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Thursday, April 27, 2017

भँवर में घिरी आम आदमी पार्टी

यह पहला मौका है, जब एमसीडी के चुनावों ने इतने बड़े स्तर पर देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा. वस्तुतः ये नगरपालिका चुनाव की तरह लड़े ही नहीं गए. इनका आयाम राष्ट्रीय था, प्रचार राष्ट्रीय और परिणामों की धमक भी राष्ट्रीय है. सहज रूप से नगर निगम के चुनाव में साज-सफाई और दूसरे नागरिक मसलों को हावी रहना चाहिए था. ऐसा होता तो बीजेपी के लिए जीतना मुश्किल होता, क्योंकि पिछले दस साल से उसका एमसीडी पर कब्जा होने के कारण जनता की नाराजगी स्वाभाविक थी. पर हुआ यह कि दस साल की एंटी इनकम्बैंसी के ताप से बीजेपी को ‘मोदी के जादू’ ने बचा लिया.
एमसीडी चुनाव की ज्यादा बड़ी खबर है आम आदमी पार्टी की पराजय. सन 2012 तक दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस ही दो प्रमुख दल थे. सन 2013 के अंतिम दिनों में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक तीसरी ताकत के रूप में उभरी. पर वह नम्बर एक ताकत नहीं थी. सन 2015 में फिर से हुए चुनाव में वह अभूतपूर्व बहुमत के साथ सामने आई. उस विशाल बहुमत ने ‘आप’ को बजाय ताकत देने के कमजोर कर दिया. एक तरफ जनता के मन में अपेक्षाएं बढ़ी, वहीं पार्टी कार्यकर्ता के मन में सत्ता की मलाई खाने की भूख. पार्टी ने अपने विधायकों को पद देने के लिए 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की. इससे एक तरफ कानूनी दिक्कतें बढ़ीं, वहीं पंजाब में पार्टी के भीतर मारा-मारी बढ़ी, जहाँ सत्ता मिलने की सम्भावनाएं बन रहीं थीं.

Tuesday, March 28, 2017

ट्रंप को लगते शुरूआती झटके

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कामकाज के 100 दिन पूरे नहीं हुए हैं. इतने कम समय में ही वे कई तरह के विवादों में फँसने लगे हैं. स्पष्ट है कि शत्रु उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. ट्रंप ने मीडिया की भी तल्ख आलोचना की है. इन विवादों की वजह से उनके राजनीतिक एजेंडा को चोट लग रही है. आतंकवाद से लड़ाई की बिना पर उन्होंने पश्चिम एशिया के कुछ देशों के नागरिकों के अमेरिका आगमन पर पाबंदियाँ लगाने की जो कोशिशें कीं, उन्हें अदालती अड़ंगों सा सामना करना पड़ा. हैल्थ-केयर और टैक्स रिफॉर्म के उनके एजेंडा पर भी काले बादल छाए हैं.

Tuesday, March 21, 2017

आर्थिक मैदान में होगी योगी की परीक्षा

योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने की खबर पहली बार में चौंकाती है. पर किसी स्तर पर गहराई से विचार भी किया गया होगा. इतना साफ है कि पार्टी ने भविष्य में ज्यादा खुले एजेंडा के साथ सामने आने का फैसला कर लिया है. मध्य प्रदेश में पार्टी ने उमा भारती को तकरीबन इसी मनोभावना से प्रेरित होकर मुख्यमंत्री बनाया था. वह प्रयोग सफल नहीं हुआ. पर योगी का प्रयोग सफल भी हो सकता है.

Wednesday, March 15, 2017

चुनौती पूँजी निवेश की

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता पाने के बावजूद सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक होगी. हाल में केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) ने जब अर्थ-व्यवस्था के नवीनतम आँकड़े जारी किए तब कुछ लोगों की प्रतिक्रिया थी कि आँकड़ों में हेरे-फेर है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए 7 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर को चौंकाने वाला बताया. इससे पिछली तिमाही में यह दर 7.4 प्रतिशत थी. एजेंसी को उम्मीद है कि भारत की जीडीपी वृद्धि 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रहेगी जो 2017-18 और 2018-19 दोनों वित्त वर्ष में बढ़कर 7.7 प्रतिशत तक हो जाएगी.

Wednesday, March 1, 2017

अब मोदी के सामने है राष्ट्रपति-चुनाव की जटिल चुनौती

पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम नरेन्द्र मोदी और भाजपा की भावी राजनीति पर बड़ा असर डालने वाले हैं. इसका पहला संकेत राष्ट्रपति चुनाव में दिखाई पड़ेगा. इस साल 25 जुलाई को प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. सवाल है कि क्या बीजेपी राष्ट्रपति पद पर अपना प्रत्याशी बैठा पाएगी? राष्ट्रपति-चुनाव का एक गणित है. उसे देखते हुए एनडीए बहुमत से अभी कुछ दूर है. 11 मार्च को आने वाले परिणाम इस गणित को स्पष्ट करेंगे. पर सवाल केवल गणित का ही नहीं है.

Tuesday, February 21, 2017

रक्षा उद्योगों में आत्मनिर्भरता

बेंगलुरु में हाल में लगे एयरो इंडिया-2017 शो में भारतीय वायुसेना ने पहले स्वदेशी एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम को कमीशन करके रक्षा में स्वदेशीकरण की लम्बी प्रक्रिया में एक बड़ा कदम रखा है। आकाश में किसी भी प्रकार की गतिविधि पर नजर रखने वाले अवॉक्स आज किसी भी वायुसेना की पहली जरूरत है। हालांकि यह उपलब्धि है, पर ह कार्यक्रम अपने समय से तकरीबन छह साल पीछे चल रहा है।

Saturday, February 11, 2017

संसदीय मर्यादा दो हाथों की ताली

संसदीय मर्यादाओं और राजनीतिक शब्दावली को लेकर गंभीर विमर्श की जरूरत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इसकी जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर जो बात कही और उसे लेकर कांग्रेस पार्टी ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, दोनों से साफ जाहिर है कि ताली एक हाथ से नहीं बज सकती। इस कटुता को रुकना चाहिए। और इसकी जगह गंभीर विमर्श को बढ़ाया जाना चाहिए।
गुजरात में सन 2007 के विधानसभा चुनाव की शुरुआत में सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। पिछले साल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने खून की दलाली शब्दों का इस्तेमाल किया था। कोई मौका ऐसा नहीं होता, जब राजनीति में आमराय दिखाई पड़ती हो। बेशक सभी दलों के हित अलग-अलग हैं, पर कहीं और कभी तो आपसी सहमति भी होनी चाहिए।

Thursday, February 2, 2017

आर्थिक सुधारों और ग्रामीण विकास पर केंद्रित बजट

इस बजट को देश के चमत्कारिक बदलाव का बजट माना जा सकता है. एक दिन पहले पेश की गई आर्थिक समीक्षा ने बताया था कि इस साल खेती में 4.1 प्रतिशत की दर से संवृद्धि की उम्मीद है. इसके पीछे बेहतर मॉनसून का हाथ भी है. फसल का रकबा भी बढ़ने की सूचनाएं हैं. यानी ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ रहीं है. हालात ठीक रहे तो अगले साल खेती की विकास दर 6 फीसदी होगी. कुछ साल पहले हमारी कृषि विकास दर गिरते-गिरते शून्य तक पहुँचने जा रही थी.
मोदी सरकार की घोषणा है कि सन 2022 तक हम देश के किसानों की आय दुगनी करेंगे. इसके लिए ग्रामीण जीवन में बदलाव लाने की जरूरत होगी. सरकार ने कांट्रैक्ट खेती के कानून में बदलाव करने की घोषणा की है. फसल बीमा योजना में कवरेज को 40 फीसदी बढ़ाया गया है. सॉयल हैल्थ कार्ड के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों में मिनी लैब्स बनाने का प्रावधान किया है ताकि किसान वहां जाकर अपनी खेती की जमीन की मिट्टी का टेस्ट कर सकें.

Friday, January 27, 2017

जल्लीकट्टू बनाम आधुनिकता

तमिलनाडु में जल्लीकट्टू आंदोलन ने कई तरह के सवाल खड़े किए हैं. पहला सवाल आधुनिकता और परंपरा के द्वंद्व का है. उससे ज्यादा बड़ा सवाल सांविधानिक मर्यादा का है. मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के बावजूद राज्य सरकार ने अध्यादेश लाने की पहल की. इसके पहले जनवरी 2016 में केंद्र सरकार ने कुछ पाबंदियों के साथ जल्लीकट्टू के खेल को जारी रखने की एक अधिसूचना जारी की थी. अदालत ने उस अधिसूचना को न केवल स्थगित किया, बल्कि केंद्र सरकार से अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी.

Thursday, January 5, 2017

इन चुनावों पर हावी रहेंगे राष्ट्रीय सवाल

यह साल सन 2019 के पहले चुनाव के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण साल है. चुनाव आयोग ने जिन पांच राज्यों में चुनाव की तारीखें घोषित की हैं उनके अलावा गुजरात और हिमाचल प्रदेश दो राज्य और बचे हैं, जहाँ साल के अंत में चुनाव होंगे. इस साल राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के चुनाव भी होने वाले हैं. इस लिहाज से चुनाव की जो बयार अब बहनी शुरू हुई है वह साल भर बहेगी. केवल बहेगी ही नहीं तमाम नेताओं का राजनीतिक भविष्य लिख कर जाएगी.

स्वाभाविक रूप से विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होते हैं. चूंकि हर राज्य के अलग-अलग मसले हैं, इसलिए उनके आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर एक राय नहीं बनाई जा सकती. फिर भी इस साल के चुनावों से जुड़े कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब सारे परिणाम आने के बाद ही मिलेंगे.

Thursday, November 10, 2016

ट्रम्प से ज्यादा महत्वपूर्ण है अमेरिकी सिस्टम


अमेरिकी मीडिया के कयास के विपरीत डोनाल्ड ट्रम्प का जीतना कुछ लोगों को विस्मयकारी लगा, जिसकी जरूरत नहीं है। अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया ऐसी है कि ज्यादा वोट जीतने वाला भी हार सकता है। यदि वे हार भी जाते तो उस विचार की हार नहीं होती, जो इस चुनाव के पीछे है। लगभग कुछ दशक की उदार अमेरिकी व्यवस्था के बाद अपने राष्ट्रीय हितों की फिक्र वोटर को हुई है। कुछ लोग इसे वैश्वीकरण की पराजय भी मान रहे हैं। वस्तुतः यह अंतर्विरोधों का खुलना है। इसमें किसी विचार की पूर्ण पराजय या अंतिम विजय सम्भव नहीं है। अमेरिका शेष विश्व से कुछ मानों में फर्क देश है। यह वास्तव में बहुराष्ट्रीय संसार है। इसमें कई तरह की राष्ट्रीयताएं बसती हैं। हाल के वर्षों में पूँजी के वैश्वीकरण के कारण चीन और भारत का उदय हुआ है। इससे अमेरिकी नागरिकों के आर्थिक हितों को भी चोट लगी है। ट्रम्प उसकी प्रतिक्रिया हैं। क्या यह प्रतिक्रिया गलत है? गलत या सही दृष्टिकोण पर निर्भर है। पर यह प्रतिक्रिया अस्वाभाविक नहीं है। दुनिया के ऐतिहासिक विकास की यह महत्वपूर्ण घड़ी है। अमेरिकी चुनाव की खूबसूरती है कि हारने के बाद प्रत्याशी विजेता को समर्थन देने का वायदा करता है और जीता प्रत्याशी अपने आप को उदार बनाता है। ट्रम्प ने चुनाव के बाद इस उदारता का परिचय दिया है। अमेरिकी प्रसासनिक व्यवस्था में राष्ट्रपति बहुत ताकतवर होता है, पर वह निरंकुश नहीं हो सकता। अंततः वह व्यवस्था ही काम करती है। 
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का जैसा चुनाव इस बार हुआ है, वैसा कभी नहीं हुआ। दोनों प्रत्याशियों की तरफ से कटुता चरम सीमा पर थी। अल्ट्रा लेफ्ट और अल्ट्रा राइट खुलकर आमने-सामने थे। डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, सिवाय इसके कि वे धुर दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी राष्ट्रपति साबित होंगे। पर सबसे बड़ा खतरा यह है कि उनके ही कार्यकाल में अमेरिका की अर्थ-व्यवस्था पहले नम्बर से हटकर दूसरे नम्बर की बनने जा रही है।

Saturday, May 21, 2016

बीजेपी के प्रभा मंडल का विस्तार

इस चुनाव को बंगाल में ममता दीदी की विस्मयकारी और जयललिताअम्मा की अविश्वसनीय जीत के कारण याद रखा जाएगा। पर इन चुनाव परिणामों की बड़ी तस्वीर है बीजेपी के राष्ट्रीय फुटप्रिंट का विस्तार। उसके लिए पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार खुल गया है। वह असम की जीत को देशभर में प्रचारित करेगी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पूरे परिणाम आने के पहले ही इस बात को जाहिर भी कर दिया। असम के बाद पार्टी ने बंगाल में पहले से ज्यादा मजबूती के साथ पैर जमाए हैं। और केरल में उसने प्रतीकात्मक, पर प्रभावशाली प्रवेश किया है।

Tuesday, May 10, 2016

उत्तराखंड में जारी रहेगी अस्थिरता

उत्तराखंड की सबसे बड़ी त्रासदी है अनिश्चय। नैनीताल हाईकोर्ट ने कांग्रेस के 9 बागी विधायकों की अर्जी खारिज करके मंगलवार को होने वाले शक्ति परीक्षण को रोचक बना दिया है। विधायकों को उम्मीद थी कि शायद उनकी सदस्यता बहाल हो जाए। उन्हें वोट का अधिकार मिलता तो मुकाबला एकतरफा हो जाता। अदालत के इस फैसले के बाद अस्थिरता और ज्यादा गहरी हो जाएगी। हरीश रावत के पक्ष में यदि बहुमत विधायक वोट डाल भी देंगे तब भी यह कहना मुश्किल है कि अगले साल चुनाव होने तक वे अपने पद पर बने रहेंगे। कांग्रेस की जिस अंदरूनी कलह के कारण यह स्थिति पैदा हुई है, वह आसानी से खत्म होने वाली नहीं है। पहले तो शक्ति परीक्षण में जीतना ही मुश्किल हुआ जा रहा है। पर रावत सरकार जीत भी गई तो नेतृत्व का बने रहना मुश्किल होगा।

Friday, April 29, 2016

पाँच साल में एकबार-एकसाथ चुनाव

पिछले छह महीने में कम से कम चार बार यह बात जोरदार ढंग से कही गई है कि देश को एक बार फिर से ‘आम चुनाव’ की अवधारणा पर लौटना चाहिए. पिछले एक महीने में प्रधानमंत्री दो बार यह बात कह चुके हैं. एक संसदीय समिति ने इसका रास्ता बताया है. और एक मंत्रिसमूह ने भी इस पर चर्चा की है. प्रधानमंत्री ने बजट सत्र के पहले आयोजित सर्वदलीय बैठक में अनौपचारिक रूप से यह सुझाव दिया था. मुख्यमंत्रियों और हाइकोर्ट के जजों की कांफ्रेंस में भी उन्होंने इस बात को उठाया.

Wednesday, April 13, 2016

प्रगति करनी है तो बैंकों को बदलिए

पहले इस खबर को पढ़ें
सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को व्यक्तियों और इकाइयों पर बैंकों के बकाया कर्ज के बारे में रिजर्व बैंक की ओर दी गई जानकारी सार्वजनिक करने की मांग के पक्ष में  नजर आया। पर आरबीआई ने गोपनीयता के अनुबंध का मुद्दा उठाते हुए इसका विरोध किया। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति आर भानुमती के पीठ ने कहा- इस सूचना के आधार पर एक मामला बनता है। इसमें उल्लेखनीय राशि जुड़ी है। मालूम हो कि रिजर्व बैंक ने मंगलवार को सील बंद लिफाफे में उन लोगों के नाम अदालत के समक्ष पेश किए जिन पर मोटा कर्ज बाकी है। इस सूचना को सार्वजनिक करने की बात पर भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से इसका विरोध किया गया। केंद्रीय बैंक ने कहा कि इसमें गोपनीयता का अनुबंध जुड़ा है और इन आँकड़ों को सार्वजनिक कर देने से उसका अपना प्रभाव पड़ेगा। पीठ ने कहा कि यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण है, लिहाजा अदालत इसकी जांच करेगी कि क्या करोड़ों रुपए के बकाया कर्ज का खुलासा किया जा सकता है। साथ ही इसने इस मामले जुड़े पक्षों से विभिन्न मामलों को निर्धारित करने को कहा जिन पर बहस हो सकती है। पीठ ने इस मामले में जनहित याचिका का दायरा बढ़ा कर वित्त मंत्रालय और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन को भी इस मामले में पक्ष बना दिया है। इस पर अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी। याचिका स्वयंसेवी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने 2003 में दायर की थी। पहले इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के आवास एवं नगर विकास निगम (हडको) द्वारा कुछ कंपनियों को दिए गए कर्ज का मुद्दा उठाया गया था। याचिका में कहा गया है कि 2015 में 40000 करोड़ रुपए के कर्ज बट्टे-खाते में डाल दिए गए थे। अदालत ने रिजर्व बैंक से छह हफ्ते में उन कंपनियों की सूची मांगी है जिनके कर्जों को कंपनी ऋण पुनर्गठन योजना के तहत पुनर्निर्धारित किया गया है। पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि पैसा न चुकाने वालों से वसूली के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

 
हम विजय माल्या को लेकर परेशान हैं। वे भारत आएंगे या नहीं? कर्जा चुकाएंगे या नहीं? नहीं चुकाएंगे तो बैंक उनका क्या कर लेंगे वगैरह। पर समस्या विजय माल्या नहीं हैं। वे समस्या के लक्षण मात्र हैं। समस्या है बैंकों के संचालन की। क्या वजह है कि सामान्य नागरिक को कर्ज देने में जान निकल लेने वाले बैंक प्रभावशाली कारोबारियों के सामने शीर्षासन करने लगते हैं? उन्हें कर्ज देते समय वापसी के सुरक्षित दरवाजे खोलकर नहीं रखते। बैंकों के एक बड़े पुनर्गठन का समय आ गया है। यह मामला इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में उठ रहा है। चार रोज पहले इस काम के लिए गठित बैंक बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) ने अपनी पहली बैठक में जरूरी पहल शुरू कर दी है।

Friday, March 18, 2016

'माँ' का रूपक भाजपाई क्यों है?

बीबीसी हिंदी के पत्रकार जुबैर अहमद ने लिखा है, ‘बचपन में मेरे एक दूर के मामा ने मेरे गाल पर ज़ोरदार तमाचा लगाया, क्योंकि मैं अपने कमरे में अकेले 'जन गण मन अधिनायक जय हे' गा रहा था। तमाचा लगाते समय वो डांट कर बोले, "अबे, हिंदू हो गया है क्या?" मेरे मामा कोई मुल्ला नहीं थे लेकिन उनकी सोच मुल्लों वाली थी। असदुद्दीन ओवेसी की बातों से मुझे अपने दूर के मामा की याद आ जाती है। भारत माता की जय कहने से इनकार करना उनका अधिकार ज़रूर है लेकिन केवल इसीलिए इसका विरोध करना कि मोहन भागवत ने इसकी सलाह दी है, सही नहीं है।’ 

दूसरी ओर यह भी सही है कि देश के गैर-हिन्दुओं पर यह बात जबरन लादी नहीं जा सकती। देखना यह भी होगा कि हमारी भारतमाता देश को धर्मनिरपेक्ष बनाना चाहती है या धार्मिक राज्य बनाने का संदेश देती है। साथ ही यह भी कि क्या हमारे राष्ट्र-राज्य को हिन्दू प्रतीकों और मुहावरों से मुक्त किया जा सकता है? 

Wednesday, March 2, 2016

इरोम शर्मीला और हमारा असमंजस

देश का मीडिया जिस रोज आम बजट पर चर्चा कर रहा था उसी दिन एक खबर थी जो चैनलों और अखबारों के किनारे पर रही हो तो अलग बात है, सुर्खियों में नहीं थी। मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मीला को इम्फाल की एक अदालत के आदेश के बाद सोमवार को न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया गया। खबर यह भी थी कि अस्पताल के वॉर्ड से निकल कर शर्मीला शहीद मीनार में फिर से अनशन पर जा बैठीं।

सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को खत्म करने की मांग को लेकर उनके अनशन के 15 साल पिछले नवम्बर में पूरे हुए हैं। अनोखा है उनका आंदोलन और अनोखी है उनकी प्रतिबद्धता। पर दूसरी ओर इस आंदोलन से जुड़े मसले भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। क्या दोनों बातों के बीच कोई समझौता हो सकता है? सवाल यह भी है कि हम पूर्वोत्तर को लेकर कितने संवेदनशील हैं। पूर्वोत्तर के साथ मुख्यधारा के भारत का यह द्वंद कई सौ साल पुराना है।