Sunday, May 21, 2017

‘महाबली’ प्रधानमंत्री के तीन साल

केंद्र की एनडीए सरकार के काम-काज को कम के कम तीन नजरियों से देख सकते हैं। प्रशासनिक नज़रिए से,  जनता की निगाहों से और नेता के रूप में नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत पहचान के लिहाज से। प्रशासनिक मामलों में यह सरकार यूपीए-1 और 2 के मुकाबले ज्यादा चुस्त और दुरुस्त है। वजह इस सरकार की कार्यकुशलता के मुकाबले पिछले निजाम की लाचारी ज्यादा है। मनमोहन सिंह की बेचारगी की वजह से उनके आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि देश पॉलिसी पैरेलिसिस से गुजर रहा है। अब आर्थिक सुधार 2014 के बाद ही हो पाएंगे।

यह सन 2012 की बात है। तब कोई नहीं कह सकता था कि देश के अगले प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी को बैठना है। इस बयान के करीब एक साल बाद कांग्रेस के दूसरे नंबर के नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में मनमोहन सरकार के एक अध्यादेश को फाड़कर फेंका था। सही या गलत नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाया। वे ‘पॉलिसी पैरेलिसिस’ की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आए हैं। यह साबित करते हुए कि वे लाचार नहीं, ‘महाबली’ प्रधानमंत्री हैं। 

Saturday, May 20, 2017

क्या तैयारी है मोदी के मिशन 2019 की?

नरेन्द्र मोदी महाबली साबित हो रहे हैं। उनके रास्ते में आने वाली सारी बाधाएं दूर होती जा रही हैं। लोगों का अनुमान है कि वे 2019 का चुनाव तो जीतेंगे उसके बाद 2024 का भी जीत सकते हैं। यह अनुमान है। अनुमान के पीछे दो कारण हैं। एक उनकी उम्र अभी इतनी है कि वे अगले 15 साल तक राजनीति में निकाल सकते हैं। दूसरे उनके विकल्प के रूप में कोई राजनीति और कोई नेता दिखाई नहीं पड़ता है। यों सन 2024 में उनकी उम्र 74 वर्ष होगी। उनका अपना अघोषित सिद्धांत है कि 75 वर्ष के बाद सक्रिय राजनीति से व्यक्ति को हटना चाहिए। इस लिहाज से मोदी को 2025 के बाद सक्रिय राजनीति से हटना चाहिए। बहरहाल सवाल है कि क्या उन्हें लगातार सफलताएं मिलेंगी? और क्या अगले सात साल में उनकी राजनीति के बरक्स कोई वैकल्पिक राजनीति खड़ी नहीं होगी?

Tuesday, May 16, 2017

खामोश क्यों हैं केजरीवाल?

दिल्ली सरकार से हटाए गए कपिल मिश्रा आम आदमी पार्टी के गले की हड्डी साबित हो रहे हैं. पिछले दसेक दिनों में वे पार्टी और व्यक्तिगत रूप से अरविंद केजरीवाल पर आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं. और केजरीवाल उन्हें सुन रहे हैं.

आश्चर्य इन आरोपों पर नहीं है. आरोप लगाने से केजरीवाल बेईमान साबित नहीं हो जाते हैं. सवाल है कि केजरीवाल खामोश क्यों हैं? क्या वे इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कपिल मिश्रा का सारा गोला-बारूद खत्म हो जाए? या उन्हें राजनीति में किसी नए मोड़ का इंतजार है?

Sunday, May 14, 2017

विपक्षी बिखराव के तीन साल

मोदी सरकार के तीन साल पूरे हुए जा रहे हैं। सरकार के कामकाज पर निगाह डालने के साथ यह जानना भी जरूरी है कि इस दौरान विपक्ष की क्या भूमिका रही। पिछले तीन साल में मोदी सरकार के खिलाफ चले आंदोलनों, संसद में हुई बहसों और अलग-अलग राज्यों में हुए चुनावों के परिणामों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि विरोध या तो जनता की अपेक्षाओं से खुद को जोड़ नहीं पाया या सत्ताधारी दल के प्रचार और प्रभाव के सामने फीका पड़ गया। कुल मिलाकर वह बिखरा-बिखरा रहा।

सरकार और विरोधी दलों के पास अभी दो साल और हैं। सवाल है कि क्या अब कोई चमत्कार सम्भव है? सरकार-विरोधी एक मित्र का कहना है कि सन 1984 में विशाल बहुमत से जीतकर आई राजीव गांधी की सरकार 1989 के चुनाव में पराजित हो गई। उन्हें यकीन है कि सन 2018 में ऐसा कुछ होगा कि कहानी पलट जाएगी। मोदी सरकार को लगातार मिलती सफलताओं के बाद विरोधी दलों की रणनीति अब एकसाथ मिलकर भाजपा-विरोधी ‘महागठबंधन’ जैसा कुछ बनाने की है।

घातक है स्टूडियो उन्माद

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें कश्मीरी आतंकवादी दो पुलिस मुखबिरों को यातनाएं दे रहे हैं। साफ है कि इस वीडियो का उद्देश्य पुलिस की नौकरी के लिए कतारें लगाने वाले नौजवानों को डराना है। शुक्रवार की शाम यह वीडियो भारतीय चैनलों में बार-बार दिखाया जा रहा था। ऐसे तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं जो दर्शकों के मन में जुगुप्सा, नफरत और डर पैदा करते हैं। सोशल मीडिया में मॉडरेशन नहीं होता। इन्हें वायरल होने से रोका भी नहीं जा सकता। पर मुख्यधारा का मीडिया इनके प्रभाव का विस्तार क्यों करना चाहता है?

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उद्भव के बाद से भारतीय समाचार-विचार की दुनिया सनसनीखेज हो गई है। सोशल मीडिया का तड़का लगने से इसमें कई नए आयाम पैदा हुए हैं। सायबर मीडिया की नई साइटें खुलने के बाद समाचार-विचार का इंद्रधनुषी विस्तार भी देखने को मिल रहा है। इसमें एक तरफ संजीदगी है, वहीं खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना मीडिया की नई शक्ल भी उभर रही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को 24 घंटे, हर रोज और हर वक्त कुछ न कुछ सनसनीखेज चाहिए।