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Thursday, April 9, 2020

अभी तक सफल है भारतीय रणनीति


हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने दिया है. आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए हमारे देश को लेकर जो अंदेशा था, वह काफी हद तक गलत साबित हुआ है. पर क्या पिछले एक हफ्ते की तेजी के बावजूद आने वाले समय में भी गलत साबित होगा? यकीनन हमें सफलता मिल रही है. तथ्य इस बात की गवाही दे रहे हैं. हालांकि इसकी वैक्सीन तैयार नहीं है, पर जिन लोगों ने इस बीमारी पर विजय पाई है, अब उनके शरीर में जो एंटीबॉडी तैयार हो गई हैं, वे मरीजों के इलाज में काम आएंगी.
गत 1 मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75, इटली में 170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130. एक महीने बाद 1 अप्रेल को भारत में यह संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः 2,15,003, 1,10,574, 1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी. भारत में लॉकडाउन शुरू होने के बाद यह संख्या स्थिर होती नजर आ रही थी, पर पिछले एक हफ्ते में यह संख्या तेजी से बढ़ी है और अब पाँच हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी. पिछले तीन-चार दिन की संख्या का विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि यह तेजी थमी है.

Friday, April 3, 2020

दुनिया का गुस्सा अब चीन पर फूटेगा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कुछ दिनों में कोरोना संक्रमण के मामले 10 लाख हो जाएंगे और मौतों का आंकड़ा 50,000 तक पहुंच जाएगा. यूरोप के कुछ देशों से ऐसी खबरें भी हैं कि नए मामलों की संख्या में कमी आ रही है, पर अमेरिका को लेकर चिंताएं बढ़ रहीं हैं, जहाँ संक्रमित व्यक्तियों की संख्या सवा दो लाख के आसपास होने जा रही है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगले दो हफ्ते बेहद मुश्किल होंगे. इस सिलसिले में बने कार्यबल की सदस्य डॉ डेबोरा ब्रिक्स ने ह्वाइट हाउस के एक प्रेजेंटेशन में बताया है कि आगामी 30 अप्रैल तक सोशल डिस्टेंसिंग रखने के बावजूद देश में मरने वालों की संख्या एक लाख तक पहुंच सकती है. ट्रंप ने कहा, हमें बेहद मुश्किल दो हफ्तों का सामना करना है. ये दो हफ्ते बहुत-बहुत दर्दनाक होने वाले हैं.
इतना स्पष्ट है कि अमेरिकी जनता और प्रशासन इस महामारी के बाद बहुत बड़े फैसले करेगा. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी वैश्विक राजनीति में इतने बड़े बदलाव नहीं आए होंगे, जितने अब आ सकते हैं. इस नए भूचाल का केंद्र चीन बनेगा. इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था इस साल मंदी में चली जाएगी. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत और चीन इसके अपवाद हो सकते हैं, पर दुनिया के देशों को खरबों डॉलर का नुकसान होगा.

Friday, March 27, 2020

‘सोशल डिस्टेंसिंग’ यानी हमारी परीक्षा की घड़ी


कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के कारण देश में लॉकडाउन के साथ लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की सलाह भी दी गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ये नियम मुझपर भी लागू होते हैं. बुधवार को प्रधानमंत्री आवास पर बुलाई गई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री करीब एक-एक मीटर की दूरी पर बैठे. विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग यानी रोजमर्रा के कार्य-व्यवहार में हम एक-दूसरे से कम से कम एक मीटर या तीन फुट की दूसरी बनाकर रखें.
कैबिनेट बैठक के अलावा गुजरात की कुछ दुकानों की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हुईं हैं, जिनमें दुकानदारों ने एक-एक मीटर की दूरी पर गोले बना दिए हैं. ग्राहकों से कहा गया है कि वे उनके भीतर खड़े रहें और जब उनसे आगे वाला बढ़े, तो उसकी जगह ले लें. हालांकि करीब एक अरब 30 करोड़ लोगों के देश में इस किस्म के अनुशासन को स्थापित कर पाना आसान नहीं है, पर जब उन्हें लगेगा कि जान पर बन आई है, तो वे इसे स्वीकार भी करेंगे.  

Thursday, March 19, 2020

सफलता के नए आकाश पर तेजस और सारस


मंगलवार 17 मार्च को स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस ने वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के आखिरी पड़ाव को भी पार कर लिया. इस विमान के एफओसी मानक संस्करण एसपी-21 ने सफलता के साथ उड़ान भरी. अब इस वित्त वर्ष में एचएएल ऐसे 15 विमान और बनाएगा. इस सफलता के चार दिन पहले एचएएल और सीएसआईआर-नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज़ ने सारस मार्क-2 विमान के डिजाइन, विकास, उत्पादन और मेंटीनेंस के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. 19 सीटों वाले इस विमान को वायुसेना खरीदेगी. इसका इस्तेमाल नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में भी होगा. साथ ही इसके निर्यात की संभावनाएं भी काफी अच्छी हैं.
ये दोनों विमान दो तरह की संभावनाओं बता रहे हैं. तेजस लड़ाकू विमानों के मामले में और सारस परिवहन विमानों की दिशा में पहला कदम है. दोनों अपनी श्रेणियों के हल्के विमान हैं, पर दोनों कार्यक्रमों के विस्तार की संभावनाएं हैं. हमारी एयरलाइंस बोइंग या एयरबस के विमानों के सहारे हैं, जबकि चीन ने अपना नागरिक उड्डयन विमान विकसित कर लिया है. उपरोक्त दोनों घटनाएं बढ़ते भारतीय आत्मविश्वास को व्यक्त करती हैं.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने हाल में ‘शस्त्रास्त्र के वैश्विक हस्तांतरण रुझान-2019’ रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार भारत अब भी दुनिया में हथियारों के दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. गत 9 मार्च को जारी सिपरी के आँकड़ों के अनुसार सऊदी अरब इस सूची में सबसे ऊपर है. एक समय में चीन और भारत इस सूची में सबसे ऊपर रह चुके हैं. चीन ने इस दौरान अपने औद्योगिक विस्तार पर काफी बड़े स्तर पर निवेश किया और अब वह पाँचवें नम्बर का शस्त्र निर्यातक देश है.
पिछले कुछ वर्षों से भारत ने इस दिशा में सोचना शुरू किया है और उसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं. सिपरी की इस रिपोर्ट को गौर से पढ़ें तो पाएंगे कि भारत का आयात भी कम होता जा रहा है और निर्यात में वृद्धि हो रही है. विश्व के शीर्ष 25 निर्यातक देशों में भारत का नाम भी शामिल हो गया है. इनमें भारत का स्थान 23वाँ है. इससे हालांकि हमारी तस्वीर बड़े शस्त्र निर्यातक की नहीं बनती, पर आने वाले समय में देश के रक्षा उद्योग की तस्वीर जरूर उभर कर आती है. सिपरी के आँकड़े बता रहे हैं कि सन 2015 के बाद से भारतीय रक्षा आयात में 32 फीसदी की कमी आई है. इसका अर्थ है कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को सफलता मिल रही है.
भारत सरकार अब खुलकर शस्त्र निर्यात के क्षेत्र में उतरने का निश्चय कर चुकी है. इसके लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव भी किया गया है. हाल में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हमने सन 2025 तक स्वदेशी एयरोस्पेस, रक्षा-उपकरणों और सेवाओं के कारोबार को 26 अरब डॉलर के स्तर तक पहुँचाने का निश्चय कर रखा है. इसमें से पाँच अरब डॉलर के शस्त्रास्त्र का हम निर्यात करेंगे. रक्षा उद्योग पर 10 अरब डॉलर के अतिरिक्त निवेश की व्यवस्था की जा रही है, जिससे 20 से 30 लाख लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
वैश्विक शस्त्र बाजार में विक्रेता के रूप में भारत की भागीदारी इस समय केवल 0.2 प्रतिशत की है. भारत ने म्यांमार, श्रीलंका और मॉरिशस को मुख्यतः हथियार बेचे हैं. अब वियतनाम और फिलीपींस के अलावा अफ्रीकी देशों के साथ कुछ बड़े सौदे संभव हैं. भारत सरकार अगले पाँच वर्षों में कुछ मित्र देशों की क्रेडिट लाइन बढ़ाने जा रही है. हाल में रक्षामंत्री ने बताया कि भारत 18 देशों को बुलेटप्रूफ जैकेटों की सप्लाई कर रहा है. देश के रक्षा अनुसंधान संगठन ने बुलेटप्रूफ जैकेटों की बेहतर तकनीक विकसित की है. निजी क्षेत्र की 15 कंपनियों को इस कार्य के लिए लाइसेंस दिए गए हैं. मोटे तौर पर डीआरडीओ ने कई प्रकार की तकनीकों के करीब 900 लाइसेंस निजी कम्पनियों को दिए हैं. इस तकनीकी हस्तांतरण से ये कंपनियाँ स्वदेशी माँग को पूरा करने के साथ-साथ निर्यात आदेशों को भी पूरा करेंगी.
हथियारों का सौदा सरल नहीं होता. हथियार बेचने के पहले सम्बद्ध देश के साथ अपने रिश्तों को भी देखना होता है. सरकार ने हाल में संसद को बताया कि भारत 42 देशों को रक्षा-उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है. इस दिशा में कुछ तकनीक भारत में ही विकसित की जा रही है और कुछ के लिए हमें विकसित देशों की मदद लेनी होगी. अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन और बोइंग जैसी कम्पनियाँ अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए भारत में कारखाने लगा चुकी हैं. फ्रांस और रूस की दिलचस्पी भारत में है.
हाल में खबर थी कि बाजार खोजने की दिशा में एचएएल मलेशिया, वियतनाम, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में अपने लॉजिस्टिक बेस बनाने पर विचार कर रहा है. इसके पीछे मूलतः तेजस विमान के लिए वैश्विक सम्भावनाएं तलाश करने की कामना है. भारत की दिलचस्पी तेजस, अटैक हेलिकॉप्टर रुद्र और एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर ध्रुव के लिए दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में बाजार की तलाश करने में है. हमारी ब्रह्मोस मिसाइलों, हवाई रक्षा प्रणाली आकाश और हवा से हवा में मार करने वाली अस्त्र मिसाइल पर भी दुनिया की नजरें हैं.
पिछले साल मलेशिया ने तेजस में दिलचस्पी दिखाई थी और उसका विशेष हवाई प्रदर्शन भी मलेशिया के आकाश पर हुआ था. हाल में आर्मेनिया ने भारत से चार स्वाति वैपन लोकेटिंग रेडार खरीदने का निश्चय किया है. इस सौदे का उत्साहवर्धक पहलू यह है कि आर्मेनिया की सेना ने रूस और पोलैंड के रेडारों से साथ स्वाति का भी परीक्षण किया था और उसे बेहतर पाया. आर्मेनियाई की दिलचस्पी भारत के मल्टी बैरल रॉकेट सिस्टम पिनाक में भी है. भारतीय डॉकयार्ड अब मित्र देशों के लिए युद्धपोत भी बना रहे हैं.

Friday, March 13, 2020

राजनीति में बड़ा मोड़ साबित होगा सिंधिया प्रकरण


ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस पार्टी को छोड़कर जाना पहली नजर में एक सामान्य राजनीतिक परिघटना लगती है. इसके पहले भी नेता पार्टियाँ छोड़ते रहे हैं. पर इसका कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए विशेष महत्व है. वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण चेहरों में शामिल रहे और अब बीजेपी की अगली कतार में होंगे. वे देश के महत्वपूर्ण भावी नेताओं में से एक हैं. यह एक नेता का पलायन भर नहीं है. पार्टी के भीतर एक अरसे से सुलग रही आग इस बहाने से भड़क सकती है. उसके भीतर के झगड़े अब खुलकर सामने आ सकते हैं. 
दूसरी तरफ बीजेपी के अंतर्विरोध भी खुलेंगे. ग्वालियर क्षेत्र में उसकी राजनीति केंद्र-बिंदु राजमहल का विरोध था. अब उसे सिंधिया परिवार के महत्व को स्थापित करना होगा. इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के स्थानीय क्षत्रप एक नए शक्तिशाली नेता के साथ कैसे सामंजस्य बैठाएंगे, यह भी देखना होगा. एक अंतर है. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व, कांग्रेस के नेतृत्व की तुलना में ज्यादा ताकतवर है. सवाल है, कितना और कब तक? 
अब सवाल केवल मध्य प्रदेश की सरकार का नहीं है, बल्कि कांग्रेस की समूची सियासत और उसके नेतृत्व का है. यह कहना जल्दबाजी होगी कि सत्ता के लोभ में सिंधिया पार्टी छोड़कर भागे हैं. वास्तव में वे पार्टी में खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे. यह प्रकरण इस बात को भी रेखांकित कर रहा है कि कुछ और युवा नेता भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं. इस स्तर के नेता को इस कदर हाशिए पर डालकर नहीं चला जा सकता था.
लोकसभा के लगातार दूसरे चुनाव में भारी पराजय से पीड़ित कांग्रेस जब इतिहास के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही थी, इतने बड़े नेता का साथ छोड़ना बड़ा हादसा है. यह पलायन बता रहा है कि पार्टी के भीतर बैठे असंतोष को दूर नहीं किया गया, तो ऐसा ही कुछ और भी हो सकता है. अपनी इस दुर्दशा पर पार्टी अब चिंतन नहीं करेगी, तो कब करेगी?  वह नेतृत्व के सवाल को ही तय नहीं कर पाई है और एक अंतरिम व्यवस्था करके बैठी है.  

Thursday, March 5, 2020

मोदी का ट्वीट और उससे उपजी एक बहस


सोशल मीडिया की ताकत, उसकी सकारात्मक भूमिका और साथ ही उसके नकारात्मक निहितार्थों पर इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट ने अच्छी रोशनी डाली. हाल में दिल्ली के दंगों को लेकर सोशल मीडिया पर कड़वी, कठोर और हृदय विदारक टिप्पणियों की बाढ़ आई हुई थी. ऐसे में प्रधानमंत्री  के एक ट्वीट ने सबको चौंका दिया. उन्होंने लिखा, 'इस रविवार को सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब छोड़ने की सोच रहा हूं.' उनके इस छोटे से संदेश ने सबको स्तब्ध कर दिया. क्या मोदी सोशल मीडिया को लेकर उदास हैं?   क्या वे जनता से संवाद का यह दरवाजा भी बंद करने जा रहे हैं? या बात कुछ और है?
इस ट्वीट के एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री ने अपने आशय को स्पष्ट कर दिया, पर एक दिन में कई तरह की सद्भावनाएं और दुर्भावनाएं बाहर आ गईं. जब प्रधानमंत्री ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है, तब भी जो टिप्पणियाँ आ रही हैं उनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के दृष्टिकोण शामिल हैं. उनके समर्थक हतप्रभ थे और उनके विरोधियों ने तंज कसने शुरू कर दिए. इनमें राहुल गांधी से लेकर कन्हैया कुमार तक शामिल थे. कुछ लोगों ने अटकलें लगाईं कि कहीं मोदी अपना मीडिया प्लेटफॉर्म लांच करने तो नहीं जा रहे हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि अब उनकी जगह अमित शाह जनता को संबोधित करेंगे? 

Thursday, February 27, 2020

दिल्ली की हिंसा: पहले सौहार्द फिर बाकी बातें


दिल्ली की हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति की अपील की है. अपील ही नहीं नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस इलाके में जाकर जनता के विश्वास को कायम करें. शनिवार से जारी हिंसा के कारण मरने वालों की संख्या 20 हो चुकी है. इनमें एक पुलिस हैड कांस्टेबल शामिल है. दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी गंभीर रूप से घायल हुए हैं. कहा जा रहा है कि दिल्ली में 1984 के दंगों के बाद इतने बड़े स्तर पर हिंसा हुई है. यह हिंसा ऐसे मौके पर हुई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर आए हुए थे और एक दिन वे दिल्ली में भी रहे.
हालांकि हिंसा पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, पर उसके साथ कई तरह के सवाल उठे हैं. क्या पुलिस के खुफिया सूत्रों को इसका अनुमान नहीं था? क्या प्रशासनिक मशीनरी के सक्रिय होने में देरी हुई? सवाल यह भी है कि आंदोलन चलाने वालों को क्या इस बात का अनुमान नहीं था कि उनकी सक्रियता के विरोध में भी समाज के एक तबके के भीतर प्रतिक्रिया जन्म ले रही है? यह हिंसा नागरिकता कानून के विरोध में खड़े हुए आंदोलन की परिणति है. आंदोलन चलाने वालों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है, पर उसकी भी सीमा रेखा होनी चाहिए.

Wednesday, February 19, 2020

सेना में नारी-शक्ति की बड़ी विजय


करीब दो दशक की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं. इसका लाभ सेना की 10 शाखाओं में काम कर रही महिलाओं को मिलेगा. अदालत ने केंद्र की उस दलील को निराशाजनक बताया, जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्टिंग न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया गया था.
अभी तक सेना में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुष अफसरों को ही स्थायी कमीशन का विकल्प मिल रहा था, महिलाओं को यह हासिल नहीं था. वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को पहले से स्थायी कमीशन मिल रहा है. यह केस पहली बार सन 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल किया गया था और 2010 में हाईकोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया था, पर उस आदेश का पालन नहीं किया गया और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

Wednesday, February 12, 2020

राष्ट्रीय राजनीति को बदलेंगे दिल्ली के परिणाम


दिल्ली के चुनाव परिणाम के अनेक संकेत हैं, पर सबसे बड़ा संदेश है शहरी गरीब वोटर की महत्वपूर्ण होती भूमिका. मोटे तौर पर इन परिणामों में बीजेपी, कांग्रेस और आप तीनों के लिए कुछ संदेश छिपे हैं. आप और बीजेपी दोनों अपनी सफलता का दावा कर सकती हैं. बेशक आप की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी और केजरीवाल मुख्यमंत्री बनेंगे, पर उसकी सीटें कम हुई हैं और वोट प्रतिशत भी घटा है. ऐसा तब हुआ है, जब कांग्रेस का काफी वोट आप को ट्रांसफर हुआ.
बीजेपी की सीटों और वोट प्रतिशत दोनों में वृद्धि हुई है, पर वह आप को अपदस्थ करने में विफल हुई है. सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ है, जो वोट प्रतिशत के आधार पर इतिहास के सबसे निचले स्तर पर आ गई है. बहरहाल इतना तय है कि ये परिणाम आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति की धारा को बदलेंगे जरूर.

Sunday, February 2, 2020

निराशा दूर करने की कोशिश


अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने और गाँवों से लेकर शहरों तक फैली निराशा के बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़ी घोषणाएं करके बताने की कोशिश की है कि सरकार देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने की पुरजोर कोशिश कर रही है. इस बजट में उन्होंने कोई सेक्टर नहीं छोड़ा. उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि में निवेश घोषणाएं की हैं, साथ ही आय के नए तरीके भी खोजने का प्रयास किया है. मध्य वर्ग और ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ाने के नए तरीके खोजे गए हैं, ताकि वे खर्च करें और उपभोक्ता वस्तुओं का माँग बढ़े. करदाताओं और कम्पनियों को परेशान न किया जाए, इसके लिए कम्पनी कानून में बदलाव होगा, वहीं टैक्स-पेयर चार्टर बनाने की घोषणा भी की गई है.
सरकार ने धनार्जन को उचित मानते हुए कारोबारियों को संतुष्ट करने की कोशिश की है. खर्च बढ़ाने के बावजूद सरकार ने अगले वित्तवर्ष में राजस्व घाटे को जीडीपी के 3.8 फीसदी तक रखने का वायदा किया है. यह वायदा पूरा होगा या नहीं, यह अगले साल ही पता लगेगा. अलबत्ता सरकार पूरे हौसले के साथ मैदान में उतरी है. वित्तमंत्री ने जो बड़ी घोषणाएं की हैं, उनमें जीवन बीमा निगम और रेलवे के आंशिक निजीकरण से जुड़े फैसले हैं. आयकर और कम्पनी कर ढाँचे में व्यापक सुधार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की घोषणा की गई है. जीएसटी के और सरलीकरण का वायदा है. सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए पाँच करोड़ तक के कारोबारियों को लेखा परीक्षा से छूट देने की घोषणा की है.

Wednesday, January 22, 2020

जीडीपी को लेकर बढ़ती चुनौतियाँ


अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि दर का अपना अनुमान घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है. यह अनुमान भारत सरकार के आधिकारिक अग्रिम वृद्धि अनुमान 5 प्रतिशत से भी कम है. इतना ही नहीं यह अनुमान आईएमएफ के ही पहले के अनुमान की तुलना में 1.3 प्रतिशत कम है. मुद्रा कोष के अनुसार भारत की आर्थिक वृद्धि कम होने का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा और विश्व की संवृद्धि दर नीचे चली जाएगी. आईएमएफ ही नहीं भारत सरकार समेत देश के अर्थशास्त्री पहले से मान रहे हैं कि संवृद्धि दर गिरेगी, पर सवाल है कि कितनी और यह गरावट कब तक रहेगी?
मुद्राकोष के अनुसार आगामी वित्त वर्ष में भारत की संवृद्धि दर का अनुमान 5.8 प्रतिशत है, जो उसके पहले के अनुमान की तुलना में 1.2 प्रतिशत कम है. एजेंसी के अनुसार उसके अगले वर्ष यानी 2021-22 में संवृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी, जो उसके पहले के अनुमान की तुलना में 0.9 प्रतिशत अंक कम है. आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट के पीछे प्रमुख भूमिका भारत की है, जहां गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में दबाव और कमजोर ग्रामीण आर्थिक वृद्धि के कारण दबाव बढ़ा है. घरेलू मांग बहुत तेजी से गिरी है.

Thursday, January 16, 2020

क्या अब खुलेंगी कश्मीरी आतंकवाद से जुड़ी विस्मयकारी बातें?


जम्मू कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादियों के साथ पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह की गिरफ्तारी के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. यह गिरफ्तारी ऐसे मौके पर हुई है, जब राज्य की प्रशासनिक और पुलिस व्यवस्था में आमूल परिवर्तन हुआ है. केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते अब राज्य की पुलिस पूरी तरह केंद्र सरकार के अधीन है. क्या यह गिरफ्तारी उस बदलाव के महत्व को को रेखांकित कर रही है, या राज्य पुलिस की उस कार्यकुशलता को बता रही है, जिसे राजनीतिक कारणों से साबित करने का मौका नहीं मिला
कश्मीर के आतंकवाद के साथ जुड़ी कुछ बातें शायद अब सामने आएं. जो हुआ है, उसमें कहीं न कहीं उच्च प्रशासनिक स्तर पर स्वीकृति होगी. यह मामला इतना छोटा नहीं होना चाहिए, जितना अभी नजर आ रहा है. मोटे तौर पर ज़ाहिर हुआ है कि इस डीएसपी के साथ हिज्बुल मुजाहिदीन का सम्पर्क था. यह सम्पर्क क्यों था और क्या इसमें कुछ और लोग भी शामिल थे, इस बात की जाँच होनी चाहिए. क्या वह डबल एजेंट की काम कर रहा था? जाँच आगे बढ़ने पर 13 दिसम्बर, 2001 को संसद पर हुए हमले के बाबत भी कुछ जानकारियाँ सामने आएंगी. 

Thursday, January 9, 2020

निर्भया-प्रसंग ने हमारे सामाजिक दोषों को उघाड़ा

निर्भया दुष्कर्म मामले के दोषियों को फाँसी पर लटकाने का दिन और वक्त तय हो गया है. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने चारों दोषियों के डैथ वारंट जारी कर दिए हैं. आगामी 22 जनवरी की सुबह 7 बजे उन्हें तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. गणतंत्र दिवस के ठीक पहले होने वाली इस परिघटना का संदेश क्या है? इसके बाद अब क्या? क्या यह हमारी न्याय-व्यवस्था की विजय है? या जनमत के दबाव में किया गया फैसला है? कहना मुश्किल है कि उपरोक्त तिथि को फाँसी होगी या नहीं. ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि इस समस्या के मूल में क्या बात है? यह सामान्य अपराध का मामला नहीं है, बल्कि उससे ज्यादा कुछ और है.


इस मामले में अभियुक्तों के पास अभी कुछ रास्ते बचे हैं. कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि वे डैथ वारंट के खिलाफ अपील कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में उपचार याचिका दायर कर सकते हैं और राष्ट्रपति के सामने दया याचिका पेश कर सकते हैं. अभियुक्तों के वकील का कहना है कि मीडिया और राजनीति के दबाव के कारण सजा देने की प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है.

Tuesday, January 7, 2020

देश के भव्य रूपांतरण की महत्वाकांक्षी परियोजना



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में आधारभूत संरचना पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही थी. इसके बाद एक कार्यबल बनाया गया था, जिसने 102 लाख करोड़ की परियोजनाओं की पहचान की है. नए साल पर अब केंद्र सरकार ने अब इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की है. यह परियोजना न केवल देश की शक्ल बदलेगी, बल्कि सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति भी प्रदान करेगी. मंगलवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) की घोषणा की, जिसके तहत अगले पांच साल में 102 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को पूरा किया जाएगा.
ये परियोजनाएं ऊर्जा, सड़क, रेलवे और नगरों से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की हैं. इनमें से 42 फीसदी परियोजनाओं पर पहले से ही काम चल रहा है, 19 फीसदी विकास की स्थिति में और 31 फीसदी अवधारणा तैयार करने के स्टेज पर हैं. अच्छी बात यह है कि एनआईपी टास्क फोर्स ने एक-एक परियोजना की संभाव्यता जाँच की है और राज्यों के साथ उनपर विचार किया है. इस प्रकार एनआईपी अब भविष्य की एक खिड़की के रूप में काम करेगी, जहाँ से हम अपने इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर नजर रख सकेंगे. समय-समय पर इसकी समीक्षा होती रहेगी, जिससे हम इसकी प्रगति या इसके सामने खड़ी दिक्कतों को देख पाएंगे. यानी कि यह केवल परियोजनाओं की सूची मात्र नहीं है, बल्कि उनकी प्रगति का सूचकांक भी है.

Wednesday, December 25, 2019

चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ से जुड़ी चुनौतियाँ


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल लालकिले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में रक्षा-व्यवस्था को लेकर एक बड़ी घोषणा की थी. उन्होंने कहा कि देश के पहले ‘चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस)’ की जल्द नियुक्ति की जाएगी. यह भी कहा कि सीडीएस थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच तालमेल सुनिश्चित करेगा और उन्हें प्रभावी नेतृत्व देगा. नियुक्ति की वह घड़ी नजदीक आ गई है. मंगलवार को कैबिनेट ने इस पद को अपनी स्वीकृति भी दे दी. इस महीने के अंत में 31 दिसंबर को भारतीय सेना के वर्तमान सह-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवाने वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत से कार्यभार संभालेंगे, जो उस दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
इस नियुक्ति के बाद देखना होगा कि तीनों सेनाओं के लिए घोषित शिखर पद सीडीएस के रूप में किसकी नियुक्ति होगी. आमतौर पर इस पद के लिए निवृत्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का नाम लिया जा रहा है. सीडीएस के रूप में उपयुक्त पात्र का चयन करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की अध्यक्षता में एक क्रियान्वयन समिति का गठन किया था. इस समिति ने अपनी सिफारिशें रक्षा मामलों से संबद्ध कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) को सौंप दी हैं.

Wednesday, December 18, 2019

किसने हाईजैक किया इस छात्र आंदोलन को?


नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में जब पूर्वोत्तर का आंदोलन थमने लगा था, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों का आंदोलन अचानक शुरू हुआ और उसने देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. यह आंदोलन अब देश के दूसरे इलाकों में भी शुरू हो गया है. आंदोलन से जुड़ी, जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे इसके दो पहलू उजागर हुए हैं. पहला है कि आगजनी और हिंसा का और दूसरा है पुलिस की  कठोर कार्रवाई का. इस मामले ने भी सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है. वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तो तैयार है, पर चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने हिंसा को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा कि हिंसा रुकने पर ही सुनवाई होगी.

छात्रों का कहना है कि हिंसा हमने नहीं की है, बल्कि बाहरी लोग हैं. कौन हैं बाहरी लोग? वे कहाँ से आए हैं और विश्वविद्यालय में उनकी दिलचस्पी क्यों है? लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण विरोध हमारा सांविधानिक अधिकार है, पर इस अधिकार का इस्तेमाल सांविधानिक तरीके से ही होना चाहिए. सार्वजनिक परिवहन से जुड़ी बसों और निजी वाहनों को आग लगाना कहाँ का विरोध प्रदर्शन है? उधर ममता बनर्जी कोलकाता में प्रदर्शन कर रहीं हैं. उनके पास भी इस बात की जवाब नहीं है कि ट्रेनों में आग लगाने का काम कौन लोग कर रहे हैं? रेल की पटरियाँ कौन उखाड़ रहा है?  दिल्ली से खबरें मिल रही हैं कि जामिया का आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से ही शुरू हुआ था, पर अचानक यह हिंसक हो गया. किसी ने इसे हाईजैक कर लिया. किसने हाईजैक कर लिया और क्यों?

Friday, December 13, 2019

नागरिकता कानून में बदलाव के निहितार्थ


नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर चल रही बहस में कुछ ऐसे सवाल उठ रहे हैं, जो देश के विभाजन के समय पैदा हुए थे. इसके समर्थन और विरोध में जो भी तर्क हैं, वे हमें 1947 या उससे पहले के दौर में ले जाते हैं. समर्थकों का कहना है कि दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश है, जिसने धार्मिक आधार पर विश्व के सभी पीड़ित-प्रताड़ित समुदायों को आश्रय दिया है. हम देश-विभाजन के बाद धार्मिक आधार पर पीड़ित-प्रताड़ित लोगों को शरण देना चाहते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि तीन देशों से ही क्यों, म्यांमार और श्रीलंका से क्यों नहीं? इसका जवाब है कि केवल तीन देश ही घोषित रूप से धार्मिक देश हैं. शेष देश धर्मनिरपेक्ष हैं, वहाँ धार्मिक उत्पीड़न को सरकारी समर्थन नहीं है.
जिन देशों का घोषित धर्म इस्लाम है, वहाँ कम से कम मुसलमानों का उत्पीड़न धार्मिक आधार पर नहीं होता. पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों पर दबाव डाला जाता है कि वे धर्मांतरण करें. उनकी लड़कियों को उठा ले जाते हैं और फिर उनका धर्म परिवर्तन कर दिया जाता है. पाकिस्तान में बहुत से मुस्लिम संप्रदायों का भी उत्पीड़न होता है. जैसे शिया और अहमदिया. पर शिया को सुन्नी बनाने की घटनाएं नहीं हैं. उत्पीड़न के आर्थिक, भौगोलिक और अन्य सामाजिक आधार भी हैं. मसलन पाकिस्तान में बलूचों, पश्तूनों, मुहाजिरों और सिंधियों को भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, पर यह धार्मिक उत्पीड़न नहीं है.

Sunday, December 8, 2019

बलात्कारियों का क्या यही इलाज है?


उन्नाव की जिस लड़की के साथ पहले बलात्कार हुआ, फिर उसे जलाकर मार डाला गया, उसके पिता की माँग है कि अपराधियों को उसी तरह दौड़कर गोली मारी जाए, जैसे हैदराबाद के बलात्कारियों को मारी गई है. हैदराबाद में बलात्कार और हत्या के चार आरोपियों की एनकाउंटर में हुई मौत के बाद देशभर में बहस छिड़ी है. पुलिस की यह कार्रवाई क्या उचित है? क्या उन्हें ठीक करने का यही तरीका है और क्या यह सही तरीका है? क्या पुलिस को किसी को भी अपराधी बताकर मार देने का अधिकार है? सवाल यह भी है कि यह एनकाउंटर क्या वास्तव में अपराधियों के भागने की कोशिश के कारण हुआ? या पुलिस ने जानबूझकर इन्हें मार डाला, क्योंकि उसे यकीन था कि इन्हें  लम्बी न्यायिक प्रक्रिया के बाद भी सजा दिला पाना सम्भव नहीं होगा. जनता का बड़ा हिस्सा मानता है कि एनकाउंटर सही हुआ या गलत, दरिंदों का अंत तो हुआ. 
चिंता की बात यह है कि जनता का विश्वास न्याय पर से डोल रहा है. बरसों तक अपराधियों को सजा नहीं मिलती. पिछले कुछ वर्षों के रेप से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि ऐसे मामलों में दोषी साबित होनेवाले लोगों की संख्या बेहद कम है। 2014 से 2017 तक के आँकड़े बताते हैं कि जितने केस रजिस्टर हुए उनमें से ज्यादा से ज्यादा 31.8 प्रतिशत में अभियुक्तों पर दोष सिद्ध हो पाए. सौम्या विश्वनाथन (2008), जिगिशा घोष (2009), निर्भया (2012), शक्ति मिल्स गैंगरेप (2013), उन्नाव कांड (2017) जैसे तमाम मामलों में अभी तक न्यायिक प्रक्रिया चल ही रही है.

Tuesday, December 3, 2019

सिर्फ कानून बनाने से नहीं रुकेंगे बलात्कार


जिस तरह दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुई बलात्कार की एक घटना के बाद देशभर में नाराजगी का माहौल बना था, करीब-करीब उसी तरह हैदराबाद में हुई घटना को लेकर देशभर में नाराजगी है. सोमवार को संसद के दोनों सदनों में यह मामला उठा और सांसदों ने अपनी नाराजगी का इज़हार किया. इस चर्चा के बीच राज्यसभा में  जया बच्चन की बातों ने ध्यान खींचा है. उन्होंने कहा, आरोपियों को पब्लिक के हवाले कर दो. ऐसे लोगों को सार्वजनिक तौर पर लिंच कर देना चाहिए. उन्हें खुलेआम मौत की सजा दी जाए. उनके स्वरों में जो नाराजगी है, वह हमें खतरनाक निष्कर्षों की ओर ले जा रही है. क्या हमारी सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्थाएं फेल हो चुकी हैं, जो ऐसी बात उन्हें कहनी पड़ी?
इस घटना के बाद हैदराबाद से ताल्लुक रखने वाली बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा ने एक लेख में कहा कि इस अमानवीय घटना के लिए सरकार अथवा राजनैतिक दलों को दोष देने के बजाय संपूर्ण भारतीय समाज को दोषी ठहराना चाहिए. जल्द ही आप लोगों को सड़क पर विरोध करते हुए और कैंडल मार्च निकालते देखेंगे. लेकिन उसके बाद क्या? क्या ऐसी घटनाएं होनी बंद हो जाएंगी? ऐसा इसलिए है क्योंकि एक समाज के रूप में हम इस तरह की घटनाओं के मूल कारणों को दूर करने की कभी चेष्टा नहीं करते. हम सदैव सरकार, न्यायपालिका और पुलिस को दोषी मानते हैं, लेकिन मैं इस सब के लिए सामूहिक रूप से सबको दोषी ठहराती हूं.
ज्वाला गुट्टा ने अपने लेख में अपने डेनमार्क के अनुभव का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा, जब मैं 2005 में प्रशिक्षण के लिए वहां गई, तो मैंने पब्लिक ट्रांसपोर्ट) का इस्तेमाल किया. शुरू मे मैं थोड़ा आशंकित थी. आरहूस मेरे लिए एक अनजान शहर था. मेरे कोच ने मुझसे कहा, ‘ज्वाला, यह अपराध-मुक्त शहर है.’ मैंने पहले ऐसा कभी नहीं सुना था. इसके बाद मैंने इस बारे में पढ़ना शुरू किया कि आख़िर एक देश कैसे पूरी तरह अपराध रहित बनता है. यह पूरे समाज की शिक्षा और समझदारी पर निर्भर करता है.
सोमवार को इस मसले पर हुए विमर्श में शामिल होते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, ‘ऐसी घटनाएं हमें चिंतित करती है. संसद हमेशा ऐसी घटनाओं पर चिंतित रही है. हम सब भी मां-बेटी के साथ हो रहे ऐसे अपराध की निंदा करते हैं…इसके लिए अगर हमें नए कानून भी बनाने पड़े तो पूरा सदन इसके लिए तैयार है.’ रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘हम कानून बनाने के लिए भी तैयार हैं.’ उधर राज्यसभा में कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यह समस्या सिर्फ कानून बनाकर हल नहीं की जा सकती है. सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि हमने कई कानून बना लिए हैं लेकिन इससे कोई फायदा होता दिख नहीं रहा है. इसके लिए कुछ और करने की जरूरत है.
ऐसा कुछ और क्या है, जो हम कर नहीं पा रहे हैं? इसका जवाब मॉब लिंचिंग नहीं है, बल्कि उस शिक्षा और संस्कारों की जरूरत है, जिससे हम विमुख हैं. स्त्रियों को मनुष्य न समझने की मनोवृत्ति है. यह जब बलात्कार के रूप में सामने आती है, तो भयावह लगती है, पर जब स्त्री भ्रूण हत्या के रूप में उभरती है, तो हम उसकी अनदेखी कर देते हैं. लड़कों में मन में छुटपन से ही लड़कियों के प्रति आदर का भाव पैदा करना परिवारों का काम है. जैसे-जैसे स्त्रियों की भूमिका जीवन और समाज में बढ़ रही है, उसके समांतर सामाजिक-सांस्कृतिक समझ विकसित नहीं हो रही है. पुरुषों के बड़े हिस्से का दिमाग जानवरों जैसा है. पर बलात्कारियों को फाँसी देने या बधिया करने से भी अपराध खत्म नहीं होंगे.
पहला काम तो स्त्रियों को सबल बनाने का है. दिल्ली रेप कांड के बाद स्त्री-चेतना में विस्मयकारी बदलाव हुआ था. लम्बे अरसे से छिपा उनका गुस्सा एकबारगी सामने आया. उस आंदोलन से बड़ा बदलाव भले नहीं हुआ, पर सामाजिक जीवन में एक नया नैरेटिव तैयार हुआ. हम कितने भी आगे बढ़ गए हों, हमारी स्त्रियाँ पश्चिमी स्त्रियों की तुलना में कमज़ोर हैं. व्यवस्था उनके प्रति सामंती दृष्टिकोण रखती है. बेटियों की माताएं डरी रहती हैं. उन्हें व्यवस्था पर भरोसा नहीं है. आजादी के 72 वर्ष बाद भी आधी आबादी के मन में भय है. अपने घरों से निकल कर काम करने या पढ़ने के लिए बाहर जाने वाली स्त्रियों की सुरक्षा का सवाल मुँह बाए खड़ा है.
दिल्ली से लेकर हैदराबाद रेप कांडों को केवल रेप तक सीमित करने से इसके अनेक पहलुओं की ओर से ध्यान हट जाता है. यह मामला केवल रेप का नहीं है. कम से कम जैसा पश्चिमी देशों में रेप का मतलब है. एक रपट में पढ़ने को मिला कि पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में रेप कम है. पर उस डेटा को ध्यान से पढ़ें तो यह तथ्य सामने आता है कि रिपोर्टेड केस कम हैं. यानी शिकायतें कम हैं. दूसरे पश्चिम में स्त्री की असहमति और उसकी रिपोर्ट बलात्कार है.हमारे कानून कितने ही कड़े हों, एक तो उनका विवेचन ठीक से नहीं हो पाता, दूसरे पीड़ित स्त्री अपने पक्ष को सामने ला ही नहीं पाती.
हमारी पुलिस और न्याय व्यवस्था स्त्रियों के प्रति सामंती दृष्टिकोण रखती है. ऐसा नहीं कि वह निष्क्रिय है. पर उसकी सीमाएं हैं. उसकी ट्रेनिंग में कमी है, अनुशासन नहीं है और काम की सेवा-शर्तें भी खराब हैं. अपराधों को रोकने के लिए एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था की ज़रूरत है. हैदराबाद से खबरें मिली हैं कि वहाँ पुलिस इन दिनों रात के आठ बजे के बाद कर्फ्यू जैसे हालात पैदा कर रही है. इस तरह तो पुलिस खुद अराजकता पैदा कर रही है. ऐसे ही 2012 में दिल्ली पुलिस ने एक साथ नौ मेट्रो स्टेशनों को बंद करा दिया था. यह नादानी है. अपराध हो जाने के बाद की सख्ती का कोई मतलब नहीं है.



Wednesday, November 27, 2019

असली राजनीति तो अब शुरू होगी


अच्छा हुआ कि महाराष्ट्र के राजनीतिक ड्रामे के पहले अंक का पटाक्षेप समय से हो गया. देश की राजनीति को यह प्रकरण कई तरह के सबक देकर गया है. बीजेपी को सरकार बनाने के पहले अच्छी तरह ठोक-बजाकर देखना चाहिए था कि उसके पास बहुमत है या नहीं. इस प्रकरण से उसकी साख को धक्का जरूर लगा है. सवाल यह भी है कि क्या यह बीजेपी के साथ धोखा था? बहरहाल यह इस प्रकरण का अंत नहीं है. अब एक नई दुविधा भरी राजनीति का प्रारंभ होने वाला है. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की तिरंगी सरकार क्या टिकाऊ होगी? अब सरकार बनते ही ऐसे सवाल खड़े होंगे.
जिस सरकार को बनाने के पहले इतना लंबा विमर्श चला कि एक-दूसरी सरकार बन गई, उसकी स्थिरता की गारंटी क्या है? क्या वजह है कि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद एक महीने से ज्यादा समय हो गया है और सरकार का पता नहीं है? मंगलवार को देवेंद्र फडणवीस ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में बीजेपी को पूरा जनादेश मिला. हमने शिवसेना के साथ चुनाव लड़ा और दोनों को मिलकर सरकार बनाने का जनादेश मिला. यह जनादेश इसलिए बीजेपी का था क्योंकि हमारा स्ट्राइक रेट ज्यादा शिवसेना से ज्यादा था. उधऱ शिवसेना हमसे चर्चा करने की जगह एनसीपी से चर्चा कर रही थी. एक बात साफ है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का कॉमन मिनिमम कार्यक्रम है, बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना.