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Thursday, August 8, 2019

एक विलक्षण राजनेता की असमय विदाई


सौम्य, सुशील, सुसंस्कृत, संतुलित और भारतीय संस्कृति की साक्षात प्रतिमूर्ति. सुषमा स्वराज की गणना देश के सार्वकालिक प्रखरतम वक्ताओं और सबसे सुलझे राजनेताओं में और श्रेष्ठतम पार्लियामेंटेरियन के रूप में होगी. जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को लोग याद करते हैं, वैसे ही उनके भाषण लोगों को रटे पड़े हैं. संसद में जब वे बोलतीं, तब उनके विरोधी भी ध्यान देकर उन्हें सुनते थे. सन 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का उनका भाषण हमेशा याद रखा जाएगा, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के आतंकी प्रतिष्ठान की धज्जियाँ उड़ा दी थीं.
सन 2014 में मोदी सरकार में जब वे शामिल हुई, तब तमाम कयास और अटकलें थीं कि यह उनकी पारी का अंत है. पर उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को एक नया आयाम दिया. विदेशमंत्री पद को अलग पहचान दी. वे देश की पहली ऐसी विदेशमंत्री हैं, जिन्होंने प्रवासी भारतवंशियों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान किया. एक जमाने में देश का पासपोर्ट लेना बेहद मुश्किल काम होता था. आज यह काम बहुत आसानी से होता है. इसका श्रेय उन्हें जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वपूर्ण दौरों के पहले वे तमाम देशों की यात्राएं करके भारत के पक्ष में जमीन तैयार करती रहीं.

Sunday, December 2, 2012

क्या सुषमा स्वराज ने मोदी के लिए रास्ता खोल दिया?

नरेन्द्र मोदी के बाबत सुषमा स्वराज के वक्तव्य का अर्थ लोग अपने-अपने तरीके से निकाल रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि सुषमा स्वराज ने भी नामो का समर्थन कर दिया, जो खुद भाजपा संसदीय दल का नेतृत्व करती हैं और जब भी सरकार बनाने का मौका होगा तो प्रधानमंत्री पद की दावेदार होंगी। पर सुषमा जी के वक्तव्य को ध्यान से पढ़ें तो यह निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा। हाँ इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नामो के नाम पर उनका विरोध नहीं है। गुजरात की चुनाव सभाओं में अरुण जेटली ने भी इसी आशय की बात कही है।

यह दूर की बात है कि एनडीए कभी सरकार बनाने की स्थिति में आता भी है या नहीं, पर लोकसभा चुनाव में उतरते वक्त पार्टी सरकार बनाने के इरादों को ज़ाहिर क्यों नहीं करना चाहेगी? ऐसी स्थिति में उसे सम्भावनाओं के दरवाजे भी खुले रखने होंगे। अभी तक ऐसा लगता था कि पार्टी के भीतर नरेन्द्र मोदी को केन्द्रीय राजनीति में लाने का विरोध है। इस साल उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में उन्हें नहीं आने दिया गया। नरेन्द्र मोदी ने मुम्बई कार्यकारिणी की बैठक के बाद से यह जताना शुरू कर दिया है कि मैं राष्ट्रीय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक हूँ। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सीधे वार करने शुरू किए जो सहजे रूप से राष्ट्रीय समझ का प्रतीक है।