Monday, February 6, 2017

शोर के दौर में खो गया विमर्श

संसद के बजट सत्र का पहला दौर अब तक शांति से चल रहा है. उम्मीद है कि इस दौर के जो चार दिन बचे हैं उनका सकारात्मक इस्तेमाल होगा. चूंकि देश के ज्यादातर प्रमुख नेता विधानसभा चुनावों में व्यस्त हैं, इसलिए संसद में नाटकीय घटनाक्रम का अंदेशा नहीं है, पर समय विचार-विमर्श का है. बजट सत्र के दोनों दौरों के अंतराल में संसद की स्थायी समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों पर विचार करेंगी. जरूरत देश के सामाजिक विमर्श की भी है, जो दिखाई और सुनाई नहीं पड़ता है. जरूरत इस बात की है कि संसद वैचारिक विमर्श का प्रस्थान बिन्दु बने. वह बहस देश के कोने-कोने तक जाए.

Sunday, February 5, 2017

चुनाव में सुनाई पड़ेगी बजट की अनुगूँज

बजट एक राजनीतिक दस्तावेज भी है। सालाना हिसाब-किताब से ज्यादा उसमें की गई नीतियों की घोषणाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं। इन बातों का सीधा रिश्ता चुनाव से है। सरकारें चुनाव जीतने के लिए ही काम करती हैं। पाँच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बजट लाने का कांग्रेस ने विरोध ही इसलिए किया था कि सरकार कहीं खुद को ज्यादा बड़ा देश-हितैषी साबित न कर दे। 
पाँचों राज्यों में हो रहे चुनावों में केंद्र सरकार के बजट की अनुगूँज निश्चित रूप से सुनाई पड़ेगी। चुनाव का आगाज ही इसबार नोटबंदी से हुआ है। विपक्ष जहाँ नोटबंदी के मार्फत बीजेपी के दुर्ग में दरार डालना चाहता है वहीं आम बजट का मूल स्वर नोटबंदी के नकारात्मक असर को कम करने का है। 

Saturday, February 4, 2017

चुनाव में बजट भी बनेगा मुद्दा

बजट हो या कोई भी सरकारी नीति उसका संबंध चुनाव से नहीं हो, ऐसा संभव नहीं। इसमें कोई निराली बात नहीं है। सरकारें चुनाव जीतने के लिए ही काम करती हैं। खुद को देश का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश की जाती है। पाँच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बजट लाने का कांग्रेस ने विरोध ही इसलिए किया था कि सरकार कहीं खुद को ज्यादा बड़ा देश-हितैषीसाबित न कर दे। इसलिए सरकार की कोशिशों पर नजर डालनी चाहिए और इसपर भी कि विपक्ष इन कोशिशों पर पानी कैसे डालेगा।

Thursday, February 2, 2017

इंफ्रा-मुखी लुभावना बजट

भारत का बजट लोक-लुभावन राजनीति, राजकोषीय अनुशासन और अर्थशास्त्रीय नियमों की रोचक चटनी होता है. इसकी बारीकियां केवल वित्तमंत्री का भाषण सुनने भर से समझ में नहीं आतीं. अलबत्ता पहली नजर में सार्वजनिक प्रतिक्रिया समझ में आ जाती है. इस लिहाज से इसबार का बजट काफी बड़े वर्ग को खुश करेगा. इसमें सामाजिक क्षेत्र का ख्याल है, ग्रामीण क्षेत्र की फिक्र है, साथ ही छोटे करदाता की परेशानियों को कम करने का इरादा भी. शेयर बाजार भी खुश है.

आर्थिक सुधारों और ग्रामीण विकास पर केंद्रित बजट

इस बजट को देश के चमत्कारिक बदलाव का बजट माना जा सकता है. एक दिन पहले पेश की गई आर्थिक समीक्षा ने बताया था कि इस साल खेती में 4.1 प्रतिशत की दर से संवृद्धि की उम्मीद है. इसके पीछे बेहतर मॉनसून का हाथ भी है. फसल का रकबा भी बढ़ने की सूचनाएं हैं. यानी ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ रहीं है. हालात ठीक रहे तो अगले साल खेती की विकास दर 6 फीसदी होगी. कुछ साल पहले हमारी कृषि विकास दर गिरते-गिरते शून्य तक पहुँचने जा रही थी.
मोदी सरकार की घोषणा है कि सन 2022 तक हम देश के किसानों की आय दुगनी करेंगे. इसके लिए ग्रामीण जीवन में बदलाव लाने की जरूरत होगी. सरकार ने कांट्रैक्ट खेती के कानून में बदलाव करने की घोषणा की है. फसल बीमा योजना में कवरेज को 40 फीसदी बढ़ाया गया है. सॉयल हैल्थ कार्ड के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों में मिनी लैब्स बनाने का प्रावधान किया है ताकि किसान वहां जाकर अपनी खेती की जमीन की मिट्टी का टेस्ट कर सकें.