Tuesday, November 11, 2014

अंतरिक्ष में भारत बनाम चीन

एक साल पहले 6 नवम्बर दिन अखबारों में मंगलयान के प्रक्षेपण की खबर छपी थी। 5 नवम्बर के उस प्रक्षेपण के बाद पिछली 24 सितम्बर को जब भारत के मंगलयान ने जब सफलता हासिल की थी तब पश्चिमी मीडिया ने इस बात को खासतौर से रेखांकित किया कि भारत और चीन के बीच अब अंतरिक्ष में होड़ शुरू होने वाली है। ऐसी ही होड़ साठ के दशक में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चली थी। स्पेस रेस शब्द तभी गढ़ा गया था, जो अब भारत-चीन के संदर्भों में इस्तेमाल हो रहा है। भारत के संदर्भ में जब भी बात होती है तो उसकी तुलना चीन से की जाती है। माना जा रहा है कि इक्कीसवीं सदी इन दोनों देशों की है।

Sunday, November 9, 2014

मोदी का गाँवों की जनता से संवाद

नरेंद्र मोदी की बातों को गाँवों और कस्बों में रहने वाले लोग बड़े गौर से सुन रह हैं। हाल में उन्होंने रेडियो को मार्फत जनता से जो संवाद किया उसकी अहमियत शहरों में भले न रही हो, पर गाँवों में थी। गाँवों में बिजली नहीं आती। रेडियो आज भी वहाँ का महत्वपूर्ण माध्यम है। नरेंद्र मोदी ने उसके महत्व को समझा और गाँवों से सीधे सम्पर्क का उसे ज़रिया बनाया। शुक्रवार को वाराणसी में उनके कार्यक्रमों में जयापुर गाँव का कार्यक्रम गाँव के लोगों को छूता था। यह केवल एक गाँव का मसला नहीं है बल्कि देशभर के गाँवों की नजर इस कार्यक्रम पर थी।

Saturday, November 8, 2014

आर्थिक शक्ति देती है सामरिक सुरक्षा की गारंटी

वैश्विक व्यवस्था और खासतौर से अर्थ-व्यवस्था का प्रभावशाली हिस्सा बनने के लिए भारत को अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और सामरिक रिश्तों को भी पुनर्परिभाषित करना होगा। जो देश आर्थिक रूप से सबल हैं वे सामरिक रूप से भी मजबूत हैं। उनकी संस्कृति ही दुनिया के सिर पर चढ़कर बोलती है। संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय अंग्रेजी और फ्रेंच दो भाषाओं को औपचारिक रूप से उसकी भाषाएं माना जाता था। फिर 1948 में इसमें रूसी भाषा जुड़ी, इसके बाद स्पेनिश। सत्तर के दशक में चीनी भाषा इसमें शामिल हुई। उसके बाद अरबी को आधिकारिक भाषा बनाया गया। सत्तर के दशक में पेट्रोलियम की ताकत ने अरबी को वैश्विक भाषा का दर्जा दिलाया था। सन 77 में जब तत्कालीन विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया था, तब से यह माँग की जा रही है कि हिंदी को भी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाना चाहिए। उसे आधिकारिक भाषा बनाने के लिए भारी खर्च की व्यवस्था करनी होगी इसलिए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं बनाया जा सकता। अपनी बात कहने का अधिकार उन्हें ज्यादा है जिनके पास सामर्थ्य है।

Sunday, November 2, 2014

राजनीति के साथ गवर्नेंस का मसला भी है काला पैसा

काले धन का मसला राजनीति नहीं गवर्नेंस से जुड़ा है। भारतीय जनता पार्टी ने इसे चुनाव का मसला बनाया था, पर अब उसे इस मामले में प्रशासनिक कौशल का परिचय देना होगा। सवाल केवल काले धन का पता लगाने और उसे वापस लाने का नहीं है, बल्कि बुनियाद पर प्रहार करने का है। काला धन जन्म क्यों लेता है और इस चक्र को किस तरह रोका जाए? कुछ लोगों का अनुमान है कि भारत में काले धन की व्यवस्था सकल राष्ट्रीय उत्पाद की 60 से 65 फीसदी है। यानी लगभग 60 से 65 लाख करोड़ रुपए के कारोबार का हिसाब-किताब नहीं है। इससे एक ओर सरकारी राजस्व को घाटा होता है दूसरे मुद्रास्फीति बढ़ती है। पर इसे रोकने के लिए आप क्या करते हैं?

Saturday, November 1, 2014

जानकारी देने में घबराते क्यों हो?

सूचना पाने के अधिकार से जुड़ा कानून बन जाने भर से काम पूरा नहीं हो जाता। कानून बनने के बाद उसके व्यावहारिक निहितार्थों का सवाल सामने आता है। पिछले साल जब देश के छह राजनीतिक दलों को नागरिक के जानकारी पाने के अधिकार के दायरे में रखे जाने की पेशकश की गई तो दो तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। इसका समर्थन करने वालों को लगता था कि राजनीतिक दलों का काफी हिसाब-किताब अंधेरे में होता है। उसे रोशनी में लाना चाहिए। पर इस फैसले का लगभग सभी राजनीतिक दलों ने विरोध किया। पर प्रश्न व्यापक पारदर्शिता और जिम्मेदारी का है। देश के तमाम राजनीतिक दल परचूनी की दुकान की तरह चलते हैं। केवल पार्टियों की बात नहीं है पूरी व्यवस्था की पारदर्शिता का सवाल है। जैसे-जैसे कानून की जकड़ बढ़ रही है वैसे-वैसे निहित स्वार्थ इस पर पर्दा डालने की कोशिशें करते जा रहे हैं।