिजू का यह बयान ध्यान देने योग्य है किदेश से जुड़ा कोई मसला हम सब के लिए चिंता का विषय है…अगर कोई देश का अपमान करेगा तो हम इसे सहन नहीं कर सकते।’ उधर कांग्रेस के राज्यसभा के सांसद के सी वेणुगोपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गरिमा हनन से संबंधित कार्रवाई करने की मांग की है। वेणुगोपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने संसद में राहुल और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ अपमानजनक और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने परिवार औरनेहरू नाम का जो उल्लेख किया था, उसे पार्टी ने उठाया है। बहरहाल कांग्रेस पार्टी के पास संसद में लड़ने की सीमित शक्ति है, वह इस मामले को सड़क पर ले जाएगी। राजनीतिक दृष्टि से बीजेपी भी चाहेगी कि मामला मोदी बनाम राहुल गांधीबनकर उभरे।  

Friday, July 30, 2021

संसद में शोर और विरोधी-एकता के जुड़ते तार


संसद में पेगासस-विवाद के सहारे विरोधी दलों की एकता के तार जुड़ तो रहे हैं, पर साथ ही उसके अंतर्विरोध भी सामने आ रहे हैं। इसे संसद के भीतर और बाहर की गतिविधियों में देखा जा सकता है। पेगासस मामले को लेकर संसद के दोनों सदनों में विरोधी दलों ने कार्य-स्थगन प्रस्ताव के नोटिस दिए हैं। राज्यसभा के सभापति ने इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया है। लोकसभा में राहुल गांधी ने 14 विरोधी दलों की ओर से जो नोटिस दिया है, अभी उसपर अध्यक्ष के फैसले की सूचना नहीं है।

अभी तक सरकार इस विषय पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है। सरकार का कहना है कि विपक्ष ठोस सबूत पेश करे। अफवाहों की जांच कैसे होगी? सम्भव है कि वह कार्य-स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार हो जाए, पर उसकी दिलचस्पी विरोधी-एकता के छिद्रों और उनकी गैर-जिम्मेदारी को उजागर करने में ज्यादा होगी। क्या वास्तव में यह इतना बड़ा मामला है, जितना बड़ा कांग्रेस पार्टी मानकर चल रही है? क्या इससे आने वाले समय के चुनावों पर असर डाला जा सकेगा? संसद में विरोधी-दलों की शोरगुल और हंगामे की नीति भी समझ में नहीं आती है। खासतौर से राज्यसभा में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के हाथ से कागज लेकर फाड़ना।

पिछले 11 दिन में लोकसभा में केवल 11 फीसदी काम हुआ है और राज्यसभा में करीब 21 फीसदी। सरकार ने लोकसभा में अपने दो विधेयक इस दौरान पास करा लिए, जिनपर चर्चा नहीं हुई। लगता है कि यह शोरगुल चलता रहेगा। यानी सरकार अपने विधेयक पास कराती रहेगी और महत्वपूर्ण प्रश्नों पर चर्चा नहीं होगी, केवल नारे लगेंगे और तख्तियाँ दिखाई जाएंगी। इस बीच सम्भव है कि लोकसभा में कुछ सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई हो। राज्यसभा में ऐसा हो चुका है। क्या विरोधी दल यही चाहते हैं?

पेगासस मामले पर विरोधी दलों की रणनीति बिखरी हुई है। एक पक्ष सदन के अंदर बहस चाहता है, दूसरा चाहता है कि संयुक्त संसदीय समिति जांच करे, और तीसरा सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच चाहता है। संसद के बाहर विरोधी एकता कायम करने के प्रयास दो या तीन छोरों पर हो रहे हैं। एक प्रयास हाल में शरद पवार ने शुरू किया है, दूसरे की पहल ममता बनर्जी ने की है। उनका दिल्ली-दौरा इस लिहाज से महत्वपूर्ण है।

बुधवार को राहुल गांधी ने संसद में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाकर पहल की कोशिश की। इस बैठक में कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाग लिया, पर तृणमूल कांग्रेस के नेता शामिल नहीं हुए। विरोधी सांसद संसद से विजय चौक तक पैदल गए और फिर मीडिया को संबोधित किया।

इस मार्च का नेतृत्व प्रत्यक्षतः राहुल गांधी ने किया। उनके साथ संजय राउत, सुप्रिया सुले, रामगोपाल यादव और द्रमुक तथा राजद के प्रतिनिधि थे। कांग्रेस के साथ चलने वाले इस दस्ते में कोई नया सदस्य नहीं है। बहरहाल जब राहुल पैदल मार्च कर रहे थे, लगभग उसी समय, ममता बनर्जी ने अपने सांसदों की बैठक बुलाई थी। उनकी पार्टी के सांसद कल्याण बनर्जी ने बाद में कहा कि मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व सिर्फ ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। उन्होंने कहा, मोदी का कोई विकल्प है तो वह ममता बनर्जी हैं, क्योंकि ‘वह लीडर नंबर वन’ हैं। ममता बनर्जी की इस रणनीति में विसंगतियाँ हैं। पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी ने पिछले चुनाव के दौरान बांग्ला उप-राष्ट्रवाद का जमकर इस्तेमाल किया। उनके कार्यकर्ताओं ने हिंदी भाषा और हिंदी-क्षेत्र को लेकर जो बातें कही थीं, वे उन्हें राष्ट्रीय नेता बनने से रोकेंगी।

बहरहाल ममता बनर्जी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मुलाकात भी की। उन्होंने मुलाकात करने के बाद पत्रकारों से कहा, सभी विपक्षी दलों को हाथ मिलाना होगा और मिलकर काम करना होगा। ममता बनर्जी की योजना में कांग्रेस समेत वे सभी पार्टियाँ शामिल हैं, जो किसी न किसी रूप में बीजेपी-विरोधी हैं। इसके पहले सोनिया गांधी कह चुकी हैं कि नेतृत्व का सवाल एकता के आड़े नहीं आएगा। फिर भी सवाल है कि कांग्रेस इस एकता के केंद्र में होगी या परिधि में?

Sunday, February 14, 2021

अमर्यादित राजनीतिक कबड्डी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में राज्यसभा में एक नए शब्द का ज़िक्र करते हुए कहा, पिछले कुछ समय से देश में एक नई ‘आंदोलनजीवी’ बिरादरी सामने आई है। यह पूरी टोली आंदोलन के बिना जी नहीं सकती और ये लोग आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूंढते रहते हैं। प्रतिक्रिया में मोदी-विरोधियों ने भी कुछ नए शब्द गढ़े हैं। यह प्रक्रिया अभी चल ही रही है। किसान आंदोलन और दूसरी तरफ पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना की उपस्थिति के कारण पिछले कुछ महीनों से देश की राजनीति में तल्खी कुछ ज्यादा ही है।

बजट सत्र का महत्त्व

राजनीतिक कबड्डी इतनी तेज है कि संसद के बजट सत्र पर हमारा ध्यान ही नहीं है। सत्र का पहला चरण कल 15 फरवरी को पूरा होगा। फिर 8 मार्च तक 20 दिन का ब्रेक रहेगा और फिर 8 अप्रैल तक सत्र का महत्वपूर्ण दौर चलेगा, जिसमें गंभीर चर्चा की जरूरत होगी। दोनों चरणों के अंतराल में संसद की स्थायी समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों पर विचार करेंगी। क्या आपको यकीन है कि इस चर्चा के लिए राजनीतिक दल होमवर्क कर रहे होंगे?

बजट सत्र हमारी संसद का सबसे महत्त्वपूर्ण सत्र होता है और इसीलिए यह सबसे लंबा चलता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और बजट प्रस्तावों के बहाने महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर जन-प्रतिनिधियों को अपने विचार व्यक्त करने का मौका मिलता है। ऐसे मौके पर जब देश पर महामारी का साया है और अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने की चुनौती है, राजनीति से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह मर्यादा रेखाओं का ध्यान रखे। दुर्भाग्य से मर्यादा-रेखाएं धुँधला रही हैं और संसदीय विमर्श पर शोर हावी हो रहा है।

Sunday, September 27, 2020

संजीदगी पर हावी राजनीतिक शोर

हाल में सम्पन्न हुआ संसद का मॉनसून सत्र पिछले दो दशकों का सबसे छोटा सत्र था। महामारी के प्रसार को देखते हुए यह स्वाभाविक भी था, पर इस जितने कम समय के लिए इसका कार्यक्रम बनाया गया था, उससे भी आठ दिन पहले इसका समापन करना पड़ा। बावजूद इसके संसदीय कर्म के हिसाब से यह सत्र काफी समय तक याद रखा जाएगा। इस दौरान लोकसभा ने निर्धारित समय की तुलना में 160 फीसदी और राज्यसभा ने 99 फीसदी काम किया। इन दस दिनों के लिए दोनों सदनों के पास 40-40 घंटे का समय था, जबकि लोकसभा ने करीब 58 घंटे और राज्यसभा ने करीब 39 घंटे काम किया। यह पहली बार हुआ जब सत्र के दौरान कोई अवकाश नहीं था। दोनों सदनों ने अपने दस दिन के सत्र में 27 विधेयक पास किए और पाँच विधेयकों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी की गई। इन विधेयकों में 11 ऐसे थे, जिन्होंने जून में जारी किए गए अध्यादेशों का स्थान लिया। 

इस सत्र की जरूरत इसलिए भी थी, क्योंकि तमाम संसदीय कर्म अधूरे पड़े थे। इस सत्र के शुरू होने के पहले संसद के पास पहले से 46 विधेयक लंबित थे। इनके अलावा नए 22 विधेयक इस सत्र में लाए जाने थे। कुछ अध्यादेशों के स्थान पर विधेयकों को लाना था और कुछ विधेयकों को वापस लेना था। हमारी प्रशासनिक-व्यवस्था सफलता के साथ तभी चल सकती है, जब संसदीय कर्म कुशलता के साथ सम्पन्न होता रहे। संसदीय बहस, प्रश्नोत्तर और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव सुनने में मामूली बातें लगती हैं, पर ये बातें ही लोकतंत्र को सफल बनाती हैं।

Tuesday, December 20, 2016

राहुल के तेवर इतने तीखे क्यों?

राहुल गांधी के तेवर अचानक बदले हुए नजर आते हैं। उन्होंने बुधवार को नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोलकर माहौल को विस्फोटक बना दिया है। उन्हें विपक्ष के कुछ दलों का समर्थन भी हासिल हो गया है। इनमें तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी शामिल हैं। हालांकि बसपा भी उनके साथ नजर आ रही है, जबकि दूसरी ओर यूपी में कांग्रेस और सपा के गठबंधन की अटकलें भी हैं। बड़ा सवाल फिलहाल यह है कि राहुल ने इतना बड़ा बयान किस बलबूते दिया और वे किस रहस्य पर से पर्दा हटाने वाले हैं? क्या उनके पास ऐसा कोई तथ्य है जो मोदी को परेशान करने में कामयाब हो? 
बहरहाल संसद का सत्र खत्म हो चुका है और राजनीति का अगला दौर शुरू हो रहा है। नोटबंदी के कारण पैदा हुई दिक्कतें भी अब क्रमशः कम होती जाएंगी। अब सामने पाँच राज्यों के चुनाव हैं। देखना है कि राहुल इस दौर में अपनी पार्टी को किस रास्ते पर लेकर जाते हैं।  

Friday, December 16, 2016

नोटबंदी पर बहस से दोनों पक्ष भाग रहे हैं

सरकार और विपक्ष किन सवालों को लेकर एक-दूसरे से पंजा लड़ा रहे हैं?

देश नोटबंदी की वजह से परेशान है. दूसरी ओर एक के बाद एक कई जगहों से लाखों-करोड़ों के नोट बिल्डरों, दलालों और हवाला कारोबारियों के पास से मिल रहे हैं. तब सवाल उठता है कि सरकार और विपक्ष किन सवालों को लेकर एक-दूसरे से पंजा लड़ा रहे हैं?

नोटबंदी का फैसला अपनी जगह है, बैंकिंग प्रणाली कौन से गुल खिला रही है? वह कौन सी राजनीति है, जो जनता के सवालों से ऊपर चली गई है? अब सुनाई पड़ रहा है कि कांग्रेस बजट सत्र जल्द बुलाने का विरोध भी करेगी. दरअसल राजनीति की वरीयताएं वही नहीं हैं, जो जनता की हैं.

कांग्रेस बजट सत्र जल्द बुलाने का विरोध कर सकती है, क्योंकि चुनाव की घोषणा होने के बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी, जिससे सरकार के पास कई तरह की घोषणाएं करने का मौका नहीं बचेगा. 

हाल में सरकार ने संकेत किया है कि नोटबंदी के कारण आयकर की दरों में कमी की जा सकती है. सवाल नोटबंदी की अच्छाई या बुराई का नहीं, उसकी राजनीति का है. 

Monday, December 12, 2016

भिंडी बाजार बनती राजनीति

राहुल गांधी ने कहा, नोटबंदी पर फैसले को चुनौती देने वाला मेरा भाषण तैयार है, लेकिन संसद में मुझे बोलने से रोका जा रहा है. मुझे बोलने दिया गया तो भूचाल आ जाएगा. सरकार की शिकायत है कि विपक्ष संसद को चलने नहीं दे रहा. उधर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है, सांसद अपनी जिम्मेदारी निभाएं. आपको संसद में चर्चा करने के लिए भेजा गया है, पर आप हंगामा कर रहे हैं. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के बनासकांठा में हुई किसानों की रैली में कहा, मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जाता, इसलिए मैंने जनसभा में बोलने का फैसला किया है.

Sunday, December 11, 2016

संसदीय गरिमा को बचाओ

राहुल गांधी कहते हैं, सरकार मुझे संसद में बोलने नहीं दे रही। मैं बोलूँगा तो भूचाल आ जाएगा। और अब प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं कि मुझे बोलने नहीं दिया जाता। उधर पीआरएस के आँकड़ों के अनुसार संसद के शीत सत्र में लोकसभा में 16 और राज्यसभा में 19 फीसदी काम हुआ है। लोकसभा में जो भी काम हुआ उसका एक तिहाई प्रश्नोत्तर के रूप में है। राज्यसभा में प्रश्नोत्तर हो ही नहीं पाए। लोकसभा ने इस दौरान आयकर से जुड़ा एक संशोधन विधेयक पास किया, जो केवल 10 मिनट में पास हो गया। यह सत्र 16 दिसंबर तक चलना है। सोमवार और मंगल को अवकाश हैं। अब सिर्फ तीन दिन बचे हैं।
संसद के न चलने की वजह केवल विपक्ष नहीं है। इसमें सरकार की भी भूमिका है। संसदीय गरिमा की रक्षा करना दोनों की जिम्मेदारी है। सुनाई पड़ रहा है कि सरकार और विपक्ष के बीच बचे हुए समय के सदुपयोग पर सहमति बनी है, पर सच यह है कि काफी कीमती समय बर्बाद हो गया है। एक बौद्धिक तबक़ा कहता है कि राजनीति में शोर है तो उसे दिखाना और सुनाना भी चाहिए। सड़क पर शोर है तो संसद में क्यों नहीं? शोर के सांकेतिक अर्थ महत्वपूर्ण हैं। पर यदि वह पूरे के पूरे सत्र को बहा ले जाए तो उसका कोई मतलब भी नहीं रह जाता। और वह शोर निरर्थक हो जाता है और संसद भी।  

Thursday, March 31, 2016

संसदीय गतिरोध भी साकारात्मक हो सकता है

'बहस इतनी लंबी खींचो, कोई फ़ैसला ही न हो'

  • 28 मार्च 2016
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संसदीय राजनीति में जब कोई विचार, अवधारणा या गतिविधि असाधारण गति पकड़ ले तो उसे धीमी करने के लिए क्या करें? या किसी पक्ष का बहुमत प्रबल हो जाए तो अल्पमत की रक्षा कैसे की जाए?
दुनियाभर की संसदीय परंपराओं ने ‘फिलिबस्टरिंग’ की अवधारणा विकसित की है. इसे सकारात्मक गतिरोध कह सकते हैं. बहस को इतना लम्बा खींचा जाए कि उस पर कोई फ़ैसला ही न हो सके, या प्रतिरोध ज़ोरदार ढंग से दर्ज हो वगैरह.
संयोग से ये सवाल पिछले कुछ समय से भारतीय संसद में जन्मे गतिरोध के संदर्भ में भी उठ रहे हैं. इसका एक रोचक विवरण दक्षिण कोरिया की संसद में देखने को मिलता है, जो भारत के लिए भी प्रासंगिक है.
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दक्षिण कोरिया की संसद में उत्तर कोरिया की आक्रामक गतिविधियों को देखते हुए आतंक विरोधी विधेयक पेश किया गया. इस विधेयक पर 192 घंटे लम्बी बहस चली. नौ दिनों तक लगातार दिन-रात...
विपक्षी सांसदों का कहना था कि यह विधेयक यदि पास हुआ तो नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता ख़तरे में पड़ जाएगी. इस बिल के ख़िलाफ़ 38 सांसदों ने औसतन पाँच-पाँच घंटे लम्बे वक्तव्य दिए. सबसे लम्बा भाषण साढ़े बारह घंटे का था, बग़ैर रुके.
इतने लंबे भाषण का उद्देश्य केवल यह था कि सरकार इस प्रतिरोध को स्वीकार करके अपने हाथ खींच ले. सरकारी विधेयक फिर भी पास हुआ. अलबत्ता एक रिकॉर्ड क़ायम हुआ. साथ ही विधेयक के नकारात्मक पहलुओं को लेकर जन-चेतना पैदा हुई.
‘फिलिबस्टरिंग’ संसदीय अवधारणा है. पर यह नकारात्मक नहीं सकारात्मक विचार है. तमाम प्रौढ़ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में फिलिबस्टरिंग की मदद ली जाती है.

Thursday, August 13, 2015

मॉनसून सत्र : सवाल ही सवाल

मॉनसून सत्र तो धुल गया, अब आगे क्या?

  • 25 मिनट पहले
संसद, भारत
उम्मीद नहीं है कि संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन चमत्कार होगा. जो दो महत्वपूर्ण बिल सामने हैं, उनमें से भूमि अधिग्रहण विधेयक अगले सत्र के लिए टल चुका है.
राज्यसभा की प्रवर समिति के सुझावों को शामिल करके जो जीएसटी विधेयक पेश किया गया है, उस पर कांग्रेस ने विचार करने से ही इनकार कर दिया है.
अब आख़िरी दिन यह पास हो पाएगा इसकी उम्मीद कम है.
इस सत्र को नकारात्मक बातों के लिए याद किया जाएगा. राज्यों में आई बाढ़, महंगाई और गुरदासपुर के चरमपंथी हमले जैसे सवालों की अनदेखी के लिए भी.
अब सोचना यह है कि अगले सत्र में क्या होगा? सुषमा स्वराज का इस्तीफा नहीं हुआ तो क्या शीतकालीन सत्र भी जाम होगा?
शायद बिहार के चुनाव परिणाम भावी राजनीति की दिशा तय करेंगे.

शून्य संसद

इस सत्र में पास करने के लिए आठ विधेयक थे. सबसे महत्वपूर्ण थे जीएसटी, भूमि अधिग्रहण, व्हिसल ब्लोवर संरक्षण और भ्रष्टाचार रोकथाम (संशोधन) विधेयक.
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर संयुक्त समिति का प्रतिवेदन अब शीत सत्र में ही पेश होगा, इसलिए आखिरी दिन उसकी संभावना नहीं है.
मानसून सत्र में 11 अगस्त तक संसद के दोनों सदनों में 7 विधेयक पेश हुए. तीन वापस लिए गए और चार पास हुए. इनमें से केवल दिल्ली हाईकोर्ट संशोधन बिल ही दोनों सदनों से पास हुआ है. शेष तीन लोकसभा से पास हुए हैं.
इस लोकसभा का पहला साल संसदीय काम के लिहाज से अच्छा रहा. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार इस साल का बजट सत्र पिछले 15 साल में सबसे अच्छा था.
लोकसभा ने अपने निर्धारित समय से 125 फीसदी और राज्यसभा ने 101 फीसदी काम किया. पर मानसून सत्र में ऐसा नहीं हो सका.

अखाड़ा राजनीति

सुषमा स्वराज और शिवराज सिंह
कांग्रेस की छापामार शैली ने नरेंद्र मोदी की दृढ़ता और भाजपा के संख्याबल में सेंध लगा दी. पर गारंटी नहीं कि यह राजनीति वोटर को भी भाएगी और इसके सहारे क्षीणकाय कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी.
सवाल यह भी पूछा जाएगा कि इस राजनीति के लिए क्या संसद का इस्तेमाल उचित है?
सवाल भाजपा को लेकर भी हैं. गतिरोध तोड़ने के लिए उसने भी कुछ नहीं किया. प्रधानमंत्री सामने नहीं आए. लोकसभा में कार्य-स्थगन के जवाब में उनके सामने आने की उम्मीद थी, जो नहीं हुआ.
भाजपा ने लंबे समय तक विदेशी पूँजी निवेश, बैंकिग और इंश्योरेंस-सुधार और जीएसटी के रास्ते में भी अड़ंगे लगाए थे. संसदीय पवित्रता की दुहाई वह किस मुँह से दे सकती है?

Tuesday, August 4, 2015

किस हद तक जाएगा कांग्रेस का विरोध


कांग्रेस का संसदीय गतिरोध कार्यक्रम कमज़ोर हो ही रहा था कि कांग्रेस के 25 सदस्यों के निलंबित होने से आंदोलन में जान आ गई है। क्या कांग्रेस इसे किसी तार्किक परिणति तक ले जाने में कामयाब होगी? अगले पाँच दिन तक लोकसभा के बहिष्कार से कांग्रेस को मीडिया कवरेज का अवसर मिलेगा, पर इससे संसदीय कर्म को ठेस लगेगी। दूसरी ओर बीजेपी के रुख में भी नरमी नहीं है। भाजपा संसदीय दल की बैठक में कांग्रेस के आंदोलन के विरोध में प्रस्ताव पास हुआ है। आर्थिक सुधारों से जुड़े विधेयकों के रास्ते में अड़ंगा लगने पर  नुकसान देश का होगा। अब लगता नहीं कि संसद का शेष बचा सत्र कोई महत्वपूर्ण सकारात्मक कार्य कर पाएगा। 

देखना यह है कि क्या कांग्रेस पार्टी अपने आंदोलन के पक्ष में विपक्ष के दूसरे दलों से कितना समर्थन जुटा पाती है। साथ ही पार्टी ने इसे किस हद तक ले जाने की योजना बनाई है। सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की माँग को लेकर पार्टी का विरोध प्रदर्शन मंगलवार को भी जारी है। लोकसभा में अपने 25 सांसदों को निलंबित किए जाने के विरोध में सोनिया गांधी के नेतृत्व में सांसदों ने संसद के बाहर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है। सभी सांसद गांधी प्रतिमा के नीचे धरने पर बैठे हुए हैं। उन्होंने बाहों में काली पट्टियाँ बाँध रखी हं। पार्टी के राज्यसभा सांसद भी धरने में शामिल हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत सभी सांसदों ने बांह पर काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन कर रहे हैं। 

धरने में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आजाद, सत्यव्रत चतुर्वेदी, प्रमोद तिवारी, आनंद शर्मा, एके एंटनी, अश्वनी कुमार, राजीव शुक्ला, मल्लिकार्जुन खड़गे, अंबिका सोनी, राज बब्बर, शैलजा कुमारी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अहमद पटेल सहित तमाम सांसद शामिल हैं। सभी नेताओं ने हाथ पर काली पट्टी बांध रखी है। सांसदों का कहना है कि सरकार की तानाशाही के खिलाफ लगातार 5 दिन तक धरना दिया जाएगा।

कल लोकसभा स्पीकर ने 25 कांग्रेस सांसदों को 5 दिन के लिए निलंबित कर दिया था। कांग्रेस ने इसे विपक्ष की आवाज दबाने की साजिश करार दिया है। वहीं आज बीजेपी संसदीय दल की बैठक भी हो रही। माना जा रहा है कि इस बैठक में लोकसभा से पांच दिनों के लिए निलंबित सांसदों के बाद पैदा हालातों पर रणनीति तय की जाएगी।

25 निलंबित सांसदों के समर्थन में कांग्रेस सहित जिन 9 पार्टियों ने अगले पाँच दिन तक लोकसभा का बहिष्कार करने का फैसला किया है उनके नाम हैं- तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, आरएसपी, जेडीयू, एनसीपी, मुस्लिम लोग और आम आदमी पार्टी। वे इस सिलसिले में समाजवादी पार्टी से भी बात कर रहे हैं। आज सुबह मुलायम सिंह मीडिया के सामने आए और उन्होंने निलंबन का विरोध किया। 

इस सत्र में पास होने के लिए जो मुख्य विधेयक लंबित हैं उनके नाम हैं- जीएसटी, भूमि अधिग्रहण, रियल एस्टेट्स रेग्युलेटर बिल, भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक, ह्विसिल ब्लोवर संरक्षण (संशोधन), बाल श्रम निषेध एवं नियमन विधेयक, किशोर अपराध (बाल संरक्षण) तथा नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (संशोधन) विधेयक। 
निलंबित लोकसभा सदस्य क्लिक करके बड़ा करें
                           
Here is the list of Congress MPs suspended:
 BN Chandrappa
Santokh Singh Chaudhary
Abu Hasem Khan Choudhury
Sushmita Dev
R Dhruvanarayana
Ninong Ering
Gaurav Gogoi
Sukender Reddy Gutha
Deepender Singh Hooda
Suresh Kodikunnil
SP Muddahanumegowda
Abhijit Mukherjee
Ramachandra Mullappally
KH Muniyappa
BV Nayak
Vincent H Pala
MK Raghvan
Ranjeet Ranjan
CL Ruala
Tamradhwaj Sahu
Rajeev Shankarrao Satav
Ravneet Singh
Doddaalahalli Kempegowda Suresh
KC Venugopal
Thokehom Meinya

Monday, August 3, 2015

संसदीय गतिरोध का राजनीतिक लाभ किसे?

संसद न चलने से किसे मिलेगा फायदा?

  • 57 मिनट पहले
राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी
संसदीय गतिरोध को तोड़ने के लिए सोमवार को होने वाली कोशिशें सफल नहीं हुईं तो 'मॉनसून सत्र' के शेष दिन भी निःशेष मानिए.
सरकार ने सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है. लेकिन उसके पहले सुबह कांग्रेस संसदीय दल की बैठक है.
फ़िलहाल स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस सर्वदलीय बैठक में भाग लेगी या नहीं. दोनों बैठकों से ही पता लगेगा कि राजनीति किस करवट बैठने वाली है. कांग्रेस चाहती है कि प्रधानमंत्री इस सिलसिले में कोई ठोस फॉर्मूले का सुझाव दे सकते हैं.

किसका फायदा?

(फाइल फोटो)
संसदीय सत्र का इस तरह फना हो जाना किसके फायदे में जाएगा? फिलहाल कांग्रेस ने बीजेपी के किले में दरार लगा दी है. लेकिन बीजेपी को जवाब के लिए उकसाया भी है.
दोनों ने इसका जोड़-घटाना जरूर लगाया है. देखना यह भी होगा कि बाकी दल क्या रुख अपनाते हैं. वामपंथी दल इस गतिरोध में कांग्रेस का साथ दे रहे हैं, लेकिन बाकी दलों में खास उत्साह नज़र नहीं आता.
सवाल है कि संसद का नहीं चलना नकारात्मक है या सकारात्मक?
बीजेपी ने इसे दुधारी तलवार की तरह इस्तेमाल किया है. यूपीए-दौर में उसने इसका लाभ लिया था और अब वह कांग्रेस को 'विघ्न संतोषी' साबित करना चाहती है, उन्हीं तर्कों के साथ जो तब कांग्रेस के थे.
कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है, "हम महत्वपूर्ण विधेयकों को पास करने के पक्ष में हैं, लेकिन सर्वदलीय बैठक का एजेंडा होना चाहिए कि सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी."
सरकार चाहती है कि इस सत्र में कम से कम जीएसटी से जुड़ा संविधान संशोधन पास हो जाए, लेकिन इसकी उम्मीद नहीं लगती.

आक्रामक रणनीति

राजनाथ सिंह और अरुण जेटली
कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बने रहने के लिए उसे संसद में आक्रामक रुख रखना होगा. लेकिन देखना होगा कि क्या वह सड़क पर भी कुछ करेगी या नहीं. और यह भी कि उसका सामर्थ्य क्या है.
यूपीए के दौर में बीजेपी के आक्रामक रुख के बरक्स कांग्रेस बचाव की मुद्रा में थी. इससे वह कमजोर भी पड़ी. राहुल गांधी ने दागी राजनेताओं से जुड़े अध्यादेश को फाड़ा. अश्विनी कुमार, पवन बंसल और जयंती नटराजन को हटाया गया.
इसका उसे फायदा नहीं मिला, उल्टे चुनाव के ठीक पहले वह आत्मग्लानि से पीड़ित पार्टी नजर आने लगी थी. फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि बीजेपी अपनी विदेश मंत्री को हटाएगी. कांग्रेस को इस आधार पर ही भावी रणनीति बनानी होगी.
बीजेपी बजाय 'रक्षात्मक' होने के 'आक्रामक' हो रही है. कांग्रेस की गतिरोध की रणनीति के जवाब में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर 'हिन्दू आतंकवाद' का जुमला गढ़ने की तोहमत लगाकर अचानक नया मोर्चा खोल दिया है.
गुरदासपुर और याकूब मेमन जैसे मसलों पर बीजेपी ने 'भावनाओं का ध्रुवीकरण' कर दिया है, जो उसका ब्रह्मास्त्र है.

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